उत्तराखंड …बाहरी लोग जमीन न खरीदें ?

उत्तराखंड के गांवों में लगे बोर्ड-बाहरी लोग जमीन न खरीदें
गांववाले बोले- हिमाचल जैसा कानून बने, नहीं तो पहाड़ में पहाड़ी ही नहीं बचेंगे

‘बाहर से आए माफिया पैसे और ताकत के दम पर गांव की जमीनें कब्जा रहे हैं। गांववाले उनसे डरकर रहते हैं। पहाड़ी लोग वैसे भी सीधे होते हैं। हमारे गांव में जमीन के विवाद में झगड़े हो चुके हैं। कई बार तो फायरिंग भी हुई है।’

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के ढरसाल गांव में रहने वाले पूर्णानंद भट किसान हैं। कई साल तक भूमि कानून की मांग वाले आंदोलन से जुड़े रहे। बीती 21 फरवरी को उनकी मांग पूरी हो गई। उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने जमीन की खरीद-फरोख्त के नए कानून को मंजूरी दे दी। इसके तहत राज्य के 11 जिलों में बाहरी लोग खेती और बागवानी के लिए जमीन नहीं ले सकेंगे।

हालांकि, लोगों की एक मांग अब भी अधूरी है। वे हिमाचल प्रदेश की तरह सख्त कानून चाहते हैं। हिमाचल में जमीन की खरीद-फरोख्त से जुड़ा टेनेंसी एक्ट लागू है। इसकी धारा-118 के तहत कोई भी गैर हिमाचली व्यक्ति राज्य में जमीन नहीं खरीद सकता। खेती की जमीन खरीदने की परमिशन तभी मिल सकती है, जब खरीदार किसान हो और कम से कम 20 साल से हिमाचल में रह रहा हो।

लोगों ने गांव में बोर्ड लगाएं हैं, जिनमें लिखा है कि कोई भी किसान बाहरी व्यक्ति को जमीन न बेचे। ऐसा करने वालों का बहिष्कार किया जाएगा। उनका कहना है कि आज हमारे पहाड़ बिक रहे हैं। हमारे पास पानी, जंगल और जमीन ही है। अगर ये भी हाथ से निकल जाएगा तो हमारे पास अपना क्या बचेगा।

   

उत्तराखंड में लैंड-लॉ लागू होने से पहले क्या-क्या हुआ… दूसरे राज्यों से आए लोगों ने जमीनें खरीदी, गांववाले परेशान पूर्णानंद भट बताते हैं, ‘अब तक दूसरे राज्य से आया कोई भी व्यक्ति गांव में जमीन खरीद सकता था। बाहर से आए लोग जमीनें खरीदकर समझते हैं कि उन्होंने पूरा गांव खरीद लिया है। वे हमें परेशान करते हैं। विवाद होने पर गांववालों पर FIR करवा दीं। हम अपनी ही जमीन पर मजदूर नहीं बनना चाहते।’

‘विवाद बढ़ने लगे तो गांववालों ने गांव में बोर्ड लगा दिया कि ग्राम पंचायत ढरसाल में जमीनों की खरीद फरोख्त प्रतिबंधित है। अगर कोई चुपके से जमीन बेचता है, तो जमीन मालिक का बहिष्कार किया जाएगा। जमीन खरीदने वाले पर भी पूरी तरह प्रतिबंध होगा। इसकी पूरी जिम्मेदारी जमीन खरीदने और बेचने वाले की होगी।’

ढरसाल गांव में जमीन खरीदने और बेचने पर पाबंदी है। इसकी पूरी जिम्मेदारी जमीन खरीदने और बेचने वाले की होगी। गांववालों ने बोर्ड पर ये लिखवा भी रखा है।
ढरसाल गांव में जमीन खरीदने और बेचने पर पाबंदी है। इसकी पूरी जिम्मेदारी जमीन खरीदने और बेचने वाले की होगी। गांववालों ने बोर्ड पर ये लिखवा भी रखा है।

‘बाहरियों का दखल बढ़ा, खेत से चारा काटना भी मुश्किल ढरसाल गांव की रहने वाली कविता भट खेती करती हैं। हर दिन खेतों से पशुओं के लिए चारा लाती हैं। कविता कहती हैं, ‘बीते कुछ साल में गांव में दिक्कतें बढ़ गई हैं। पहले हम खेतों से चारा काट लाते थे। अब बाहरी लोगों ने जमीनें खरीदी हैं, वे रोक-टोक करते हैं।’

