IAS बनने गए थे, लड़ रहे विधायकी !

IAS बनने गए थे, लड़ रहे विधायकी….दिल्ली विधानसभा चुनाव में UP-बिहार के 12 कैंडिडेट्स, 70 में से 20 सीटों पर गेमचेंजर

9 जनवरीः दिल्ली में 15 दिन में 12 हजार वोट बनने के लिए नए आवेदन कहां से आए। जाहिर तौर पर UP और बिहार से लोगों को लाकर फर्जी वोटर बनवाए जा रहे हैं।

दिल्ली के पूर्व CM अरविंद केजरीवाल के इस बयान के बाद राजधानी में बयानबाजी और धरना-प्रदर्शन शुरू हो गया। विपक्षी BJP और कांग्रेस ने प्रदर्शन किया। इस बयान के बाद पूरी सियासत पूर्वांचलियों पर सेंट्रिक होती दिखी।

कांग्रेस ने राजधानी दिल्ली में कुंभ की तर्ज पर छठ महापर्व कराने और लोकगायिका शारदा सिन्हा के नाम पर जिला घोषित करने की बातें कही।

दरअसल, पूर्वांचली वोटरों को लेकर ये हो-हल्ला ऐसे ही नहीं है। दिल्ली में UP-बिहार से ताल्लुकात रखने वाले करीब 20 फीसदी वोटर हैं, जो किसी अन्य समुदाय से सबसे ज्यादा है। विधानसभा की 70 में से 20 सीटों पर ये जीत-हार तय करते हैं। वहीं, इसके अलावा 5 से 7 सीटें ऐसी है, जहां ये जीत-हार तो नहीं तय करते लेकिन रिजल्ट प्रभावित कर सकते हैं। यही कारण है कि हाल के दिनों में राजधानी में बिहारी नेताओं का ज्यादा तरजीह दी गई है। 12 प्रत्याशी UP-बिहार के हैं।

बिहार के युवाओं के नेता बनने की कहानी, दिल्ली में पूर्वांचली वोटर्स कितनी बड़ी भूमिका अदा करते हैं? 

मधुबनी के संजीव झा IAS बनने गए थे, विधायक बन गए, चौथी बार मैदान में

  

बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले संजीव झा आम आदमी पार्टी के साथ शुरुआती दिनों से जुड़े हैं। उनकी मां गायत्री देवी बताती हैं, वो यहां से IAS बनने का सपना लेकर दिल्ली गए थे। लगभग 4-5 साल तक वहां तैयारी भी की। इसी बीच दिल्ली में अन्ना आंदोलन शुरू हो गया। उन्होंने इसमें एक्टिव वॉलंटियर की भूमिका निभाई।’

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आंदोलन के बाद जब अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई तब वह उनके साथ जुड़ गए।

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झा दिल्ली के बुराड़ी सीट से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हैं। 2013 के चुनाव में संजीव को AAP ने बुराड़ी सीट से प्रत्याशी बनाया था। संजीव ने इस चुनाव में बीजेपी के श्री किशन को पटखनी दी थी।

वह 2015 और 2020 के चुनाव में भी बुराड़ी सीट से जीत कर सदन पहुंचे। संजीव झा आम आदमी पार्टी के बिहार प्रभारी भी हैं। उन्हें आम आदमी पार्टी के टॉप लीडरशिप का करीबी माना जाता है।

अन्ना आंदोलन से जुड़े फिर केजरीवाल के करीबी बन गए

अरविन्द केजरीवाल की कोर टीम के सिपाही गिने जाने वाले सोमनाथ भारती मूल रूप बिहार ले नवादा के रहने वाले हैं। अन्ना आंदोलन के दौरान अरविन्द केजरीवाल से जुड़े, तब से उनके साथ बने हुए हैं।

सोमनाथ को AAP ने मालवीय नगर सीट से उम्मीदवार बनाया है। भारती इस सीट से लगातार 3 बार से जीत दर्ज कर रहे हैं। केजरीवाल का करीबी होने का इनाम इन्हें दिल्ली सरकार में मंत्री पद के रूप में मिल चुका है। ये दिल्ली के कानून मंत्री रह चुके हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें AAP ने नई दिल्ली सीट से उम्मीदवार बनाया था, जहां वे काफी क्लोज मुकाबले में चुनाव हार गए।

दिल्ली में पिता की विरासत संभाल रहे विनय मिश्रा

दिल्ली के द्वारका विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी (AAP) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे विनय मिश्रा मूल रूप से बिहार के मधुबनी के बासोपट्टी सीरियापुर गांव के रहने वाले हैं। इनके पिता मिलिट्री में थे और काफी पहले गांव छोड़कर दिल्ली में बस गए थे। वहीं, विनय मिश्रा का जन्म हुआ।

मिलिट्री से रिटायरमेंट के बाद विनय के पिता राजनीति में जुड़ गए थे। वे दिल्ली में कांग्रेस की राजनीति करते थे। कांग्रेस की टिकट पर दिल्ली से दो बार के विधायक और एक बार के सांसद भी बने।

अरविंद केजरीवाल की राजनीति से प्रभावित होकर विनय मिश्रा आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। 2020 में उन्हें द्वारका से टिकट मिला और वह जितने में सफल रहे। एक बार फिर से पार्टी ने उन्हें द्वारका से अपना कैंडिडेट बनाया है।

मधुबनी में विनय के चाचा बताते हैं, ‘विनय मिश्रा के परिवार की गिनती गांव में एक समृद्ध परिवार के रूप में होती है। वह भले अब दिल्ली में रहते हैं लेकिन जब भी गांव को उनकी जरूरत होती है वह आते हैं। गांव से आज भी उनका गहरा लगाव है।’

दिल्ली की सियासत में पूर्वांचली वोटरों की कितनी बड़ी भूमिका?

पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि दिल्ली में पूर्वांचल (बिहार-UP) से आए लोगों की तादाद बढ़ी है। ये कई सीटों के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करते हैं। खासकर बाहरी दिल्ली के इलाकों में बड़ी तादाद में पूर्वांचली रहते हैं।

CSDS के प्रोफेसर संजय कुमार कहते हैं, ‘इनकी संख्या का सही आकलन करना मुश्किल है, क्योंकि कभी इसकी गणना नहीं हुई है, लेकिन अनुमान अलग-अलग हैं।’

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दिल्ली में 17-20 सीटें ऐसी हैं जहां इनकी संख्या बहुत अच्छी है। 70 सीट में 20 सीटें मायने रखती हैं। यही कारण है कि सभी पार्टियों में पूर्वांचली वोटर्स की होड़ मची हुई है।

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वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं, ‘हालिया कुछ वर्षों में पूर्वांचल के लोगों की राजनीतिक ताकत भी बढ़ी है और राजनीति में उनकी संख्या भी बढ़ी है। इससे दिल्ली की सियासत में पंजाबी वोटरों का वर्चस्व कम हुआ है। मौजूदा समय में पूर्वांचली यहां डॉमिनेट कर रहे हैं।’

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दिल्ली के वर्क फोर्स के रूप में पूर्वांचलियों ने अपना ठीक-ठाक अस्तित्व बना लिया है। हालांकि पूंजी के बाजार में अभी भी यहां पिछड़े हुए हैं। पूर्वांचली वोटर्स में बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है, जो गरीब या निम्न आय वर्ग से आते हैं। यही कारण है कि हर पार्टी पूर्वांचलियों की रिझा रही है। आज पूर्वांचली दिल्ली में एक वोट बैंक हैं। हर पार्टी इस वोट बैंक को अपनाना चाहती है।

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क्या समय के साथ पूर्वांचली पार्टी बदलते रहे हैं?

पॉलिटिकल एक्सपर्ट का मानना है कि पूर्वांचली तीनों पार्टियों के साथ हैं। इसका एक सबसे बड़ा कारण है कि ये जाति के हिसाब से वोट करते हैं। पंजाबियों को रिझाना इसलिए टफ है कि पंजाबी वोटर्स अपने राज्य के हिसाब से वोट करते हैं। पंजाब में जिस पार्टी का वर्चस्व रहेगा दिल्ली के पंजाबी वोटर्स भी उन्हें ही वोट करेंगे।

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं, ‘एक जमाने में पूर्वांचली कांग्रेस के साथ मजबूती से लामबंद थे। तब लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच थी। अब इसके उलट हो गया है। AAP के उभार से कांग्रेस हाशिए पर चली गई है। हिंदू अपर कास्ट पहले कांग्रेस के साथ थे वो अब बीजेपी के साथ है। खास कर भूमिहार, ब्राह्मण, कायस्थ और राजपूत इस बार बीजेपी के साथ मजबूती से खड़े दिखाई दे रहे हैं। जबकि, पूर्वांचली मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी AAP में शिफ्ट हो गई है।’

जिसके साथ पूर्वांचली वोटर, दिल्ली पर उसका राज

90 के दशक के बाद ये ट्रेंड रहा है कि दिल्ली में पूर्वांचली वोटर जिनके साथ रहे हैं, राज्य में उनकी सरकार बनी है। पूर्वांचली वोटरों को साधने के लिए ही 1998 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित को आगे किया था। कांग्रेस को इसका फायदा मिला और 15 साल तक दिल्ली में दीक्षित का शासन रहा।

2013 में दिल्ली के पूर्वांचली वोटर AAP की तरफ मूव कर गए। इन्होंने एकतरफा आम आदमी पार्टी को वोट किया। नतीजा 2015 और 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जीत हासिल की। अरविंद केजरीवाल ने इनकी ताकत को समझते हुए पूर्वांचल से संबंधित गोपाल राय, सोमनाथ भारती जैसे नेताओं को मंत्री बनाया। संजय सिंह को राज्यसभा भेजा।

इस बार भी पार्टी ने बुरारी से संजीव झा, किरारी से अनिल झा, द्वारका से विनय मिश्रा, मालवीय नगर से सोमनाथ भारती, संगम विहार से चंदन कुमार, बाबरपुर से गोपाल राय और पटपड़गंज से अवध ओझा को कैंडिडेट बनाया है। ये सभी पूर्वांचली हैं।

अब तक बीजेपी सफल नहीं हो पाई

पूर्वांचली वोटर्स को साधने के लिए बीजेपी पिछले तीन चुनाव से लगातार अलग-अलग प्रयोग कर रही है, लेकिन अभी तक पूरी तरह कामयाब नहीं हो पा रही है। पार्टी ने बिहार से ताल्लुक रखने वाले मनोज तिवारी को न केवल दिल्ली से सांसद बनाया बल्कि उन्हें दिल्ली भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया।

बिहार की रिजनल पार्टी जदयू और लोजपा के साथ गठबंधन कर उनके कैंडिडेट को सपोर्ट किया, लेकिन पार्टी की रणनीति हर बार फेल रही है। इस बार भी बीजेपी जदयू- लोजपा के लिए संगम बिहार और बुराड़ी की दो सीट छोड़ है। हालांकि, पिछली बार की 11 सीटों की जगह पार्टी ने 5 सीटों पर पूर्वांचली कैंडिडेट को उतारा है।

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