अंतरिक्ष बन रहा है युद्ध का नया मैदान ?
अंतरिक्ष बन रहा है युद्ध का नया मैदान; अमेरिका और चीन के मुकाबले भारत कहां खड़ा हैं?
अंतरिक्ष अब केवल खोज का क्षेत्र नहीं रहा. पहले लोग अंतरिक्ष को सितारों, ग्रहों और वैज्ञानिक खोजों के लिए देखते थे. लेकिन अब यह एक ऐसी जगह बन रही है, जहाँ देश अपनी ताकत दिखाने और सुरक्षा के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. बड़े-बड़े देश अंतरिक्ष में हथियार और सुरक्षा प्रणालियाँ बना रहे हैं. इसका मतलब है कि अंतरिक्ष अब युद्ध का मैदान भी बन सकता है. भारत, जो अंतरिक्ष में बहुत कुछ हासिल कर चुका है, अब एक बड़े सवाल के सामने खड़ा है. उसे अपनी सुरक्षा के लिए तेजी से कदम उठाने होंगे.
भारत ने अंतरिक्ष में कई बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं. उसने उपग्रह लॉन्च किए, चंद्रमा पर मिशन भेजे और 2019 में ‘मिशन शक्ति’ के जरिए अपनी ताकत दिखाई. इस मिशन में भारत ने एक उपग्रह को नष्ट करके अपनी क्षमता साबित की. लेकिन दूसरे देश भी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. कुछ देशों ने ऐसी तकनीकें बनाई हैं, जो भारत के उपग्रहों को नुकसान पहुँचा सकती हैं. इसलिए भारत को अपनी रक्षा के लिए और मेहनत करनी होगी.
अंतरिक्ष में युद्ध का मतलब केवल हथियारों से हमला करना नहीं है. यह कई तरह से हो सकता है. मिसाल के तौर पर, कोई देश साइबर हमले करके उपग्रहों को खराब कर सकता है. 2022 में रूस और यूक्रेन के युद्ध के दौरान ऐसा ही हुआ, जब एक उपग्रह पर साइबर हमला किया गया. इससे सारी जानकारी और संचार बाधित हो गया. यह तरीका सस्ता है और इसे छिपाना भी आसान है. इसके अलावा, कुछ उपग्रह जो दिखने में सामान्य लगते हैं, वे सैन्य जानकारी इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल होते हैं. चीन के कुछ उपग्रह ऐसा ही काम करते हैं.
अब निजी कंपनियाँ भी अंतरिक्ष में बड़ी भूमिका निभा रही हैं. उदाहरण के लिए, यूक्रेन में युद्ध के दौरान एक कंपनी ने अपने उपग्रहों से तस्वीरें और संचार की सुविधा दी. इससे युद्ध में मदद मिली. लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या ये कंपनियाँ युद्ध को और जटिल बना रही हैं. अंतरिक्ष में बढ़ता कचरा भी एक बड़ी समस्या है. जब कोई उपग्रह नष्ट होता है, तो उसका मलबा अंतरिक्ष में फैल जाता है. यह मलबा दूसरे उपग्रहों को नुकसान पहुँचा सकता है. यूरोप की एक संस्था के अनुसार, 2024 तक अंतरिक्ष में 36,500 से ज्यादा बड़े मलबे के टुकड़े मौजूद थे. अगर यह मलबा बढ़ता गया, तो अंतरिक्ष में काम करना मुश्किल हो सकता है.
भारत के सामने कई चुनौतियाँ हैं. अगर दूसरे देश अंतरिक्ष में और ताकतवर हो गए, तो भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है. भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अभी भी कुछ क्षेत्रों में पीछे है. मिसाल के तौर पर, भारत के पास अभी उतनी अच्छी तकनीक नहीं है, जितनी चीन या अमेरिका के पास है. भारत का अंतरिक्ष बजट भी इन देशों की तुलना में कम है. भारत का अंतरिक्ष संगठन इसरो हर साल लगभग 1.6 बिलियन डॉलर खर्च करता है, जबकि अमेरिका का नासा 25 बिलियन डॉलर से ज्यादा और चीन का अंतरिक्ष संगठन 18 बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च करता है. इससे भारत को नई तकनीक बनाने में मुश्किल होती है.
