खाने-पीने की चीजों के दामों पर सरकार कैसे लगाती है लगाम?
महंगाई से जंग: खाने-पीने की चीजों के दामों पर सरकार कैसे लगाती है लगाम?
क्या सरकार को पता है कि आप रोजमर्रा के सामान पर कितने पैसे खर्च करते हैं? जवाब है- नहीं!

कुछ चीजों पर सरकार यह तय कर सकती है कि वो चीज इससे ज्यादा दाम पर नहीं बिकेगी. इसे प्राइस सीलिंग कहते हैं. जैसे, किराए पर कंट्रोल. सरकार यह भी तय कर सकती है कि कोई चीज इससे कम दाम पर नहीं बिकेगी. इसे प्राइस फ्लोर कहते हैं. जैसे मिनिमम वेज (कम से कम मजदूरी).
खाने-पीने की चीजे कितनी महंगी!
भारत में अक्टूबर में महंगाई दर बढ़कर 6.21 फीसदी पर पहुंच गई है. ऐसा 14 महीने बाद पहली बार हुआ है. इससे पहले जुलाई 2023 में ऐसा हुआ था. ये जानकारी नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) ने दी है. इस दौरान, खाने-पीने की चीजों के दाम तेजी से बढ़े हैं, खासकर फल, सब्जियां, मांस-मछली और तेल-घी के दाम बढ़े हैं.
अक्टूबर में खाने-पीने की चीजों की महंगाई दर 10.87 फीसदी पर पहुंच गई है, जो पिछले 15 महीनों में सबसे ज्यादा है. सितंबर में यह 9.24 फीसदी थी. सरकार ने बताया है कि अक्टूबर में खाने-पीने की चीजों के दाम 9.69% बढ़ गए, जबकि सितंबर में यह बढ़ोतरी 8.36% थी.
‘कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स’ (CPI) से पता चलता है कि आम लोग जो सभी चीजें खरीदते हैं उनके दाम कितने बढ़े या घटे हैं. कंबाइंड फूड इंडेक्स (CFPI) सिर्फ खाने-पीने की चीजों के दामों में बदलाव को मापता है. कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में खाने-पीने की चीजों का 45.86% हिस्सा होता है, यानी इनके दामों का महंगाई पर बहुत असर पड़ता है. सब्जियों के दाम अक्टूबर में 42.18% बढ़ गए, जबकि सितंबर में यह बढ़ोतरी 35.99% थी. फलों के दाम अक्टूबर में 8.43% बढ़ गए, जबकि सितंबर में यह 7.65% बढ़े थे.
क्या हर चीज की कीमत पर नजर रखती है सरकार?
नहीं, सरकार हर चीज के कीमतों पर नजर नहीं रखती है. साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट जैसी रोजमर्रा की चीजो के दामों पर सरकार सीधे तौर पर नजर नहीं रखती है. उपभोक्ता मामलों का विभाग (जो ग्राहकों के हितों की रक्षा करता है) सिर्फ जरूरी खाने-पीने की चीजों के दामों पर नजर रखता है. जैसे दाल, चावल, आटा, प्याज, चीनी आदि.
इसके लिए पूरे देश में 555 केंद्र बनाए गए हैं जो हर दिन थोक और खुदरा दामों की जानकारी देते हैं. इस जानकारी से सरकार यह तय करती है कि बाजार में दामों को कैसे कंट्रोल किया जाए. ये केंद्र राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा चलाए जाते हैं.
खाने-पीने की चीजों के दाम कैसे कंट्रोल करती है सरकार?
दाल, चावल, आटा, प्याज जैसी जरूरी चीजों के दाम बढ़ने से आम आदमी की जेब पर सीधा असर पड़ता है. उपभोक्ता मामलों के राज्यमंत्री बीएल वर्मा ने संसद में पूछे गए सवाल के जवाब में बताया कि महंगाई की मार से आम जनता को बचाने के लिए सरकार समय-समय पर कई कदम उठाती है.
सरकार पहले ही दाल, प्याज जैसी जरूरी चीजों को बड़े गोदामों में जमा करके रखती है. इसे बफर स्टॉक कहा जाता है. जब बाजार में इन चीजों की कमी होती है या दाम बढ़ने लगते हैं, तो सरकार अपने बफर स्टॉक से इन्हें निकालकर बाजार में बेचती है. इससे आपूर्ति बढ़ जाती है और दाम कम हो जाते हैं. इसे ऐसे समझिए, जैसे आपके घर में आटा खत्म होने वाला है और दुकान में आटा महंगा बिक रहा हो, तब आप अपने घर में पहले से रखे आटे का इस्तेमाल करने लगते हैं.
