AMU को मुस्लिमों की यूनिवर्सिटी का टैग क्या SC-ST को आरक्षण नहीं मिलेगा !
AMU को मुस्लिमों की यूनिवर्सिटी का टैग
क्या SC-ST को आरक्षण नहीं मिलेगा; आगे क्या, 8 सवालों के जवाब
एक अल्पसंख्यक संस्थान होने के लिए इसे सिर्फ अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित किया जाना जरूरी है। ये जरूरी नहीं है कि इसे अल्पसंख्यक लोग चलाएं।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर 8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए यह बात कही। 7 जजों की बेंच ने 4:3 के बहुमत से दो हिस्सों में फैसला सुनाया है।
पहला- 1967 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें कहा गया था कि AMU, अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता। यानी अब AMU से माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन नहीं होने का टैग हट गया है।
दूसरा- अब 3 जजों की एक नई बेंच यह फैसला करेगी कि AMU, अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं।
इम्पैक्ट से जुड़े 8 जरूरी सवालों के जवाब…
सवाल 1: सुप्रीम कोर्ट ने AMU पर क्या फैसला सुनाया है?
जवाब: 1967 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने AMU का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म कर दिया था। फैसले में कहा गया था कि AMU अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता क्योंकि यह संस्थान साल 1920 के AMU अधिनियम के तहत स्थापित हुआ था।
इसके बाद 1981 में केंद्र सरकार ने AMU एक्ट में संशोधन कर यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक का दर्जा बहाल कर दिया। फिर जब 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में AMU के अल्पसंख्यक दर्जे को दोबारा खत्म किया तो इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं।
AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले में सुप्रीम कोर्ट को 2 मुख्य सवालों पर विचार करना था-
- किसी शैक्षिक संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के मापदंड क्या हैं?
- क्या संसद से पारित किसी कानून के तहत बनाए गए शैक्षिक संस्थान को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान होने का दर्जा मिल सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिन की सुनवाई के बाद 1 फरवरी 2024 को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। 8 नवंबर को फैसला सुनाया गया। कुल 501 पेजों में 4 फैसले लिखे गए।
सात जजों की संविधान पीठ में से 4 जजों ने बहुमत से एक राय होकर फैसला सुनाया। ये फैसला CJI चंद्रचूड़ ने लिखा था। इनमें CJI के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र शामिल रहे।
वहीं जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अपने अलग-अलग फैसले लिखे और सुनाए। ये तीनों फैसले बहुमत के फैसले से उलट थे।
8 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में 4 प्रमुख बातें कहीं-
- AMU को एक शाही कानून के जरिए स्थापित किया गया, इसका मतलब यह नहीं है कि उसे किसी अल्पसंख्यक ने स्थापित नहीं किया।
- यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए कानून बना था, इसलिए यह कहा जाना भी गलत है कि यूनिवर्सिटी की स्थापना संसद ने की थी।
- संस्था की स्थापना किसने की, यह पता लगाने के लिए यह जानना होगा कि इसके पीछे दिमाग किसका था। यह भी देखना होगा कि इसका विचार किसे आया, जमीन के लिए पैसा किसे मिला और क्या अल्पसंख्यक समुदाय ने इसमें मदद की थी।
- किसी अल्पसंख्यक ने संस्थान शुरू किया है तो वह अल्पसंख्यक संस्थान है। यह जरूरी नहीं है कि इसका प्रशासन अल्पसंख्यक के पास ही होना चाहिए।
- ।
सवाल 2: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब आगे क्या होगा?
जवाब: सुप्रीम कोर्ट की एक 3 सदस्यीय रेगुलर बेंच AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर फाइनल फैसला करेगी, मतलब अब ये बेंच तय करेगी कि AMU अल्पसंख्यक है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अश्विनी दुबे के मुताबिक, अभी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ मानदंड तय किए हैं कि अल्पसंख्यक दर्जा किसे दिया जा सकता है। अब रेगुलर बेंच अल्पसंख्यक दर्जे के लिए पूरी गाइडलाइंस भी बनाएगी।
इसके साथ अल्पसंख्यक संस्थान को बनाने और उसके प्रशासन को लेकर भी विस्तृत दिशा-निर्देश जारी होंगे। इसमें यूनिवर्सिटी का इतिहास, स्थापना की परिस्थितियां और यूनिवर्सिटी के प्रशासन की कार्रवाई शामिल है।
सवाल 3: AMU के फैसले से छात्रों और यूनिवर्सिटी के प्रशासन पर क्या फर्क पड़ेगा?
