दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार जर्मनी में राइट विंग की सरकार ?

 दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार जर्मनी में राइट विंग की सरकार, दुनिया पर क्या पड़ सकता है इसका असर?

ताजा एग्जिट पोल के अनुसार इस बार जर्मनी में विपक्षी नेता फ्रेडरिक मर्ज की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU) और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (CSU) की सहयोगी पार्टियां जीत सकती है.

साल 2024 में दुनियाभर के 62 देशों में चुनाव हुए और कुल 25 देशों में दक्षिणपंथी सरकारों ने सत्ता संभाली. इन देश में सबसे दिलचस्प मुकाबला जर्मनी में देखने को मिल सकता है. दरअसल जर्मनी में 23 फरवरी को हुए राष्ट्रीय चुनाव में चांसलर ओलाफ स्कोल्ज की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) को करारी हार का सामना करना पड़ा है. 

ताजा एग्जिट पोल के अनुसार इस बार विपक्षी नेता फ्रेडरिक मर्ज की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU) और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (CSU) की सहयोगी पार्टियां जीत सकती है. यानी अगर मर्ज की पार्टी जीतती है तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहली बार होगा जब जर्मनी में कोई दक्षिणपंथी पार्टी सत्ता में लौटेगी. खास बात यह है कि फ्रेडरिक मर्ज ने फाइनल रिजल्ट का इंतजार भी नहीं किया और अमेरिका से ‘आजादी’ लेने की बात कर दी.

दरअसल अब तक यूरोपीय देशों में जर्मनी ही अमेरिका के सबसे करीबी पार्टनर रहा है. ऐसे में सत्ता में आने से पहले ही इस तरह के बयान ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया है. फ्रेडरिक मर्ज एक अटलांटिकवादी नेता माने जाते हैं- यानी एक ऐसे नेता जो यूरोपीय देशों और अमेरिका के बीच राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा मुद्दों पर घनिष्ठ गठबंधन की वकालत करता है.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या उनकी सरकार सत्ता में आती है तो अमेरिका, यूरोप, नाटो और खुद जर्मनी में कुछ बदलेगा?  इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि कौन-कौन से देश दक्षिणपंथ की इस लहर में शामिल हैं और इनका वैश्विक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ रहा है.

अमेरिका को लेकर ऐसे बयान देने के पीछे क्या हो सकती वजह 

फ्रेडरिक मर्ज का फाइनल रिजल्ट से पहले ही अमेरिका को लेकर इस तरह के बयान देने की कई वजहें हो सकती है. पिछले कुछ हफ्तों में, एलन मस्क और अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस जैसे लोगों ने मर्ज की विरोधी पार्टी AfD का समर्थन किया है. इसे जर्मनी के चुनाव में अमेरिकी हस्तक्षेप के रूप में देखा गया. 

इसके अलावा यूक्रेन-रूस युद्ध को खत्म करने के लिए ट्रंप सरकार ने जो कोशिशें की हैं उसने यूरोपीय देशों में चिंता में डाल दिया है. उन्हें यह लगता है कि वाशिंगटन ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन की कीमत पर मास्को के करीब जा रहा है. ट्रंप बिना यूरोपीय देशों को साथ लिए रूस से शांति समझौते की बात कर रहे हैं. ऐसे में जर्मनी अलग-थलग पड़ गया है. मर्ज का कहना है कि जर्मनी को भी इस सप्ताह वहां होना चाहिए था. मर्ज का कहना है कि जर्मनी के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह फिर से बड़े प्लेयर तौर पर उभरे.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार जर्मनी में राइट विंग की सरकार, दुनिया पर क्या पड़ सकता है इसका असर?

दुनिया में कहां-कहां दक्षिणपंथी सरकार का प्रभाव है

1. यूरोप में दक्षिणपंथ 

इटली: इस देश में साल 2022 में चुनाव हुए थे और तब से ही जॉर्जिया मेलोनी की की दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में है. इटली के साथ भी यह पहली बार हुआ था जब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद कोई राइट विंग की सरकार सत्ता में आई हो. मेलोनी की पार्टी ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ राष्ट्रवाद और पारंपरिक ईसाई मूल्यों को बढ़ावा देती है. उनकी नीतियां आप्रवासन पर सख्त नियंत्रण और यूरोपीय संघ की नीतियों से स्वतंत्रता पर केंद्रित हैं.