ऐसे ही सरकार गोदाम में रखी दाल को पिसवाकर ‘भारत दाल’ ब्रांड से बेचती है. यह दाल लोगों को सस्ते दामों पर मिलती है, जैसे राशन की दुकान से मिलने वाला सस्ता गेहूं. इससे महंगाई से राहत मिलती है. ‘भारत’ ब्रांड के नाम से सरकार सस्ता आटा और चावल भी बेचती है, ताकि लोगों को कम दामों पर ये चीजें मिल सकें.
प्याज के दामों में अचानक तेजी आने पर सरकार बफर स्टॉक से प्याज निकालकर थोक बाजार और खुदरा दुकानों पर बेचती है. इससे प्याज के दाम कम हो जाते हैं और लोगों को राहत मिलती है. सरकार कुछ जगहों पर दुकानें और मोबाइल वैन के जरिए लोगों को 35 प्रति किलो के हिसाब से प्याज बेचती है. इससे उन इलाकों में प्याज के दाम कंट्रोल रहते हैं जहां इसकी कीमतें बहुत ज्यादा होती हैं.
जरूरत पड़ने पर सरकार खाने-पीने की चीजों का आयात या निर्यात भी करती है. अगर देश में किसी चीज की कमी है, तो सरकार उसे दूसरे देशों से मंगवाती है. वहीं अगर किसी चीज का उत्पादन ज्यादा है, तो उसे दूसरे देशों में बेचा जाता है. इससे दामों में स्थिरता बनी रहती है.
क्या किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिलता है?
किसानों को उनकी फसल का उचित दाम मिले, इसके लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करती है. अगर बाजार में फसल का दाम MSP से कम होता है, तो सरकार किसानों से उनकी फसल खरीद लेती है. इससे किसानों को नुकसान नहीं होता और बाजार में कीमतें भी स्थिर रहती हैं.
सरकार का काम कालाबाजारी और जमाखोरी पर सख्ती से रोक लगाना भी होता है. जो लोग जरूरी चीजों को गुप्त तरीके से जमा करके रखते हैं और मुनाफा कमाने के लिए उन्हें महंगे दामों पर बेचते हैं, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की सकती है.
गरीबों को मुफ्त अनाज
सरकार गरीब लोगों को राशन की दुकानों के जरिए सस्ते दामों पर अनाज भी उपलब्ध कराती है. इससे गरीब लोगों को पौष्टिक भोजन मिलता है और उन्हें महंगाई से कुछ राहत मिलती है. कोरोना महामारी के समय मार्च 2020 में सरकार ने गरीब लोगों की मदद के लिए एक योजना शुरू की थी. इस योजना का नाम है ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ (PMGKAY).
इस योजना के तहत राशन कार्ड वाले 81 करोड़ से ज्यादा लोग सस्ते दामों पर गेहूं और चावल खरीद सकते हैं. उन्हें 10 किलो गेहूं 3 प्रति किलो और 10 किलो चावल 2 प्रति किलो के हिसाब से मिलता था. जनवरी 2023 से इस योजना में थोड़ा बदलाव किया गया. अब लोगों को 5 किलो गेहूं और 5 किलो चावल उन्हीं दामों पर मिलता है.
उपभोक्ता मामलों के राज्यमंत्री बीएल वर्मा ने बताया, जनवरी 2024 में ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ को सरकार ने अगले 5 साल तक बढ़ा दिया था. इस योजना के तहत दो तरह के परिवारों को मुफ्त अनाज दिया जाता है. अंत्योदय अन्न योजना (AAY) परिवारों को हर महीने 35 किलो अनाज मिलता है. प्रायोरिटी हाउसहोल्ड वाले परिवारों के हर सदस्य को हर महीने 5 किलो अनाज मिलता है.
दवाइयों के दाम कैसे तय करती है सरकार?
भारत में सरकार ने 2013 में ‘ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर’ (DPCO) नाम का एक नियम बनाया है. इस नियम से सरकार को यह ताकत मिली कि वह जरूरी दवाइयों के दाम तय कर सके. दवाइयों के दाम ‘फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी’ नाम की संस्था तय करती है.
सरकार ने जरूरी दवाइयों की एक लिस्ट बनाई है, जिसे ‘नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशियल मेडिसिन्स’ कहते हैं. सिर्फ इन दवाइयों के ही दाम तय किए जाते हैं.