पहाड़ों में घटती बर्फबारी बढ़ाएगी मुश्किल ?
नई दिल्ली जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के चलते इस साल पहाड़ों में बर्फबारी बेहद कम है। हालात ये हैं कि कम बर्फबारी के कारण कश्मीर के गुलमर्ग में आयोजित होने वाले खेलो इंडिया विंटर गेम्स के पांचवें संस्करण को स्थगित करना पड़ा। वहीं हिमाचल प्रदेश में बर्फबारी और बारिश न होने की वजह से राज्य में सेब की खेती करने वाले किसान परेशान हैं।
हिमाचल में जनवरी में लगभग 84 फीसदी और फरवरी के 11 दिनों में 51 फीसदी तक कम बारिश हुई है। ऐसे में सेब की पैदावार पर असर पड़ने की संभावना है। मौसम विभाग के मुताबिक, कश्मीर के कई हिस्सों में इस साल बारिश और बर्फबारी में 90 फीसदी से ज्यादा कमी दर्ज की जा रही है। हिमाचल के बहुत से हिस्सों में भी बर्फबारी और बारिश में 50 फीसदी से ज्यादा की कमी है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बार पश्चिमी विक्षोभ तो काफी आए, लेकिन ज्यादातर पश्चिमी विक्षोभ काफी कमजोर थे। ऐसे में न तो बारिश हुई न बर्फबारी।
मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस साल बर्फबारी के समय अलनीनो लगभग प्रभावहीन हो गया था। इसके चलते बारिश और बर्फबारी में आयी। मौसम वैज्ञानिक समरजीत चौधरी कहते हैं, जलवायु परिवर्तन के चलते पिछले कुछ सालों में बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव आया है। सामान्य तौर पर बर्फबारी दिसंबर में शुरू हो जाती है। लेकिन साल 2023 में हिमालय के बहुत से हिस्सों में बर्फबारी जनवरी अंत में शुरू हुई और फरवरी तक चली। इस साल कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के बहुत से हिस्सों में बारिश और बर्फबारी सामान्य से बेहद कम है। दरअसल इस साल पश्चिमी विक्षोभ तो काफी संख्या में आए। लेकिन ज्यादातर काफी कमजोर थे। ऐसे में न तो बारिश हुई और न ही बर्फबारी। ऐसे में पहाड़ों में सूखे की स्थिति बनी हुई है।
पहाड़ों में घटती बर्फबारी का असर फसलों और बागवानी पर भी पड़ा है। जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट के पूर्व वैज्ञानिक डॉक्टर जेसी कुनियाल कहते हैं, सेब के पौधे में फूल आने के लिए जरूरी है कि न्यूनतम तापमान कम से कम 1200 घंटे तापमान 6 डिग्री से कम रहे। लेकिन घटती बर्फबारी से वैली वाले इलाको में तापमान बढ़ रहा है। इसी के चलते सेब और बहुत से ऐसे जंगली पेड़ पौधे जो तापमान को लेकर संवेदनशील हैं, वो ऊंचाई वाले इलाकों की ओर शिफ्ट हो रहे हैं।
पहाड़ों में हुई बर्फबारी पहाड़ के लोगों के लिए खेती के साथ ही पेय जल का भी बड़ा स्रोत है। चोटियों पर जमी बर्फ गर्मियों में धीरे-धीरे गलती है, जिससे पहाड़ों से बहने वाली नदियों में सालभर पानी बना रहता है। बर्फबारी में कमी आने वाले समय में पेयजल का संकट भी पैदा कर सकती है।
यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिकों का दावा है कि पहाड़ों में बर्फबारी और बारिश लाने वाले पक्षिमी विक्षोभ का पैटर्न बदला है। वो काफी देरी से आ रहे हैं। पिछले 70 वर्षों में अप्रैल से जुलाई तक वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की आवृत्ति 60% बढ़ गई है, जिससे बर्फबारी कम हो गई है और भारी बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। वेस्टर्न डिस्टर्बेंस जिन्हें सॉइक्लोनिक सर्कुलेशन के तौर पर भी जाना जाता है आमतौर पर दिसंबर से मार्च तक हिमालय में भारी बर्फबारी और बारिश लाते हैं। लेकिन साल 2023 में हिमालय में बर्फबारी जनवरी अंत में शुरू हुई।
वेदर एंड क्लाइमेट डायनेमिक्स जर्नल में छपे अध्ययन में बताया गया है कि उत्तरी भारत में महत्वपूर्ण बर्फबारी और वर्षा प्रदान करने वाले शीतकालीन तूफान काफी देर से आ रहे हैं। पिछले 70 सालों में पश्चिमी विक्षोभ का पैटर्न बदला है। सर्दियों की तुलना में गर्मी में पश्चिमी विक्षोभ बढ़े हैं। इससे विनाशकारी बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। लाखों भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण जल आपूर्ति भी कम हो गई है।
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिक और इस शोध के लेखक डॉ. कीरन हंट कहते हैं, “70 साल पहले की तुलना में जून में उत्तर भारत में अब तेज तूफान आने की संभावना दोगुनी है।” बर्फ की जगह भारी बारिश हो रही है। इससे घातक बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है जैसा कि हमने 2013 में उत्तराखंड में और 2023 में दिल्ली के आसपास देखा था।
द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट टेरी के वैज्ञानिक और लम्बे समय से पानी पर काम कर रहे डॉक्टर चंदर सिंह कहते हैं, रेनफॉल पैटर्न बदल रहा है। जनवरी के बाद ठंड कम हो जाती है। राजस्थान, उत्तराखंड हिमाचल और कई राज्यों में अचानक से भारी बारिश हो रही है। एयर का मूवमेंट तापमान से होता है। ग्लोबल एयर सर्कुलेशन और ग्लेबल ओशियन सर्कुलेशन चेंज हो रहा है। तापमान डेढ़ डिग्री तक बढ़ रहा है। कार्बन भी हीट को रोकता है। ग्रीन हाउस गैस बढ़ रही है। उनके हीट करने का पोटेंशियल ज्यादा है। जब भी चेंज आएगा। रेन भी इसी पर डिपेंड कर रहा है। इक्वेटर पर हवा गर्म होती है और पोल की तरफ जाती है। तापमान भारी होती है तो नीचे आती है। तापमान बढ़ने से कार्बन न्यूट्रेलिटी की बात हो रही है।
पश्चिमी विक्षोभ के चलते हिमालय के पहाड़ों में दिसंबर से मार्च के बीच अच्छी बर्फबारी होती है। ये बर्फ समय के साथ नीचे बठती जाती है और बर्फ की कई परतें बन जाती हैं जो गर्मी आने पर धीरे धीरे पिघलती हैं। हिमालय से निकलने वाली ज्यादातर नदियों में पानी का मुख्य स्रोत ग्लैशियर और पहाड़ों में जमी बर्फ के गलने से निकलने वाला पानी ही होती है। इस साल बर्फबारी बेहद कम है। ऐसे में गर्मियां शुरू होती ही थोड़ी बहुत बर्फ जो गिरी है वो तेजी से गलेगी, जिससे नदियों में अचानक पानी बढ़ जाएगा। इससे मैदानी इलाकों में बाढ़ की संभावना बढ़ेगी। वहीं पहाड़ों में बर्फ के जल्दी गल जाने से कुछ महीने के बाद नदियों के जल स्तर में तेजी से कमी आएगी। इस इससे कई इलाकों में पेयजल का संकट खड़ा हो सकता है