महंगाई डायन जो राष्ट्रपतियों को खा गई.. अमेरिका चुनाव में मंहगाई भी रहा बड़ा मु्द्दा ?
टाइम मशीन: महंगाई डायन जो राष्ट्रपतियों को खा गई…और कितनों के लिए साबित हुई नामुराद
छह नवंबर की दोपहर तक अमेरिका के चुनाव विशेषज्ञ बगलें झांकते हुए यह मानने लगे कि अजी छोड़िए काले-गोरे की बहस, मत मगजमारी कीजिए रूस, चीन, इस्राइल, ईरान पर, हम बौड़म हैं, जो बड़ी सियासत बौद्धिक बहसों और आंकड़ों में उलझे थे। इधर, अमेरिकी राष्ट्रपतियों की सबसे बड़ी दुश्मन ने अपना काम कर दिया। अमेरिकी अगर महंगाई के मारे हैं, घरों का बजट ध्वस्त है, तो वे सजायाफ्ता डोनाल्ड ट्रंप को फिर से कुर्सी पर बिठा सकते हैं। छह नवंबर की शाम तक चुनाव नतीजों के साथ वोटरों के फैसलों की वजह बताने वाले एग्जिट पोल भी आ गए। बात पुख्ता हो गई कि महंगाई सबसे बड़ी वजह थी, जिसके चलते 50.5 फीसदी वोटर ट्रंप के साथ गए। इनमें ऐसे भी वोटर थे, जो रिपब्लिकन पार्टी को वोट नहीं देते थे
किस्सा कोताह कि बाइडन-हैरिस के राज में लोगों की आर्थिक जिंदगी बदतर हुई, तो अमेरिकी सात खून माफ कर ट्रंप को ले आए। नामुराद महंगाई है ही ऐसी कि अमेरिकी राष्ट्रपतियों के पैर कांपने लगते हैं इसे देखकर। एक बार तो यह एक नहीं, तीन राष्ट्रपतियों को निगल गई, उनमें से एक राष्ट्रपति ने महंगाई को हराने के लिए झंडे, बैनर, बिल्ले तक बांट दिए, जनता को महंगाई हटाओ अभियान में लगा दिया, मगर यह बला उन्हें भी ले डूबी।
आइए, पकड़िए टाइम मशीन में अपनी कुर्सी, उड़ चलते हैं करीब 50-55 साल पीछे। हम सीधे वाशिंगटन आ पहुंचे हैं। साल है 1974 का। टाइम मशीन ने हमें वाशिंगटन के फॉगी बॉटम इलाके में उतार दिया है। हम एक बड़ी शानदार सफेद इमारत के सामने खड़े हैं, जिसके भीतर हुई मामूली चोरी अब अमेरिका का इतिहास बदलने वाली है। यह वाटरगेट बिल्डिंग है। यहां डेमोक्रेटिक पार्टी का दफ्तर है।
पड़ोस के कॉफी हाउस में सीट पकड़िए और चर्चाओं पर कान लगाइए। इसी भवन के कारण अमेरिका के कद्दावर और कई ऐतिहासिक फैसले लेने वाले राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन गहरी मुश्किल में हैं। दो साल पहले इस बिल्डिंग में चोर घुसे थे, उन्होंने फोन टेप किए और दस्तावेज चुराए। बात आई-गई नहीं हुई।
पड़ताल में पता चला कि वे चोर डेमोक्रेट्स की जासूसी के लिए आए थे। निक्सन की सरकार ने घटना को ढकने की कोशिश की, तो शक बढ़ने लगा। अमेरिकी लोकतंत्र में यह तब तक की सबसे सनसनीखेज घटना थी, जब किसी राजनीतिक दल की जासूसी की जाए।
वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार बॉब वुडवर्ड और कार्ल बर्संस्टीन ने इतिहास बदलने वाली पत्रकारिता की। उनकी मदद की एफबीआई के एसोसिएट डायरेक्टर मार्क फेल्ट ने। वाशिंगटन पोस्ट ने खोल कर रख दिया कि यह राजनीतिक जासूसी थी। राष्ट्रपति निक्सन को दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव हारने का खतरा था। वह डेमोक्रेट्स को फंसाना चाहते थे। निक्सन की शह पर यह जासूसी हुई। व्हाइट हाउस ने इसे ढकने की कोशिश की, मगर यह तो अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला हो गया। कॉफी हाउस की मेज पर रखा अखबार देखा आपने? सीनेट की कमेटी ने जांच कर ली। निक्सन की भूमिका सिद्ध हो गई है। देश के सामने टीवी पर सुनवाई में व्हाइट हाउस के पूर्व वकील जॉन डीन ने स्वीकार कर लिया है कि निक्सन के ओवल ऑफिस में एक मशीन लगी है, जो विपक्षी नेताओं की जासूसी करती है। निक्सन के खिलाफ महाभियोग की तैयारी शुरू हो गई है। उन्होंने अमेरिकी लोकतंत्र की परंपरा में जघन्य अपराध किया है। निक्सन का इस्तीफा तय है।
यह आठ जून, 1974 की सुबह है। राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने पद से इस्तीफा दे दिया है। ऐसा करने वाले वह पहले राष्ट्रपति हैं। उनके उपराष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड को राष्ट्रपति बनाया गया है। फोर्ड को उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर एक साल भी नहीं बीता है। निक्सन के पहले उपराष्ट्रपति सापिरो एग्निओ मनी लॉन्डि्रंग और भ्रष्टाचार के मामले में फंसने के बाद रुखसत हुए थे। तमाम फजीहत के बाद निक्सन भी गए। फोर्ड को जो ताज मिला है, उसमें कीलें गड़ी हैं। अलबत्ता फोर्ड पहले ऐसे उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति होंगे, जो कभी चुने नहीं गए, मगर वह ऐसा करेंगे, जो बड़ा ही अजीबोगरीब होगा। फोर्ड को निक्सन के सबसे बड़े डर के बारे में मालूम है। वह है महंगाई। वियतनाम युद्ध, अरब के ऑयल इंबार्गो यानी अमेरिका को तेल निर्यात पर रोक से महंगाई खौल उठी है। निक्सन ने कीमतें व वेतन में बढ़ोतरी पर रोक लगा कर इसे रोकने की कोशिश की, मगर इन कदमों के वापस होते ही महंगाई लौट आई है। डरे हुए निक्सन डेमोक्रेट्स की जासूसी जैसे हथकंडों से किसी तरह चुनाव जीतने की फिराक में थे और उसी में निबट गए। निक्सन तो निकल लिए, मगर महंगाई नहीं गई। जेराल्ड फोर्ड की बोहनी बड़ी खराब रही है। राष्ट्रपति बनते ही अपने अधिकारों के इस्तेमाल से उन्होंने निक्सन को माफ कर दिया। मगर महंगाई ने उन्हें माफ नहीं किया।
यह 8 अक्तूबर, 1974 है। महंगाई से बुरी तरह खौफजदा जेराल्ड फोर्ड ने मशहूर डेमोक्रेट प्रेसिडेंट फेंकलिन डी रूजवेल्ट का सुमिरन करते हुए कहा है कि देश के लोग महंगाई से मुक्ति चाहते हैं। अब महंगाई पर सीधी कार्रवाई होगी। फोर्ड ने एक बडे़ कार्यक्रम का एलान किया है। महंगाई के खिलाफ उनका नारा है ‘विन-व्हिप इन्फेलेशन नाउ’। राष्ट्रपति ने कहा है कि महंगाई हमारी दुश्मन है, हम इस पर जीत हासिल करेंगे…फोर्ड ने कहा है, कंपनियां कीमतें घटाएंगी। लोग अपने खर्च कम करेंगे। बड़ी कंपनियां और अमीर लोग कमाई पर पांच फीसदी का सरचार्ज देंगे। तेल आयात में दस लाख बैरल की कटौती की जाएगी। राष्ट्रपति ने एक सिटीजन्स एक्शन कमेटी बना दी है। यह ‘विन’ के अभियान को लेकर निकल पड़ी है। लाखों की संख्या में ‘विन’ बैज बनाए और बांटे गए हैं। लोग उन्हें कोट पर लगाकर महंगाई के खिलाफ यलगार कर रहे हैं। अब आगे बढ़िए। देखते हैं कि महंगाई को हराने की जंग कितनी कामयाब हुई?