अंतरिक्ष में युद्ध को रोकने के लिए कोई सख्त नियम नहीं हैं. 1967 में बनी एक संधि कहती है कि अंतरिक्ष में बड़े हथियार नहीं रखे जा सकते. लेकिन यह संधि छोटे हथियारों या अन्य तकनीकों को नहीं रोकती. दुनिया भर में इस बात पर सहमति नहीं है कि अंतरिक्ष को कैसे सुरक्षित रखा जाए. इससे देश बिना किसी रोक-टोक के अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं. भारत को भी इस स्थिति में सावधान रहना होगा.
भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी अंतरिक्ष बहुत जरूरी है. भारत का अंतरिक्ष उद्योग तेजी से बढ़ रहा है. अनुमान है कि 2025 तक यह 13 बिलियन डॉलर का हो जाएगा. लेकिन अगर अंतरिक्ष में युद्ध बढ़ा, तो भारत के उपग्रहों को खतरा हो सकता है. इससे व्यापार और सहयोग पर असर पड़ेगा. बीमा की लागत भी बढ़ सकती है. इसलिए भारत को अपनी रक्षा और अर्थव्यवस्था, दोनों को बचाने के लिए कदम उठाने होंगे.
इसके लिए भारत को कई काम करने चाहिए. सबसे पहले, भारत को एक खास अंतरिक्ष कमांड बनाना चाहिए, जो केवल अंतरिक्ष की सुरक्षा पर ध्यान दे. दूसरा, भारत को अपनी तकनीक को और बेहतर करना होगा. उसे ऐसी प्रणालियाँ बनानी होंगी, जो साइबर हमलों और अन्य खतरों से बचा सकें. तीसरा, भारत को अंतरिक्ष में होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखने की क्षमता बढ़ानी होगी. इसके लिए जमीन पर रडार और अंतरिक्ष में कैमरे लगाने होंगे. चौथा, भारत को एक स्पष्ट नीति बनानी होगी, जिसमें यह बताया जाए कि वह अंतरिक्ष में क्या करेगा और क्या नहीं.
इसके अलावा, भारत को अपने वैज्ञानिकों, सेना और निजी कंपनियों को एक साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इससे नई तकनीक जल्दी बन सकेगी. भारत को दुनिया के अन्य देशों के साथ मिलकर अंतरिक्ष के नियम बनाने में भी हिस्सा लेना चाहिए. इससे अंतरिक्ष को युद्ध का मैदान बनने से रोका जा सकता है. साथ ही, भारत को साइबर सुरक्षा और नई तरह के संचार, जैसे क्वांटम संचार, में भी निवेश करना चाहिए.
भारत के एक बड़े सैन्य अधिकारी, जनरल अनिल चौहान, ने कहा है कि अब युद्ध में जीत के लिए अंतरिक्ष में ताकत जरूरी है. यह बात सही है, क्योंकि आज के युद्ध केवल जमीन या समुद्र पर नहीं लड़े जाते. अंतरिक्ष में जो देश मजबूत होगा, वह युद्ध में भी आगे रहेगा. दुनिया के बड़े देश इस दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं. अमेरिका ने अपनी अंतरिक्ष सेना बनाई है, जो हर साल बहुत सारा पैसा नई तकनीक पर खर्च करती है. चीन ने भी अपनी सेना में अंतरिक्ष को शामिल किया है, जिससे उसे युद्ध में फायदा मिल सकता है.
भारत को भी अब और इंतजार नहीं करना चाहिए. उसे न केवल अपनी रक्षा के लिए, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था और भविष्य के लिए भी अंतरिक्ष में मजबूत होना होगा. अगर भारत ने सही समय पर सही कदम नहीं उठाए, तो वह पीछे रह सकता है. लेकिन अगर भारत ने मेहनत की और अपनी ताकत बढ़ाई, तो वह अंतरिक्ष में एक जिम्मेदार और शक्तिशाली देश बन सकता है.
अंतरिक्ष अब केवल सपनों की दुनिया नहीं है. यह एक ऐसी जगह है, जहाँ देश अपनी ताकत, अपनी सुरक्षा और अपने भविष्य के लिए लड़ रहे हैं. भारत को इस नई दुनिया में अपनी जगह बनानी होगी. इसके लिए उसे हिम्मत, मेहनत और सही योजना की जरूरत है. अगर भारत ऐसा कर सका, तो वह न केवल अपने लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन सकता है.