‘कई बार ये लोग वीडियो बना लेते हैं। उनसे डर भी लगता है। मैं नहीं चाहती कि गांव की जिंदगी में बाहरी लोगों का दखल बढ़े। उन लोगों ने जो जमीनें खरीदी हैं, वो हमारे खेत के रास्ते में हैं। उन्होंने हमारा निकलना मुश्किल कर दिया है। हमारे खिलाफ पुलिस में भी शिकायत कर दी।’

ये सिर्फ ढरसाल गांव की कहानी नहीं है। उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में लैंड-लॉ सख्त बनाने की मुहिम चल रही है।

उत्तराखंड के दोनों रीजन कुमाऊं और गढ़वाल में लैंड-लॉ की मांग को लेकर आंदोलन होते रहे हैं। गांवों में बाहरियों का दखल बढ़ने से लोग यहां परेशान हैं।
उत्तराखंड के दोनों रीजन कुमाऊं और गढ़वाल में लैंड-लॉ की मांग को लेकर आंदोलन होते रहे हैं। गांवों में बाहरियों का दखल बढ़ने से लोग यहां परेशान हैं।

लैंड-लॉ को लेकर जागरूकता फैला रहे, ताकि बाहरियों का कब्जा कम हो टिहरी गढ़वाल के धारकोट गांव में रहने वाले मेहरबान नेगी पूर्व सरपंच हैं। वे अपने गांव और आसपास के इलाकों में जाकर लोगों को लैंड-लॉ के बारे में समझा रहे हैं। उन्हें अलर्ट कर रहे हैं।

वे कहते हैं, ‘कारोबारी और अमीर लोग बाहर से आकर पहाड़ों पर जमीनें खरीद रहे हैं। ये लोग छोटे किसानों से सस्ते में जमीनें खरीदकर ऊंची कीमत पर बेच रहे हैं। पिछले कुछ साल में ये चलन बहुत बढ़ गया। इससे यहां का पूरा सिस्टम बिगड़ गया है।’

मेहरबान नेगी अपने गांव का उदाहरण देते हैं, ‘हमारे गांव में जिन जमीनों का ठीक-ठीक हिसाब नहीं होता, वो संटारे-बंटारे की जमीन कहलाती है। मतलब दो भाइयों में मौखिक रूप से बंटवारा हो गया और उसी के आधार पर दशकों से कब्जा चलता आ रहा है।‘

‘कुछ लोगों ने जमीन बेचनी शुरू कीं। कागजों में तो वो जमीन उनके पास है, लेकिन उस पर कब्जा किसी और का है। इसकी वजह से विवाद शुरू हो गया, मारपीट हो रही है।’

’पहाड़ी गांव में जमीन लोगों की सबसे बड़ी धरोहर है। अगर उत्तराखंड में इसी तरह हमारी जमीनें बिकती रहीं, तो हम तो मजदूर बनकर रह जाएंगे।’

उत्तराखंड का नया लैंड-लॉ…. बाहरी लोग खेती और बागवानी के लिए जमीन नहीं ले सकेंगे नए लैंड-लॉ की मांग को देखते हुए उत्तराखंड की धामी सरकार करीब तीन साल से इस पर काम कर रही थी। विधानसभा में 21 फरवरी को नए लैंड-लॉ विधेयक को मंजूरी दे दी गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950 संशोधन विधेयक पेश किया, जो बहुमत से पास हो गया ।

2022 में CM धामी ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी, जिसकी रिपोर्ट पर नया लैंड-लॉ तैयार किया गया है। नए कानून पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने X पर लिखा, ‘देवभूमि की सांस्कृतिक विरासत, पर्यावरण संतुलन और आमजन के अधिकारों की रक्षा के लिए सख्त भू-कानून जरूरी था।’

CM धामी ने कहा कि नए कानून से उत्तराखंड में बाहरी लोगों के बेहिसाब जमीन खरीदने पर रोक लगेगी। पहाड़ी इलाकों में जमीन का बेहतर प्रबंधन होगा ताकि प्रदेश के लोगों को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले। जमीन की कीमतों में बेलगाम बढ़ोतरी पर कंट्रोल रहेगा। राज्य के मूल निवासियों को जमीन खरीदने में सहूलियत होगी। सरकार को जमीन की खरीद-बिक्री पर ज्यादा कंट्रोल हासिल होगा, जिससे गड़बड़ियां रुकेंगी।