टाइम मशीन 1975 की शुरुआत में है। महंगाई तप रही है। ‘विन’ अभियान अब उत्साह से उपहास में बदल गया है। लोगों ने विन के बैज को उलटा करके पहनना शुरू कर दिया है। विन को उलटा करने पर ‘निम’ पढ़ा जाता है, जिसका मतलब है ‘नो इमीडिए मिरेकल्स’ यानी महंगाई को हराने का कोई चमत्कार नहीं हुआ। एलन ग्रीनस्पन, जो 21वीं सदी में फेड रिजर्व के मुखिया होंगे, वह इस वक्त फोर्ड की सलाहकार समिति में शामिल हैं। उन्होंने किसी को बताया है कि ‘राष्ट्रपति फोर्ड के भाषण लेखकों ने लाखों विन बैज बनवाने के ऑर्डर दिए हैं; व्हाइट हाउस की बैठक में लोगों को इनके नमूने दिखाए गए हैं। क्या ही मूर्खता है! मुझे पता नहीं, मैं यहां क्यों बैठा हूं…’ ग्रीनस्पन यह किस्सा अपनी आत्मकथा में जरूर लिखेंगे। अंतत: राष्ट्रपति फोर्ड का अभियान औंधे मुंह गिरा है। अखबार की सुर्खी देख रहे हैं। यह मार्च 1975 है। ‘विन’ अभियान को खत्म कर दिया गया है। महंगाई कहीं नहीं गई। फोर्ड के कार्यकाल में यह नौ फीसदी की ऊंचाई पर पहुंच गई है। अब अमेरिका में 1976 के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आ गए हैं। रिपब्लिकन जेराल्ड फोर्ड चुनाव हार गए हैं।
टाइम मशीन में 1976 से 2024 की तरफ बढ़ते हुए आप देख रह हैं कि डेमोक्रेट जिमी कार्टर व्हाइट हाउस में विराज रहे हैं। शांति के लिए उनके प्रयासों के कारण उन्हें नोबेल मिला है, परंतु जिद्दी महंगाई ने उनकी सियासत को इस तरह ध्वस्त कर दिया है कि 1980 के चुनाव का नतीजा आपकी स्क्रीन पर है। रोनाल्ड रीगन ने महंगाई के कारण उपजे गुस्से की मदद से जिमी कार्टर को धर पटका है। बड़ी जीत मिली है रीगन को, मगर महंगाई भी साथ आई है। रीगन ने अपने जिद्दी फेड गवर्नर पॉल वोल्कर को महंगाई के मोर्चे पर लगा दिया। यह 1984 का साल है। पॉल वोल्कर जीत गए हैं, महंगाई हार गई है और रिपब्लिकन रोनाल्ड रीगन रिकॉर्ड मतों से दोबारा जीत गए हैं। टाइम मशीन वाशिंगटन में उतर रही है। रीगन के चुनाव प्रबंधक सलाहकार जेम्स कार्वाएल की उक्ति आपकी स्क्रीन पर है। कार्वाइल कहते थे, ‘इट्स इकनॉमी स्टुपिड’ यानी अमेरिका में चुनावी फैसले अर्थव्यवस्था पर होते हैं। कमला हैरिस सोच रही होंगी इट्स इन्फलेशन स्टुपिड…! फिर मिलते हैं अगले सफर पर…