प्रदूषण: खतरे में जीवन, चैन की सांस कब लेगी दिल्ली…
प्रदूषण: खतरे में जीवन, चैन की सांस कब लेगी दिल्ली… भारत-पाकिस्तान के वैज्ञानिकों को करना चाहिए आपसी सहयोग
दिल्ली वाले थोड़ी राहत महसूस कर सकते हैं कि लाहौर को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया है। बीते 21 अक्तूबर को इसका वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 394 था, जो चिंताजनक है। एक्यूआई हवा में विभिन्न प्रदूषक तत्वों की सांद्रता का एक माप है, जैसे कि महीन प्रदूषक कण (पीएम 2.5), मोटे प्रदूषक कण (पीएम 10), नाइट्रोजन ऑक्साइड और ओजोन। सौ से ज्यादा एक्यूआई को ‘अस्वास्थ्यकर’ और 150 से ज्यादा एक्यूआई को ‘बेहद अस्वास्थ्यकर’ माना जाता है। प्रमुख पाकिस्तानी अखबार द डॉन ने लिखा है कि मुख्य रूप से फसल अवशेषों (पराली) को जलाने और औद्योगिक उत्सर्जन के कारण पैदा हुए धुंध के संकट ने पंजाब (पाकिस्तानी प्रांत) सरकार को तत्काल सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए बड़े कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है और ‘खतरनाक धुंध के कारण शहर के निवासियों को खांसी, सांस लेने में कठिनाई, आंखों में जलन और त्वचा संबंधी संक्रमण सहित व्यापक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो गई हैं।
‘एंटी-स्मॉग स्क्वॉड को काम पर लगाया गया है और पाकिस्तानी मीडिया ने वरिष्ठ मंत्रियों के हवाले से एंटी-स्मॉग स्क्वाड की सराहना करते हुए इसे ‘स्मॉग-मुक्त पंजाब की ओर एक कदम’ बताया है। चावल उगाने वाले क्षेत्रों में एंटी-स्मॉग स्क्वाड की स्थापना की गई है, जिन्हें ज्यादा इलाकों तक पहुंचने और स्मॉग नियंत्रण का समर्थन करने के लिए वाहनों से लैस किया गया है। वर्षों से दिल्ली की अत्यधिक प्रदूषित हवा में रहने और एक भारतीय होने के नाते मैं इन सभी संकेतों को बहुत अच्छी तरह से समझती हूं। जैसा कि प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने डॉउन टु अर्थ के अपने कॉलम में कभी हमें याद दिलाया था- ‘एक बार फिर से साल का वह समय आ गया है और दिल्ली एवं इसके आसपास के इलाकों के लोग वाकई खतरे से भयभीत हैं। ठंड बढ़ रही है। हवा के धीमी होने के कारण पहले से हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व नीचे बैठ जाएंगे और हमें सांस लेने में दिक्कत होने लगेगी। हम केवल यह उम्मीद और प्रार्थना कर सकते हैं कि हवा और बारिश के देवता हमें राहत दिलाएं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमने वर्षों से प्रदूषण से निपटने के लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं किया है।’
नारायण बताती हैं कि ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) को एक ‘आपातकालीन चेतावनी प्रणाली’ माना जाता था, जिसका उद्देश्य चरम प्रदूषण होने पर तत्काल कदम उठाना था। लेकिन ‘इसे हम केवल तभी अपनाते हैं, जब जाहिर है, बहुत देर हो चुकी होती है। अब हमें बताया जा रहा है कि सरकार भगवान की भूमिका निभाएगी—कृत्रिम बादलों से बारिश की जाएगी, ताकि हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व धुल जाएं। यह तब है, जब सभी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि प्रदूषक तत्व नमी में फंस जाते हैं, जो हमारी परेशानी को और बढ़ा सकते हैं।’