जवाब: AMU के शिक्षक संघ के सचिव उबैद अहमद सिद्दीकी के मुताबिक,
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से AMU में पढ़ने वाले छात्रों की पढ़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से फैसला आना छात्रों के लिए अच्छा ही है, क्योंकि फैसले में देरी की वजह से छात्रों में चिंता देखी जा रही थी। हालांकि यह जश्न मनाने जैसा फैसला नहीं है, लेकिन कम से कम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक का दर्जा खत्म नहीं हुआ है, यह राहत है। अगर फैसला विपरीत आता तो छात्रों की एडमिशन पॉलिसी और टीचर्स की भर्ती की प्रक्रिया पर भी असर पड़ सकता था।
उबैद कहते हैं कि यूनिवर्सिटी में प्रशासन के स्तर पर कोई बदलाव नहीं होगा, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि 1981 की तरह यूनिवर्सिटी के काम होते रहेंगे। 1981 में AMU एक्ट में संशोधन करके अल्पसंख्यक का दर्जा बहाल किया गया था। उसी के तहत अब भी छात्रों के एडमिशन और टीचर्स की नियुक्तियां होंगी।
AMU की वाइस चांसलर (VC) के चुनने की प्रक्रिया बाकी संस्थानों से अलग है, इसमें भी कोई बदलाव नहीं होगा। साथ ही AMU कोर्ट का दर्जा भी बरकरार रहेगा। AMU कोर्ट, यूनिवर्सिटी एक्ट में बदलाव करने का काम करती है। AMU कोर्ट में 190 अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक सदस्य होते हैं।
सवाल 4: अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान या माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन क्या हैं, क्या इनमें दूसरे धर्म के छात्र एडमिशन नहीं ले सकते?
जवाब: राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग (NCMEI) के मुताबिक, ‘अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का मतलब है एक कॉलेज या एक शैक्षिक संस्थान, जिसे किसी अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किया जाता है।’
हालांकि इस परिभाषा के मूल में भारतीय संविधान का एक आर्टिकल है। संविधान का अनुच्छेद-30(1) सभी अल्पसंख्यक समुदायों (धार्मिक और भाषा दोनों के आधार पर) को यह अधिकार देता है कि वह अपनी पसंद के एजुकेशनल इंस्टीट्यूट खोल और चला सकते हैं। इस कानून को आधार बनाकर ही AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग की गई थी।
1970 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार बनाम मदर प्रोविंशियल केस में कहा कि अगर अल्पसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति अल्पसंख्यकों के हित में शिक्षण संस्थान शुरू करता है तो उस संस्थान को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा।
अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा लेने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग से अल्पसंख्यक दर्जा प्रमाण पत्र मिलता है। अल्पसंख्यक का दर्जा स्थायी होता है। इसे रिन्यू करवाने की कोई जरूरत नहीं होती।
क्या अल्पसंख्यक संस्थानों में दूसरे धर्म के छात्र एडमिशन ले सकते हैं? इसका जवाब हां है। हालांकि 2004 के ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग अधिनियम’ के तहत अल्पसंख्यक संस्थान 50% सीटें अपने समुदाय के लिए रिजर्व कर सकते हैं। उबैद अहमद सिद्दीकी बताते हैं कि AMU के अंदर प्रोफेशनल कोर्सेज जैसे कि मेडिकल, इंजीनियरिंग और एमबीए में करीब 60% तक मुस्लिम छात्र हैं। बाकी समान्य डिग्री कोर्सेज में इससे भी कम हैं। सभी धर्म के बच्चे यहां पढ़ने आते हैं।
सवाल 5: अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से शैक्षिक संस्थान में क्या फर्क आता है?