हंगरी: इस देश में काफी समय से विक्टर ओर्बान की पार्टी ‘फिडेस’सत्ता में है. यह सरकार यूरोपीय संघ की नीतियों से अलग अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने और प्रवासियों के प्रवेश को नियंत्रित करने पर जोर देती है.

पोलैंड: वहीं पोलैंड की सत्ताधारी पार्टी ‘लॉ एंड जस्टिस पार्टी’ दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचारधारा पर चल रही है. यह सरकार कैथोलिक परंपराओं, न्यायिक सुधारों और यूरोपीय संघ के नियमों पर स्वायत्तता बनाए रखने के लिए काम कर रही है.

2. अमेरिका और दक्षिणपंथी राजनीति

संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने दक्षिणपंथी विचारधारा को प्रमुख रूप से सामने रखा है. ट्रंप की नीतियां ‘अमेरिका फर्स्ट’ यानी सबसे पहले अमेरिका की भलाई और सुरक्षा पर जोर देती हैं. उनका मानना था कि अमेरिका को अपनी सीमाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए, और दुनिया के अन्य देशों से व्यापार करते समय अमेरिका के फायदे को प्राथमिकता देनी चाहिए

3. दक्षिण अमेरिका में दक्षिणपंथी उभार

दक्षिण अमेरिका के भी दो प्रमुख देश अर्जेंटीना और ब्राज़ील में दक्षिणपंथी सरकार है. अर्जेंटीना में जेवियर माइली सरकार भी मुक्त बाजार और कर कटौती को बढ़ावा देने के पक्ष में है. उनकी नीतियाँ आर्थिक सुधारों पर केंद्रित हैं, जो दक्षिणपंथी राजनीति की प्रमुख विशेषता है. जबकि ब्राजील के हाल ही में सत्ता से बाहर हुए जायर बोल्सोनारो की नीतियां अब भी इस देश में उतनी ही प्रभावी हैं. उनकी सरकार ने कानून-व्यवस्था, बंदूक रखने के अधिकार और पर्यावरण नीतियों में बदलाव पर ज़ोर दिया था.

4. एशिया में कहां कहां है दक्षिणपंथ की सरकार 

भारत: भारत में पिछले तीन बार सत्ता में आने वालीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भी हिंदू राष्ट्रवाद, आर्थिक सुधार और आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं. भारत में बीजेपी सरकार ने राष्ट्रवादी नीतियों को प्राथमिकता दी है, जिसका असर भारत की विदेश नीति और आंतरिक राजनीति में देखा जा सकता है.

इजराइल: इसके अलावा इजरायल में भी दक्षिणपंथी सरकार (बेंजामिन नेतन्याहू) सत्ता में है. 

दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार जर्मनी में राइट विंग की सरकार, दुनिया पर क्या पड़ सकता है इसका असर?

जर्मनी समाज पर दक्षिणपंथी सरकार का हो सकता है असर

इस सवाल के जवाब में पटना यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर सीमा श्रीवास्तव ने एबीपी से इस सवाल के जवाब में कहा कि, राइट विंग सरकारें आमतौर पर पारंपरिक मूल्यों, कड़े अप्रवासन नियमों और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देती हैं. ऐसे में जर्मनी के समाज में भी बदलाव देखने को मिल सकता है. जर्मनी ने लंबे समय तक विविधता और समावेशिता को बढ़ावा दिया है, खासकर उसके बड़े आप्रवासी समुदाय की वजह से. लेकिन, राइट विंग सरकारें आमतौर पर इन विचारों के खिलाफ होती हैं और समाज में ज्यादा एकरूपता की ओर झुकाव रखती हैं.

अगर जर्मनी में राइट विंग सरकार सत्ता में आती है, तो इस देश के आप्रवासन नीतियों में सख्ती आ सकती है. इसका मतलब है कि जर्मनी में काम करने के लिए या शरण लेने के लिए आने वाले प्रवासियों को ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. इसके अलावा, जर्मनी में सामाजिक नीतियां भी अधिक कठोर हो सकती हैं, जो देश में रहने वाले विभिन्न समूहों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर सकती हैं. 