सीमा पार पाकिस्तान में भी नीति-निर्माता इसी तरह अल्पकालिक तरीके से सोचते हैं। लेकिन एक के बाद एक विशेषज्ञों ने हमें बताया कि यह कारगर नहीं है और अगर हम समस्या को जड़ से नहीं खत्म करते और यह नहीं समझते कि धीमी हवा कैसे हमें मार रही है, तो कुछ भी नहीं बदलेगा और हमारी जिंदगी से कई साल कम होते जाएंगे। यह स्पष्ट है कि न केवल नीति-निर्माता, बल्कि आम जनता भी यह पूरी तरह से नहीं समझ पा रही है कि हम धीमी गति से मारे जा रहे हैं। कुछ लोग गर्व से इस जहरीली हवा में साइकिल चलाते या दौड़ते हुए अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। हम में से कुछ लोग खुद को बचाने के लिए एयर प्यूरिफायर लगाएंगे। लेकिन हम में से बहुत कम लोग ही चौबीसों घंटे एयर प्यूरीफायर वाले कमरों में रह सकते हैं। जब भी वायु प्रदूषण की समस्या खड़ी होती है, पराली जलाना सुर्खियों में रहता है, लेकिन वाहनों से होने वाला प्रदूषण इसका एक बड़ा कारण बना हुआ है।
सुनीता नारायण कहती हैं, ‘दिल्ली में ई-बसों के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन यह अभी तक आकार नहीं ले पाई है या उस गति से आगे नहीं बढ़ रही है, कि निजी वाहनों की वृद्धि को रोका जा सके। वर्ष 2023 में, शहर में पंजीकृत निजी वाहनों की संख्या उससे पिछले वर्ष की तुलना में दोगुनी हो गई। ऐसा तब है, जब पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ी हैं और घरेलू बजट का एक बड़ा हिस्सा परिवहन पर खर्च होता है। निजी कारों की बढ़ती संख्या से न केवल सड़कों पर वाहनों की भीड़ बढ़ती है, बल्कि सड़कों, फ्लाईओवरों और राजमार्गों को बनाने, तथा प्रौद्योगिकी व ईंधन में सुधार पर होने वाले सभी खर्च भी बेअसर हो जाते हैं। पुराने वाहन अब भी प्रदूषण फैला रहे हैं। पुराने वाहनों को स्क्रैप करने का हमारा कार्यक्रम प्रभावी नहीं रहा है। और भले ही नए वाहन स्वच्छ हों, लेकिन उनकी भी संख्या बढ़ाने से होने वाला लाभ खत्म हो जाता है। यह सरल गणित है!’
घरेलू चूल्हे से लेकर फैक्टरियों और ताप विद्युत संयंत्रों में हम जिन ईंधनों को जलाते हैं, वे भी जहरीली हवा में योगदान करते हैं। इस पर बहुत कम कार्रवाई हुई है। मुख्य बात यह है कि लोगों से सिर्फ स्वच्छ ऊर्जा विकल्प इस्तेमाल करने के लिए कहने से काम नहीं चलेगा। विकल्पों को लागत-प्रभावी बनाया जाना चाहिए। अन्यथा, हम हर साल और साल-दर-साल कराहते रहेंगे।
यह आलेख लिखते वक्त एक्स पर एक पोस्ट में लिखा दिखा कि ‘लाहौर में 265 दिन अस्वास्थ्यकर होते हैं, जिसमें एक्यूआई 405 तक पहुंच जाता है। पाकिस्तान के ‘बागों के शहर’ में अभूतपूर्व धुंध कई जाने-पहचाने कारकों के चलते आती है-वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन, ईंट भट्टों से निकलने वाला धुआं, पराली और सामान्य कचरे को जलाना, और निर्माण स्थलों से निकलने वाली धूल। वायु प्रदूषण के अन्य कारकों में नई सड़कों और इमारतों के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटना भी शामिल है।’ आस्था, उत्सव और भयंकर जहरीली हवा के मौसम से पैदा होने वाले संकट के समाधान के लिए एक सुझाव यह हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान के वैज्ञानिकों को वायु प्रदूषण पर आपस में सहयोग करना चाहिए। यह एक सीमा पार का मुद्दा है। जहरीली हवा उपमहाद्वीप में लाखों लोगों के जीवन को खतरे में डालती है।