सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म जैसे गैर-समझौते योग्य अपराधों की कार्यवाही को रद्द करने की याचिका पर विचार करने से पहले हाईकोर्ट को पीड़ित और आरोपी के बीच समझौते की वास्तविकता के बारे में खुद को संतुष्ट करना चाहिए। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने गुजरात हाईकोर्ट के 29 सितंबर, 2023 के आदेश के खिलाफ एक दुष्कर्म पीड़िता की याचिका को स्वीकार कर लिया।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को वापस हाईकोर्ट को भेज दिया। पीठ ने कहा कि कार्यवाही को रद्द करने का निर्णय और आदेश बरकरार नहीं रखा जा सकता। इस मामले में एक ही दिन दो हलफनामे दिए गए, जो हाईकोर्ट के लिए हलफनामों पर कार्रवाई करने से पहले बहुत सतर्क रहने का एक और कारण होना चाहिए था।
पीठ ने कहा कि वास्तविक समझौते के अस्तित्व से अदालत के संतुष्ट हुए बिना कार्यवाही रद्द करने की याचिका आगे नहीं बढ़ सकती। पीठ ने कहा, यदि हाईकोर्ट पाता है कि वास्तव में अपीलकर्ता और दूसरे प्रतिवादी के बीच समझौता हुआ था, तो हाईकोर्ट को इस प्रश्न पर विचार करना होगा कि क्या सीआरपीसी की धारा 482 या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति का प्रयोग समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए किया जा सकता है। महिला हाईकोर्ट के उस आदेश से व्यथित थी, जिसमें आपराधिक कार्यवाही को इस निर्देश के साथ रद्द कर दिया गया था कि अत्याचार अधिनियम के तहत अपीलकर्ता की ओर से प्राप्त मुआवजा संबंधित अथॉरिटी को वापस किया जाना चाहिए।