सीनियर एडवोकेट बोले- कानून का अभी कोर्ट में टेस्ट होना बाकी नैनीताल हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट कार्तिकेय हरि गुप्ता कहते हैं, ‘उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश वाला जमीदारीं उन्मूलन कानून ही लागू हुआ। उत्तराखंड में इसी कानून में सेक्शन-154 में संशोधन किया गया और ये 2003 से लागू हुआ।’

‘कानून के मुताबिक, जो लोग 2003 के पहले यहां जमीन खरीद चुके थे, उन पर ये लागू नहीं होगा। 2003 के बाद से यहां कोई बाहरी एक सीमा (करीब 5 नाली यानी 2,160 वर्ग फुट) से ज्यादा जमीन नहीं खरीद सकता है। अगर खेती के लिए इससे ज्यादा जमीन खरीदनी है, तो DM से इजाजत लेनी होती है। वहीं, जमीन अगर इंडस्ट्री के लिए चाहिए, तो उसकी इजाजत राज्य सरकार से मिलती है।‘

‘जमीन कोई ऐसी चीज नहीं है कि कोई आएगा और खरीदकर ले जाएगा। अगर किसी ने उत्तराखंड में आकर जमीन खरीदी है, तो वो उस जमीन को डेवलप करेगा या इंडस्ट्री लगाएगा या फिर किसी और को बेचेगा। हर हाल में उत्तराखंड का ही फायदा होगा।‘

वे आगे कहते हैं, ‘उत्तराखंड इसी देश का हिस्सा है, ऐसे में कोई भी नागरिक यहां आकर जमीन खरीद सकता है। इसके खिलाफ कानून लाना मुश्किल है।‘

‘आर्टिकल 14, 19 और 21 के पैमाने पर कोर्ट टेस्ट करेगी तो इसको जस्टिफाई करना मुश्किल होगा। अगर भारत का कोई भी राज्य ऐसा कानून बनाता है, चाहे वो पहाड़ी हो या गैर पहाड़ी। इस कानून को कोर्ट में चुनौती मिलेगी।‘

लोग बोले- हिमाचल प्रदेश जैसा सख्त कानून चाहिए

फिर से लौटते हैं ढरसाल गांव। यहां गांव की बीडीसी मेंबर रजनी भट भी नए कानून को लेकर मुखर हैं। वो कहती हैं, ‘बाहरी लोगों के जमीन खरीदने की वजह से गांव में दिक्कत होती रहती है। जमीन खरीदने वाले अलग संस्कृति से आते हैं। उन्हें पहाड़ी जीवन और यहां की रीतियों के बारे कुछ पता नहीं होता।‘

‘हम उत्तराखंड सरकार से मांग कर रहे हैं कि सख्त कानून बनाए। अभी जिस कानून पर बात चल रही है वो उतना सख्त नहीं है। हमें हिमाचल प्रदेश जैसा कानून चाहिए है, ताकि हम अपनी जमीनें अपनी मर्जी से बेच सकें।‘

इसके बाद हम न्यू टिहरी के रहने वाले अमित पंत से मिले। उन्हें टिहरी बांध प्रोजेक्ट की वजह से अपना घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ा था। अमित भूमि कानून आंदोलन से जुड़ी कमेटी के साथ काम करते हैं।

अमित कहते हैं ‘मैंने अपना घर छोड़कर विस्थापन झेला है। मैं इसका दर्द जानता हूं। हम अपना सब कुछ पीछे छोड़कर आ तो गए, लेकिन सालों बाद भी अपनी जमीन छोड़ने का दर्द सताता है।’

अमित भावुक होकर कहते हैं, ‘अब टिहरी झील लोगों के लिए टूरिस्ट स्पॉट है। पूंजीपति बाहर से आकर आसपास की जमीनें खरीद रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में बड़े-बड़े होटल और रिसॉर्ट बन रहे हैं। हम इन्हें उत्तराखंड आने से नहीं रोक सकते, लेकिन वे कानून के तहत आएं।’

देवेंद्र नौडियाल भी टिहरी के रहने वाले हैं। वे भू-भूमिहार जागृति मंच से जुड़े हैं। ये समिति उत्तराखंड में जमीन से जुड़े कानून की मुहिम चला रही है। देवेंद्र कहते हैं, ’हमने पिछले सालों में देखा है कि दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों से लोग आकर हमारे शहरों और गांवों की जमीनें खरीद रहे हैं। इससे उत्तराखंड के पहाड़ों पर डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है।’

