पेटेंट की दौड़ में भारत पीछे क्यों, राह में क्या हैं समस्याएं?
पेटेंट की दौड़ में भारत पीछे क्यों, राह में क्या हैं समस्याएं?
भारत में नए आइडिया और खोजों (इन्वेंशन) की सुरक्षा के लिए कानून पिछले दस सालों में काफी बेहतर हुए हैं. लेकिन 2024 में पेटेंट के लिए आवेदन कम हो गए हैं और बहुत कम पेटेंट को मंजूरी मिली है.
आजकल की दुनिया में नॉलेज यानी ज्ञान ही सबसे बड़ी ताकत है और नए आइडिया ही सबसे बड़ी पूंजी हैं. ऐसे में पेटेंट बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि यह नए अविष्कार की रक्षा करता है और लोगों को नई चीजें बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है. पेटेंट से लोगों को अपने काम का फायदा मिलता है और उन्हें नए आइडिया पर काम करने के लिए पैसे भी मिलते हैं.
वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइजेशन (WIPO) के मुताबिक, भारत में भी पेटेंट का चलन बढ़ रहा है. पिछले कुछ सालों में पेटेंट के लिए अप्लाई करने वालों की संख्या बढ़ी है. लेकिन, 2024 में पेटेंट के लिए आवेदन कम हो गए हैं और बहुत कम पेटेंट को मंजूरी मिली है.
सरकार ने IPR कानूनों को मजबूत बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन पेटेंट आवेदनों में कमी एक चिंता का विषय है. नए आइडिया को पेटेंट कराने के लिए लोग अब कम आवेदन दे रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत का नवाचार रुक गया है या क्या पेटेंट का जमाना खत्म हो रहा है?
क्या सही में पेटेंट आवेदन घटे?
पिछले कुछ सालों में पेटेंट के मामले में काफी कुछ बदला है. भारत अब पेटेंट के मामले में दुनिया में छठे नंबर पर आ गया है. 2023 में 64,480 लोगों ने पेटेंट के लिए अप्लाई किया था. 2013-14 में जहां 42,951 लोगों ने पेटेंट के लिए अप्लाई किया था. वहीं 2023-24 में 92,168 लोगों ने अप्लाई किया और 103,057 को पेटेंट मिला. पिछले साल पुराने पेटेंट के आवेदनों को भी मंजूरी दी गई, इसलिए इतने सारे पेटेंट मिले.
एक अच्छी बात यह भी है कि अब ज्यादातर पेटेंट भारत के ही लोगों को मिल रहे हैं. पहले तो विदेशी कंपनियां और लोग ही पेटेंट कराते थे. पिछले दस सालों में भारत के लोगों के पेटेंट की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है. 2013-14 में 25.5% से बढ़कर 2023-24 में 56% हो गई है. लेकिन 2024-25 में 78,264 लोगों ने पेटेंट के लिए अप्लाई किया और सिर्फ 26,083 को ही पेटेंट मिला. मतलब, पेटेंट मिलना थोड़ा मुश्किल हो गया है.
2024-25 में पेटेंट के लिए आवेदन क्यों घट गए?
भारत में पेटेंट आवेदन की संख्या 2024-25 में अचानक कम हो गई, जो इनोवेशन और स्टार्टअप इकोसिस्टम के लिए चिंता का विषय है. हाल के सालों में सरकार ने बौद्धिक संपदा (IPR) को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए, फिर भी पेटेंट फाइलिंग में गिरावट देखने को मिली. इस गिरावट के पीछे कई वजहें हो सकती हैं.
2024 में पेटेंट नियमों में कुछ बदलाव किए गए थे. हो सकता है कि इन बदलावों के कारण कुछ लोगों को पेटेंट के लिए आवेदन करने में दिक्कत हुई हो. हो सकता है कि निवेशक रिस्क लेने से बच रहे हैं या स्टार्टअप्स के पास पेटेंट फाइल करने के लिए जरूरी फंड नहीं बचा. ये भी संभव है कि कंपनियां अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) बजट में कटौती कर रही हैं, जिससे पेटेंट आवेदन घटे हैं.
