ग्वालियर : 7 साल बाद किया टेंडर लेकिन अब भी कंपनी बदलने को तैयार नहीं जिम्मेदार ?

निगम के आउटसोर्स कर्मियों का मामला …7 साल बाद किया टेंडर लेकिन अब भी कंपनी बदलने को तैयार नहीं जिम्मेदार

नगर निगम में आउटसोर्स कर्मचारियों की भर्ती में हुए बड़े घोटाले के बाद भी अफसर निजी कंपनी (सर्विस प्रोवाइडर) को बदलने को तैयार नहीं हैं। आलम यह है कि 27 मार्च 2018 को दो साल के लिए किए गए टेंडर के बाद पिछले पांच साल से कुछ कंपनियों की म्याद वृद्धि लगातार की जा रही है।

22 करोड़ रुपए से शुरू हुए इस टेंडर की कीमत अब 65 करोड़ पहुंच गई है। इस बीच दिखावे के लिए दो बार टेंडर भी किए गए, लेकिन कुछ न कुछ कमियां निकालकर नई कंपनियों को काम करने का मौका नहीं दिया गया।

नई परिषद के गठन के बाद सितंबर 2022 में परिषद में हुई आउटसोर्स कर्मचारियों की तैनाती के बाद ऐसे कर्मचारियों की भर्ती में किया गए घोटाले की पर्तें उधड़ना शुरू हुईं। इसमें निगम के तमाम अफसर लपेटे में आ रहे थे, इस कारण आनन-फानन में जांच कराकर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पर पूरा दोष रखकर उसे सस्पेंड कर दिया गया।

बाद में महापौर डॉ. शोभा सिकरवार के नेतृत्व में एक​ उच्च स्तरीय जांच समिति बनी। समिति के बार-बार मांगने के बाद भी जिम्मेदारों ने उन्हें पूरा रिकार्ड उपलब्ध नहीं कराया और अंतत: जांच का वही हुआ जो सरकारी विभागों में होता है। इस दौरान आउटसोर्स भर्ती के नाम पर ठगे गए युवक भी सामने आए, लेकिन उनकी भी सुनवाई नहीं हुई।

पुनर्विचार के पीछे तर्क… जबरिया बढ़ाई राशि

आउटसोर्स कर्मचारी उपलब्ध कराने के लिए बुलाए टेंडर पर पुनर्विचार का आग्रह कर रहे जिम्मेदारों का कहना है कि इस टेंडर से निगम को घाटा हो रहा है। जो टेंडर 60 करोड़ रुपए का होना था, उसे तत्कालीन जिम्मेदारों ने 65 करोड़ पहुंचा दिया। इसका कारण श्रमिकों की दरों में सरकार द्वारा समय-समय पर परिवर्तन करना है, लेकिन दो साल के लिए बुलाए गए टेंडर में इतनी दर बढ़ने की संभावना नहीं है। दरों से अधिकता से निगम को नुकसान होने की संभावना है।

कंपनी ने कम रेट में डाला टेंडर, समिति ने दी स्वीकृति फिर भी विवाद आउटसोर्स कर्मचारी उपलब्ध कराने के लिए मंगाए गए टेंडरों में गुरु ग्राम की कंपनी का रेट सबसे कम आया। टेंडर आने के बाद तकनीकी और वित्तीय समिति में शामिल निविदा समि​ति के अध्यक्ष अपर आयुक्त आरके श्रीवास्तव, अपर आयुक्त वित्त रजनी शुक्ला, अधीक्षण यंत्री जेपी पारा, उपायुक्त अनिल दुबे और टेंडर सेल के प्रभारी राकेश कश्यप ने इसे मंजूरी दी।

इसके बाद मेयर-इन-काउंसिल होते हुए यह प्रस्ताव परिषद पहुंचा और 27 नवंबर को परिषद में पांच पार्षदों की आपत्ति के बाद सर्वसम्मति से स्वीकृति प्रदान कर दी गई। इसके बाद 3 दिसंबर को परिषद के नए एजेंडे में इस पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया। इसमें अफसरों ने कुछ कमियां बताते हुए एनआईटी निरस्त करने का आग्रह किया। इस पर परिषद तैयार नहीं हुई।

समिति में शामिल जिम्मेदार बोले– परीक्षण के बाद गलती की संभावना नहीं रहती

यदि कोई शिकायत हो जाए तो अलग बात है ^तकनीकी और वित्तीय स्वीकृति समिति के परीक्षण के बाद टेंडर में खामियों की संभावना नहीं रहती। यदि कोई शिकायत या फिर शिकवा हो जाए तो बात अलग है। -जेपी पारा, अधीक्षण यंत्री

कोर्ट में है मामला, मैं इसमें कुछ नहीं कहूंगा ^तकनीकी और वित्तीय समिति में परीक्षण के बाद टेंडर में कोई कमियां नहीं रहतीं। मामला कोर्ट में है, इस कारण वहां से निर्णय होने के बाद ही इस मामले में कुछ कहा जा सकता है। -अनिल दुबे,तत्कालीन

फाइल देखकर ही कुछ कह सकती हूं ^किसी भी टेंडर के बाद में उसकी फाइल देखने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। आउटसोर्स मामला फिलहाल डिस्प्यूट में है, उसके लिए ऑफिस में बैठकर ही बात करूंगी। -रजनी शुक्ला, अपर आयुक्त वित्त

टायपिंग मिस्टेक से ऐसी स्थिति बनती है ^तकनीकी और वित्तीय समिति में वे ही अधिकारी हैं, रोजाना सैकडों फाइलें आती हैं। गलती की संभावना बनी रहती है। कभी टायपिंग मिस्टेक आदि के कारण ऐसी स्थिति बन सकती है। -राकेश कश्यप, टेंडर सेल

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