जर्मनी की विदेश नीति में बदलाव

जर्मनी की विदेश नीति भी राइट विंग सरकार के आने के साथ बदल सकती है. अब तक इस देश ने यूरोपीय संघ, नाटो और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम किया है. लेकिन राइट विंग विचारधारा अक्सर इन संगठनों के प्रति ज्यादा आलोचनात्मक रही है. इसका एक उदाहरण हम हंगरी और पोलैंड के मामलों में देख सकते हैं, जहां राइट विंग सरकारें यूरोपीय संघ के नियमों के खिलाफ जा चुकी हैं. अगर जर्मनी भी इस दिशा में बढ़ता है, तो यूरोपीय संघ को इस बात पर विचार करना पड़ सकता है कि जर्मनी जैसे बड़े सदस्य देश का रुख यूरोपीय परियोजना के लिए क्या मायने रखता है.

जर्मनी और यूरोपीय संघ का भविष्य

जर्मनी यूरोपीय संघ (EU) का एक अहम हिस्सा है और अगर यहां की दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में आती है तो इसका असर यूरोपीय संघ पर गहरा हो सकता है. यूरोपीय संघ ने पिछले कुछ दशकों में जर्मनी को आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से यूरोप का एक नेता बना दिया है. जर्मनी की शक्ति और नेतृत्व ने यूरोपीय संघ को कई संकटों से उबारने में मदद की है, जैसे कि 2008 का आर्थिक संकट और 2015 का शरणार्थी संकट.

लेकिन, अगर जर्मनी में राइट विंग सरकार सत्ता में आती है, तो वह यूरोपीय संघ के नियमों और दिशा-निर्देशों के खिलाफ जा सकती है. यूरोपीय संघ के भीतर इससे तनाव बढ़ सकता है, खासकर उन देशों के साथ जिनकी नीतियां जर्मनी से अलग हैं. राइट विंग सरकारों का एक सामान्य रुझान है कि वे ज्यादा स्वतंत्रता और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देती हैं जो यूरोपीय संघ के सामूहिक निर्णयों से टकरा सकते हैं. इससे यूरोप में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता का खतरा भी बढ़ सकता है. 

वैश्विक राजनीति पर असर

जर्मनी के राइट विंग सरकार के गठन का असर सिर्फ यूरोप तक ही सीमित नहीं रहेगा. जर्मनी एक प्रमुख वैश्विक शक्ति है और उसकी विदेश नीति का असर पूरे विश्व पर पड़ता है. इस देश ने अब तक अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों के साथ मिलकर दुनिया की राजनीति में एक जिम्मेदार और सशक्त भूमिका निभाई है. लेकिन अगर जर्मनी में राइट विंग सरकार आती है, तो यह अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ रिश्तों को चुनौती दे सकती है.

राइट विंग सरकारें अक्सर वैश्विक सहयोग पर कम ध्यान देती हैं और अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों को प्राथमिकता देती हैं. इसका मतलब यह हो सकता है कि जर्मनी व्यापार, सुरक्षा और अन्य वैश्विक मुद्दों पर अमेरिका और अन्य देशों के साथ सहयोग में कमी देख सकता है. इसके अलावा, जर्मनी की नीतियों में अधिक संकोच और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाव हो सकता है, जो वैश्विक व्यापार और सहयोग को प्रभावित कर सकता है.

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जर्मनी में 80 साल बाद BJP जैसी पार्टी की वापसी, अमेरिका से भारत तक कहां-कहां हैं राइट विंग सरकार?

दुनिया भर में राजनीतिक परिदृशय लगातार बदल रहा है. हाल के वर्षों में कई देशों में दक्षिणपंथी विचारधारा वाली सरकारें सत्ता में आई हैं. जर्मनी में आगामी चुनावों के मद्देनजर दक्षिणपंथी राजनीति का प्रभाव और भविष्य एक अहम मुद्दा बना हुआ है. आइए जानते हैं कि किन देशों में दक्षिणपंथी सरकारें हैं और उनका वैश्विक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
जर्मनी में 80 साल बाद BJP जैसी पार्टी की वापसी, अमेरिका से भारत तक कहां-कहां हैं राइट विंग सरकार?