एक वजह ये भी है कि भारत में पेटेंट आवेदन की प्रक्रिया लंबी और पेचीदा है. आमतौर पर पेटेंट मिलने में 4 से 7 साल लग जाते हैं. छोटी कंपनियां और स्टार्टअप्स इस देरी की वजह से पेटेंट फाइल करने से बचते हैं. कई कंपनियां अब पेटेंट लेने के बजाय ट्रेड सीक्रेट अपनाने लगी हैं. पेटेंट की समयसीमा 20 साल होती है, जिसके बाद कोई भी उस तकनीक को इस्तेमाल कर सकता है. अगर कोई कंपनी बिना पेटेंट लिए तकनीक को छुपाकर रखती है, तो वह लंबे समय तक उसका फायदा उठा सकती है.
भारत में ट्रेडमार्क आवेदकों की कैसी स्थिति
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रेडमार्क आवेदनों में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है. अमेरिका, चीन और रूस सबसे आगे हैं. 2016-17 में जहां 2 लाख ट्रेडमार्क के लिए आवेदन किए गए थे, वहीं 2023-24 में यह संख्या बढ़कर 4.8 लाख हो गई है. लेकिन पिछले कुछ सालों में इसमें ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है.
भले ही लोग ट्रेडमार्क के लिए ज्यादा अप्लाई कर रहे हैं लेकिन पिछले कुछ सालों से मिलने वाले ट्रेडमार्क की संख्या 2.5 लाख से 3 लाख के बीच लगभग एक जैसी ही है. वहीं, इंडस्ट्रियल डिजाइन एप्लीकेशन की संख्या 36.4% बढ़ी है.
पेटेंट ऑफिस में कर्मचारियों की कमी: भारत के लिए एक बड़ी चुनौती
भारत में पेटेंट और दूसरे बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के मामलों को देखने वाले दफ्तर में काफी कम लोग काम करते हैं. 2022 में एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत के पेटेंट ऑफिस में बहुत कम लोग काम करते हैं. 2014-15 में तो सिर्फ 272 लोग ही थे. ये संख्या चीन (13,704) और अमेरिका (8,132) के मुकाबले बहुत कम है.
लेकिन अब अच्छी बात यह है कि 553 नए लोग पेटेंट ऑफिस में काम करने आ रहे हैं. 2025 के आखिर तक कुल 1386 लोग पेटेंट ऑफिस में काम करेंगे. इन लोगों की पिछले साल भर्ती हुई थी. नागपुर और हैदराबाद में ट्रेनिंग चल रही है.
भारत में पेटेंट: क्या है चुनौतियां?
भारत में पेटेंट और इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं. इसकी वजह से यह सफर थोड़ा मुश्किल हो जाता है. असर में यहां रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) पर जितना पैसा खर्च होता है, वह बहुत कम है. यह जीडीपी का सिर्फ 0.65% है, जबकि अमेरिका में 3.6%, चीन में 2.4% और सिंगापुर में 2.2% है. R&D में प्राइवेट कंपनियों का योगदान सिर्फ 36% है, जबकि अमेरिका में 79% और चीन में 77% है. भारत की कई बड़ी कंपनियां दुनिया भर में काम करती हैं, लेकिन R&D में बहुत कम पैसा लगाती हैं, जिससे पेटेंट के लिए कम आवेदन होते हैं.
अगर रिसर्च और डवलपमेंट में पैसा नहीं लगेगा, तो नए आइडिया और इन्वेंशन भी कम होंगे. नए आइडिया और इन्वेंशन से ही देश की तरक्की होती है. अगर ये कम होंगे, तो देश की तरक्की भी धीमी हो सकती है. अगर भारत R&D में निवेश नहीं बढ़ाएगा, तो दूसरे देश नवाचार के मामले में आगे निकल जाएंगे.
वहीं, पेटेंट ऑफिस में काम करने वाले लोग कम हैं, जिससे पेटेंट मिलने में बहुत समय लगता है. कई लोग पेटेंट के लिए सही से अप्लाई नहीं करते. उनका रिसर्च कमजोर होता है या फिर वो दूसरों के आइडिया चुराते हैं. स्टार्टअप्स के पास तो पैसे की भी कमी होती है. तो ऐसे में वह पेटेंट के लिए अप्लाई नहीं कर पाते हैं. आजकल तो कोई भी चीज इंटरनेट से कॉपी कर सकता है. कई लोग बिना नाम बताए पेटेंट चोरी करते हैं और कई बार तो यह चोरी दूसरे देशों से भी होती है. तो ऐसे में पेटेंट बचाना बहुत मुश्किल हो जाता है.