शुद्ध के लिए कब युद्ध करेगा हरियाणा ?
जित्त दूध दही का खाणा, शुद्ध के लिए कब युद्ध करेगा हरियाणा
1नवंबर 1966 को हरियाणा के अस्तित्व में आते ही बात शुरु हुई थी… देशां म्ह देश हरियाणा जित्त दूध दहीं का खाणा, हरियाणावासियों को गौरव का अहसास कराने वाली ये टैग लाइन आंखों के सामने और कानों तक गाहे-ब-गाहे कई बार पहुंच जाती है. बेशक, अब इस गौरव पर चोट यहां नकली दूध, दहीं, घी बनाने… पर आकर लग रही है. चिंताजनक विषय है हरियाणा के पूरे सिस्टम के लिए है. अब सरकार और समाज किस तरह इस बिगड़ती ब्रांडिंग में सुधार करे, यह चैलेंज है. जरूरी है, यहां शुद्ध के लिए युद्ध का आगाज हो. वैसे भी हरियाणा दुनियाभर में अपने योद्धाओं और 5000 हजार साल पहले हुए महाभारत जैसे महायुद्ध की रणभूमि के लिए विख्यात है.
सिस्टम के लिए चिंताजनक पहलू ये है कि पड़ौसी राज्यों को यहां होने वाली मिलावट और इनके बफर की जानकारी होती है, जबकि इन तरह की गतिविधियों पर नजर रखने वाला हरियाणा का सिस्टम कान और आंखों में तेल डाल कर सोया रहता है. दिल्ली क्राइम ब्रांच ने जींद में जो कार्रवाई की और इससे पहले भी इस तरह की कार्रवाई कईं बार हो चुकी है.
यह हालात दर्शाते हैं कि दाल काफी काली है और मिलीभगत से लोगों की सेहत से बड़े पैमाने पर खिलवाड़ जारी है. एक दिन पहले दिल्ली क्राइम ब्रांच ने जींद में वनस्पति घी और रिफाइंड आयल में देसी घी का फ्लेवर डाल कर तैयार किये गए 2000 लीटर नकली देसी घी और वनस्पति घी एवं रिफाइंड आयल की 2500 लीटर की खेप दो जगहों पर छापेमारी कर बरामद की है.
हरियाणा के जींद को पिछले समय में नकली देशी घी के हब के रुप में नई पहचान मिली है, जबकि एक दौर था, जब हरियाणा के अन्य इलाकों की तरह यहां का असली घी भी काफी विख्यात रहा. दो साल में जींद की तीन इस तरह के फार्मूले से नकली घी बनाने वाली फैक्टरियां पकड़ी जा चुकी है. यानी, जिस घी को उपभोक्ता सिर्फ अच्छी खुशबू के मापदंड पर परख भारी भरकम मूल्य से खरीदता है, उसकी खुशबू जींद जैसी अनेक नकली घी की फैक्टरियों में शीशी में बंद है. जिससे से जितना चाहे खुशबूदार नकली घी तैयार होकर मार्केट से रसोई और पूजा की सामग्री तक पहुंच रहा है.
वो भी इन बड़े ब्रांड के डिब्बों में पैक होकर जो अपनी गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं. मसलन वेरका, मदर डेयरी, सरस, पतंजली, अमूल, मधु, नेस्ले एवरी डे, आनंद, मधुसूदन और मिल्क फूड जैसे देसी घी वे उत्पाद, जिनकी बरसों बरस से ब्रांडिंग हो रही है और इन ब्रांड के नकली घी को ग्राहक के हाथों में पहुंचाने का काम जींद जैसी नकली घी की फैक्टरियां नहीं, बल्कि वो राशनवाला होता है, जिनकी गारंटी पर आम नागरिक विश्वास कर घर ले जाता है और उपयोग में लाता है यह नकली घी. इसके अलावा घी, बटर, पनीर और दहीं जैसे नकली मिल्क प्रोडक्ट की बड़ी सप्लाई उन ढाबों, रेस्टोरेंट, शादी विवाह जैसे अन्य कार्यक्रमों में व्यंजन बनाने वाले ठेकेदार करते हैं. और इस पूरे नेटवर्क का सीधा असर लोगों स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.
देशभर में हरियाणा का कुरुक्षेत्र तीन दशक पहले सिंथेटिक दूध बनाने वाली फैक्टरी के कारण सुर्खियों में आया था. उस दौरान यूरिया से दूध बनाने वालों की धरपकड़ हुई थी. एक साल पहले ही नोएडा में देसी घी बनाने वाली कंपनी के अधिकारी ने जींद में छापेमारी कराई थी. तब भी जींद में चल रही नकली देसी घी की फैक्टरी का भंडाफोड़ हुआ था, यानी इस अधिकारी और कंपनी को पता लग गया था कि जींद में नकली घी बनाने की फैक्टरी चल रही है.
मगर सिस्टम ने तब कार्रवाई की जब उत्तर प्रदेश नोएडा की संबंधित कंपनी के अधिकारी ने सूचित किया. उस समय भी यहां नामी कंपनियों का करीब 500 लीटर नकली घी बरामद हुआ था. पिछले वर्षों में इस तरह की कार्रवाई लगातार सुर्खियों में रहती है. अब जरूरत है समाज को खोखला कर रहे इन तत्वों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो, जिससे वे भी सबक लें, जो सेहत से खिलवाड़ का धंधा करके जेबें भरने के लिए ललायित हैं.
बड़ा सवाल यह है कि इससे पहले जरूरी है कि अब इस तरह सिंडिकेट पर नजर कौन रखे? केवल ग्राहक या वो सिस्टम, जिनके कंधों पर इस निगरानी का जिम्मा है. पिछले वर्षों में लगातार सवाल यही उठते रहे हैं कि सिंडिकेट का हिस्सा बनकर केवल जेबें भरी जाती है, जबकि लोगों को दिखाने के लिए कार्रवाई का भ्रमजाल फैलाया जाता है, ताकि लगे सिस्टम सतर्क है. जीरो टालरेंस, पारदर्शी सरकार और जवाबदेह सिस्टम केवल नारों में नहीं, हकीकत में तब नजर आएगा, जब योजनाबद्ध तरीके से शुद्ध के लिए युद्ध लड़ा जाएगा. वरना, नकली घी युवा और आने वाली पीढ़ी को शारीरिक रुप से खोखला कर देगा और टैग लाइन बनी रहेगी देशां म्ह देश हरियाणा जित्त दूध दहीं का खाणा.
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