दुनिया में बढ़ता दक्षिणपंथ

2024 का साल राजनीति के लिए ऐतिहासिक रहा है. इस साल दुनिया के 62 देशों में चुनाव हुए, और इनमें से 25 देशों में दक्षिणपंथी सरकारों ने सत्ता संभाली. यह कुल चुनावों का 42.4% हिस्सा है. इन आंकड़ों के अनुसार, दक्षिणपंथी विचारधारा न केवल मजबूत हो रही है, बल्कि वैश्विक राजनीति का नया रुझान भी बनती जा रही है. इस बढ़ती लहर के बीच सबसे दिलचस्प मुकाबला जर्मनी में देखने को मिल सकता है.

23 फरवरी को होने वाले आम चुनावों से पहले ही चांसलर ओलाफ शुल्ज की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (SPD) गठबंधन प्री-पोल सर्वे में बुरी तरह पिछड़ रही है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार जर्मनी में दक्षिणपंथी और कट्टर राष्ट्रवादी पार्टी ‘अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी’ (AFD) तेज़ी से उभर रही है.

पिछले चुनाव में सातवें स्थान पर रहने वाली यह पार्टी इस बार सत्ता की दौड़ में दूसरे नंबर पर आ चुकी है. खासतौर पर 50 साल से कम उम्र के 70% युवा इसे वोट देने की बात कर रहे हैं. लेकिन सिर्फ जर्मनी ही नहीं, दुनिया के कई देशों में दक्षिणपंथी सरकारों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. तो चलिए, जानते हैं कि कौन-कौन से देश दक्षिणपंथ की इस लहर में शामिल हैं और इनका वैश्विक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ रहा है.

G20 में से तीन देशों में दक्षिणपंथ सरकारद बिजनेस लाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2024 में G20 के सात बड़े देशों में आम चुनाव हुए, जिनमें से तीन ने दक्षिणपंथी सरकार चुनी, तीन ने वामपंथी, और एक देश में सत्ता अधिनायकवाद की ओर मुड़ गई. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने जबरदस्त वापसी करते हुए सत्ता हासिल की, जबकि भारत में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाला केंद्र-दक्षिणपंथी गठबंधन, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA), एक बार फिर जीत का परचम लहराने में कामयाब रहा. भारतीय जनता पार्टी दक्षिणपंथ की राजनीति करती है.

वहीं, ब्रिटेन में सालों बाद सत्ता का रुख बदला और कीयर स्टार्मर की केंद्र-वाम लेबर पार्टी ने जोरदार जीत दर्ज की. दूसरी ओर, रूस में व्लादिमीर पुतिन ने बतौर स्वतंत्र नेता अपनी सत्ता बरकरार रखी, लेकिन देश की राजनीति एक नए, अधिक सख्त शासन की ओर मुड़ती नजर आई.

1. यूरोप में दक्षिणपंथ का बढ़ता प्रभावयूरोप में दक्षिणपंथी सरकारों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इटली, फिनलैंड, स्लोवाकिया, हंगरी, क्रोएशिया और चेक रिपब्लिक में दक्षिणपंथी नेता सत्ता में हैं. वहीं, स्वीडन और नीदरलैंड में उदारवादी सरकारें बेहद कमजोर स्थिति में हैं. यहां तक कि यूरोपीय संसद में भी दक्षिणपंथी दलों का दबदबा बढ़ता जा रहा है.

इटली: जॉर्जिया मेलोनी का नेतृत्व

इटली में 2022 से जॉर्जिया मेलोनी की दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में है. यह पहली बार है जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कोई राइट-विंग नेता इटली का प्रधानमंत्री बना है. मेलोनी की पार्टी ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ राष्ट्रवाद और पारंपरिक ईसाई मूल्यों को बढ़ावा देती है. उनकी नीतियाँ आप्रवासन पर सख्त नियंत्रण और यूरोपीय संघ की नीतियों से स्वतंत्रता पर केंद्रित हैं.

हंगरी: विक्टर ओर्बान की मजबूत पकड़

हंगरी में विक्टर ओर्बान की पार्टी ‘फिडेस’ लंबे समय से सत्ता में है. ओर्बान की सरकार यूरोपीय संघ की नीतियों से अलग अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने और प्रवासियों के प्रवेश को नियंत्रित करने पर जोर देती है.