’हमारी मांग है कि एक सख्त कानून बनाकर हमारे अधिकारों की रक्षा की जाए। उससे ज्यादा जरूरी ये है कि बाहरी लोगों के आने से हमारी संस्कृति, भाषा पर संकट बढ़ रहा है, उन्हें भी बचाया जाए।’

‘पूरे उत्तराखंड में एक जैसा कानून लागू हो’ उत्तराखंड में नए कानून को लेकर हमने मूल निवास भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के सह संयोजक लुसुन टोडारिया से भी बात की। उनसे कुछ सवाल किए।

सवाल: उत्तराखंड सरकार नया कानून लेकर आई है, क्या वो आपकी मांगों के मुताबिक है?

जवाब: नया कानून हमारी मांग से बिल्कुल अलग है। हमने मांग की थी कि पूरे उत्तराखंड में एक जैसा कानून लागू हो। अभी हरिद्वार और उधमसिंह नगर को नए कानून से अलग रखा गया है। दूसरी बात ये है कि नगर निकायों को कानून के दायरे में नहीं रखा गया है। उत्तराखंड में ज्यादातर जमीनें नगर निगम, निकायों और पंचायतों में आती हैं।

 

सवाल: क्या आप चाहते हैं कि उत्तराखंड में हिमाचल जैसा कानून हो?

जवाब: हिमाचल प्रदेश का भूमि कानून हिमालयी राज्यों के लिए नजीर है। वहां धारा 118 का प्रावधान है, जिसके मुताबिक कोई भी बाहरी व्यक्ति खेती की जमीन नहीं खरीद सकता। हमारी भी यही मांग थी कि खेती की जमीन खरीदने की इजाजत किसी को भी ना हो।‘

‘BJP के प्रदेश अध्यक्ष कह रहे हैं कि उत्तराखंड का नया कानून हिमाचल के कानून से भी सख्त है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। जो लैंड लॉ उत्तराखंड सरकार लाई है, प्रॉपर्टी डीलर्स ने उसके लूप होल्स ढूंढ लिए हैं और उन्हें पता है कि अब कैसे चतुराई से जमीन खरीदनी है।‘

उत्तराखंड की डेमोग्राफी बदलने का BJP का दावा उत्तराखंड में BJP डेमोग्राफी बदलने का मुद्दा उठाती रही है। सितंबर 2024 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने DGP से मिलकर वेरिफिकेशन ड्राइव चलाने के लिए कहा था। इसके तहत पुलिस ने बाहर से उत्तराखंड में आकर रह रहे लोगों के डॉक्यूमेंट वेरिफाई किए।

उत्तराखंड पुलिस ने करीब एक महीने वेरिफिकेशन ड्राइव चलाई और बाहर से उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों में बसे लोगों से पूछताछ की गई। तब DGP ने कहा था-

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2011 के बाद से जनगणना नहीं हुई है। हालांकि, उत्तराखंड के पहाड़ी लोगों में चिंता बढ़ी है कि बाहरी लोगों के लगातार आकर बसने की वजह से राज्य की डेमोग्राफी में बदलाव आ रहा है।

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गलत तरीके से जमीनें खरीदीं, रिसॉर्ट बनाने वालों पर केस उत्तराखंड में गलत तरीके से जमीन खरीदकर रिसॉर्ट, होटल और लग्जरी विला बनाने वालों के खिलाफ सरकार सख्त है। CM पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर राज्य के सभी जिलों इस पर एक जांच रिपोर्ट बनाई गई। नवंबर, 2024 की इस रिपोर्ट में नैनीताल जिले में भूमि कानूनों के उल्लंघन के 64 केस सामने आए। SDM कोर्ट में केस दायर कर खरीददारों को नोटिस जारी किए गए।

इनमें से ज्यादातर केस नैनीताल, रामनगर, भीमताल, भवाली, रामगढ़, धानाचूली और मुक्तेश्वर जिलों के हैं। उत्तराखंड के पुराने भू-कानून के मुताबिक, राज्य के बाहर के लोग यहां सिर्फ 250 वर्ग मीटर तक ही जमीन खरीद सकते हैं। ज्यादा जमीन खरीदने के लिए DM या सरकार से परमिशन जरूरी है।

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