स्वच्छ हवा के लिए पूरे साल उपाय करने की जरूरत है !

स्वच्छ हवा के लिए पूरे साल उपाय करने की जरूरत है

हम इन्हीं दिनों में कदम उठाते हैं, जाहिर तौर पर ये बहुत थोड़े होते हैं और देर भी हो जाती है। अब कहा जा रहा है कि क्लाउड सीडिंग पर विचार हो रहा है। जबकि यह स्पष्ट है कि प्रदूषक कारक नमी में फंसकर रह जाते हैं, जिससे स्थिति विकट हो जाती है।

1990 के दशक में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वॉयरमेंट ने ‘स्लो मर्डर’ रिपोर्ट में प्रदूषण के मुख्य कारक बताए थे। इनमें वाहन, ईंधन की खराब गुणवत्ता व वाहन निर्माताओं के कार्बन उत्सर्जन मानकों में कमी थी। उसी दशक के उत्तरार्ध में सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किए, जिसमें सरकार से ईंधन की गुणवत्ता में सुधार करने, गाड़ियों के लिए उत्सर्जक मानक अनिवार्य बनाने (यह भारत स्टेज 1,2,3 और अब 6 की शुरुआत थी) और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए कहा था। 1998 में कोर्ट ने निर्देश दिया था कि सड़कों पर 11 हजार बसें चलाई जाएं। पर ऐसा नहीं हुआ।

पेट्रोल-डीजल की गुणवत्ता सुधारने के बजाय विकल्प के रूप में सीएनजी आई। हालांकि यह तत्काल राहत साबित हुई। आज, जब हम ईवी की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसे में सीएनजी अपनाने से जुड़े कई सबक काम आ सकते हैं। पहला है टेक्नोलॉजी की चुनौती। किसी भी देश ने इतनी व्यापकता से सीएनजी की ओर रुख नहीं किया था, जैसा 90 के दशक में दिल्ली में प्रस्ताव था।

मूल्य की भी चिंताएं थीं। मतलब टेक्नोलॉजी में इनोवेशन के लिए नीतिगत मार्गदर्शन की जरूरत थी। वित्तीय मदद दी गई, ताकि पुरानी वाहन हटाए जा सकें और सीएनजी वाहन आ सकें। दूसरा था लागू करने की चुनौती और क्रियान्वयन। कोर्ट ने दो से तीन साल में पूरी तरह से सीएनजी वाहनों पर शिफ्ट होने को अनिवार्य किया था। इसमें समन्वय के साथ कुछ कड़े निर्णयों की जरूरत थी।

आज जब दिल्ली में ई-बसों की महत्वाकांक्षी परियोजना है, लेकिन यह वांछनीय गति से नहीं हो रहा है, ताकि निजी वाहन बढ़ने से रोके जा सकें। साल 2023 में रजिस्टर्ड हुए निजी वाहनों की संख्या 2022 के मुकाबले दोगुनी थी। भले ही नए वाहन ज्यादा स्वच्छ हों, लेकिन उनकी भी बहुत ज्यादा संख्या से इसके फायदे कहीं खो जाते हैं। यह साधारण- सा गणित है।

दूसरा महत्वपूर्ण फैक्टर ईंधन हैं, जो कि घरों में चूल्हे से लेकर फैक्ट्री और थर्मल पावर प्लांट में इस्तेमाल होता है। ज्यादातर मामलों में यह बायोमास या कोयला है। सुप्रीम कोर्ट ने पेट कोक, वहीं दिल्ली सरकार ने कोयले पर प्रतिबंध लगाया है। यह भी सहमति हुई कि थर्मल पावर प्लांट सफाई करेंगे या बंद हो जाएंगे। पर ऐसा हुआ नहीं।

सीएनजी की तरफ शिफ्ट होने के सबक ये हैं कि किसी चीज के बैन को प्रभावी बनाने से पहले लोगों को विकल्प चाहिए होते हैं। जब डीजल बसें बंद हुईं, तो सीएनजी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी पड़ी। कोर्ट ने कहा था कि स्वच्छ ईंधन को सस्ता रखने के लिए राजकोषीय उपायों की आवश्यकता है। लेकिन प्राकृतिक गैस की कीमत उद्योग को अप्रतिस्पर्धी बनाती है। हमें समझना जरूरी है कि स्वच्छ हवा के लिए पूरे साल कदम उठाने होंगे। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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