पोलैंड: PiS पार्टी का दबदबा

पोलैंड में ‘लॉ एंड जस्टिस पार्टी’ (PiS) दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी विचारधारा पर चल रही है. यह सरकार कैथोलिक परंपराओं, न्यायिक सुधारों और यूरोपीय संघ के नियमों पर स्वायत्तता बनाए रखने के लिए काम कर रही है.

2. अमेरिका और दक्षिणपंथी राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी दक्षिणपंथी विचारधारा की प्रमुख प्रतिनिधि रही है. ट्रंप की नीतियाँ ‘अमेरिका फर्स्ट’, सीमाओं की सुरक्षा और व्यापारिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती हैं. 2024 के राष्ट्रपति चुनावों में ट्रंप की वापसी ने अमेरिका में दक्षिणपंथी राजनीति को और मजबूती दी है.

3. दक्षिण अमेरिका में दक्षिणपंथी उभारअर्जेंटीना: जेवियर माइली की सरकार

अर्जेंटीना में जेवियर माइली की सरकार भी दक्षिणपंथी नीतियों पर आधारित है. वे मुक्त बाजार और कर कटौती को बढ़ावा देने के पक्षधर हैं. उनकी नीतियाँ आर्थिक सुधारों पर केंद्रित हैं, जो दक्षिणपंथी राजनीति की प्रमुख विशेषता है.

ब्राज़ील: जायर बोल्सोनारो का प्रभाव

हालाँकि जायर बोल्सोनारो हाल ही में सत्ता से बाहर हुए हैं, लेकिन उनकी नीतियाँ अब भी ब्राज़ील में प्रभावी हैं. उनकी सरकार ने कानून-व्यवस्था, बंदूक रखने के अधिकार और पर्यावरण नीतियों में बदलाव पर ज़ोर दिया था.

4. एशिया में दक्षिणपंथ का प्रभावभारत: नरेंद्र मोदी का नेतृत्व

भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार हिंदू राष्ट्रवाद, आर्थिक सुधार और आत्मनिर्भर भारत की नीति को आगे बढ़ा रही है. भाजपा सरकार ने राष्ट्रवादी नीतियों को प्राथमिकता दी है, जिसका असर भारत की विदेश नीति और आंतरिक राजनीति में देखा जा सकता है.

इज़राइल: नेतन्याहू की सत्ता वापसी

इज़राइल में बेंजामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में है. उनकी नीतियाँ सुरक्षा, इजरायली संप्रभुता और फिलिस्तीनी मुद्दों पर कठोर रुख अपनाने पर केंद्रित हैं.

दक्षिणपंथी सरकारों का वैश्विक राजनीति पर प्रभावदक्षिणपंथी सरकारें आमतौर पर राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक संरक्षण और आर्थिक संरक्षणवाद पर जोर देती हैं. इनका प्रभाव वैश्विक राजनीति पर इस प्रकार पड़ता है:

अंतरराष्ट्रीय सहयोग में बदलाव: दक्षिणपंथी सरकारें बहुपक्षीय संगठनों (जैसे यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र) पर सवाल उठाती हैं और अपनी स्वतंत्रता को प्राथमिकता देती हैं.

आप्रवासन नीतियों में सख्ती: प्रवासियों पर कड़े प्रतिबंध लगाना और अपने देश की सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखना इनकी प्रमुख नीतियाँ हैं.

राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद: घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना और वैश्विक व्यापार संधियों पर पुनर्विचार करना इनकी विशेषता है.

रूढ़िवादी सामाजिक नीतियाँ: पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देना और प्रगतिशील सामाजिक एजेंडों का विरोध करना इनका प्रमुख एजेंडा है.

क्या दक्षिणपंथी राजनीति का यह दौर जारी रहेगा?प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट ग्लोबल इलेक्शंस इन 2024 के मुताबिक, राजनीतिक असंतोष और नेताओं पर अविश्वास ने दुनिया भर में लोकलुभावन (पॉपुलिस्ट) आंदोलनों को बढ़ावा दिया है. अमेरिका, जर्मनी और मेक्सिको में बढ़ते दक्षिणपंथ और वामपंथी पॉपुलिज्म का उभार इस प्रवृत्ति को दर्शाता है.

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