जवाब: अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से सामान्य संस्थानों की तुलना में 5 बड़े बदलाव आते हैं-
- अल्पसंख्यक संस्थानों में एससी/एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं होती। सरकार भी संस्थानों को इन कैटेगरी में आरक्षण देने के लिए जोर नहीं दे सकती।
- दर्जा मिलने के बाद यूनिवर्सिटी की सारी कार्रवाई यूनिवर्सिटी के बोर्ड के अधीन होती है। सरकार का इसमें हस्तक्षेप नहीं होता।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग से अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने के बाद संस्थान को अनुदान दिया जाता है। केंद्र सरकार की यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन यानी UGC ने 2019 से 2023 तक AMU को 5,467 करोड़ रुपए का अनुदान दिया था।
- यूनिवर्सिटी को एडमिशन प्रोसेस, टीचरों और बाकी स्टाफ की नियुक्तियों से लेकर कैंपस और यूनिवर्सिटी चुनाव कराने की आजादी होती है। हालांकि यह देखा जाता है कि यूनिवर्सिटी अनुदान के पैसे का इस्तेमाल किन मदों में कर रही है।
- अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के तहत काम करती हैं। अल्पसंख्यक समुदायों (मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी) की शिक्षा और विकास के लिए विभाग से आर्थिक सहायता दी जाती है।
सवाल 6: क्या अल्पसंख्यक संस्थानों में दूसरे धर्म के टीचर नहीं हो सकते?
जवाब: ऐसा नहीं है। अल्पसंख्यक संस्थानों में सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय के टीचर या स्टाफ रखे जाने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। अल्पसंख्यक संस्थानों को टीचर, प्रिंसिपल और दूसरे नॉन टीचिंग स्टाफ की नियुक्ति करने का अधिकार है। हालांकि सरकार इन संस्थानों को अनुदान देती है, इसलिए वह इस पैसे के इस्तेमाल पर नियंत्रण रखती है, लेकिन स्टाफ के अपॉइंटमेंट पर उसका नियंत्रण नहीं रहता।
उबैद अहमद सिद्दीकी बताते हैं कि AMU में भी सभी डिपार्टमेंट्स में करीब 10 से 15% तक नॉन-मुस्लिम टीचर्स हैं। नॉन-टीचिंग स्टाफ में भी करीब इतने ही गैर-अल्पसंख्यक या गैर-मुस्लिम लोग काम करते हैं।
सवाल 7: भारत में कुल कितने माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन हैं?
जवाब: 2004 के नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस (NCMEI) एक्ट के तहत केंद्र सरकार ने देश के 6 धार्मिक समुदायों को अल्पसंख्यक माना है- ईसाई, सिख, मुस्लिम, पारसी, बौद्ध और जैन। NCMEI ही देश भर में माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन का सर्टिफिकेट देता है। साल 2021 तक NCMEI ने देश भर में 13,602 शिक्षण संस्थानों को माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन का सर्टिफिकेट दिया है। इनमें से सबसे ज्यादा 7,550 अल्पसंख्यक संस्थान ईसाइयों के हैं, वहीं 5,153 संस्थान मुलिमों के हैं। ये शिक्षण संस्थान, स्कूलों के अलावा हैं।
वहीं केंद्र सरकार के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 तक देश में 50,536 माइनॉरिटी स्कूल हैं। इनमें से 27,259 स्कूलों का मैनेजमेंट में मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। वहीं 15,808 स्कूलों को ईसाई चलाते हैं।
सवाल 8: क्या ये आखिरी फैसला है, आगे कुछ नहीं हो सकता?
जवाब: नहीं, यह आखिरी फैसला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के अपने ही एक पुराने फैसले को खारिज किया है। उस फैसले में कहा गया था कि AMU, अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता। यानी आज के फैसले से सिर्फ AMU को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने का रास्ता साफ हुआ है, दर्जा मिला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तीन जजों की एक नई रेगुलर बेंच यह फैसला करेगी कि AMU, अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं।
अभी सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक दर्जे के लिए कुछ मानदंड बताए हैं। उसने साफ किया है कि अल्पसंख्यक के दर्जे के लिए यह जरूरी नहीं है कि यूनिवर्सिटी का प्रशासन अल्पसंख्यक समुदाय का ही कोई व्यक्ति देख रहा हो। सिर्फ यह देखना जरूरी है कि यूनिवर्सिटी की स्थापना किसने और किस विचार के तहत की। तीन जजों की बेंच को यही तय करना है।