भारत और पाकिस्तान के बीच ‘जल विवाद’ की पूरी पिक्चर का नाम है ‘सिंधु घाटी जल समझौता’, आराम से पढ़िए पूरी कहानी

भारत के पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे का कहना है कि इस समझौते (Treaty) को रद्द करने से पाकिस्तान (Pakistan) को उसके अधिकारों से वंचित किया जा सकता है लेकिन इससे बड़ा विवाद (Dispute) पैदा हो सकता है.

सिंधु नदी

भारत-पाकिस्तान (India-Pakistan) के बीच सीमा पर विवाद के चलते अक्सर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संबंध तनावपूर्ण बने रहते हैं, जिसका सीधा असर दोनों देशों के बीच व्यापार (Trade) पर भी पड़ता है. पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ और सीजफायर उल्लंघन जैसी गतिविधियां बढ़ने पर ये तनाव बढ़ता है और लोग पाकिस्तान से आयात-निर्यात पर रोक लगाने की मांग करने लगते हैं. पुलवामा (Pulwama) में जब सीआरपीएफ (CRPF) के काफिले पर आतंकी हमला हुआ और करीब 40 जवान शहीद हुए तब भी ऐसी ही मांगें उठ रही थीं. इन आवाजों के बीच कुछ लोग ‘सिंधु जल समझौते’ (Indus Water Treaty) को भी रद्द करने की मांग कर रहे थे. अब सवाल ये कि पाकिस्तान से ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (Most Favored Nation) का दर्जा वापस लेने तक तो बातें समझ में आ जाती हैं लेकिन ये ‘सिंधु जल समझौता’ आखिर क्या है, जिसने दोनों देशों को जोड़कर रखा है?

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में विदेश सचिव रहे कंवल सिब्बल ने कहा था कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत को ‘सिंधु जल समझौते’ को समाप्त कर देना चाहिए. वहीं कई जानकारों के मुताबिक इस समझौते से बाहर आना दोनों देशों में से किसी के लिए भी इतना आसान नहीं है जितना लगता है. पाकिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत जी पार्थसारथी के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में हाइड्रो-इलेक्ट्रिक ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने के लिए भारत को पानी चाहिए इसलिए ‘सिंधु जल संधि’ को तोड़ना इतना आसान नहीं है. वहीं भारत के पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दुबे ने कहा कि इस संधि को रद्द करने से पाकिस्तान को उसके अधिकारों से वंचित किया जा सकता है लेकिन इससे बड़ा विवाद पैदा हो सकता है.

समझौते में बैकफुट पर पाकिस्तान

बीते सालों में भारत-पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव बढ़ा है, ‘सिंधु जल समझौता’ चर्चा में आया है. दोनों देशों के बीच संबंधों में जल एक अहम कड़ी है. कश्मीर में उरी हमले के बाद दिल्ली में होने वाली जल विवाद की बैठक को रद्द कर दिया गया था. इस पर पाकिस्तान के एक अखबार ने लिखा था कि भारत की ओर से जल को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की संभावनाएं बढ़ रही हैं.

‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ के मुताबिक भारत-पाकिस्तान के बीच ‘जल विवाद’ बाकी दूसरे विवादों से बड़ा है, जिसका कारण है ‘जलवायु परिवर्तन’. पाकिस्तान के अखबार जल विवाद पर अपने देश को बैकफुट पर मानते हैं. उर्दू अखबार ‘डेली एक्सप्रेस’ ने अनुसार पाकिस्तान को जल विवाद पर बातचीत जारी रखनी चाहिए और अपने हितों का बचाव करना चाहिए.

कहां से शुरू हुई ‘सिंधु जल समझौते’ की कहानी?

आइए जानते हैं कि दोनों देशों के बीच जल विवाद का अहम बिंदु ‘सिंधु जल समझौता’ आखिर है क्या? इस समझौते के पीछे की कहानी शुरू होती है भारत-पाकिस्तान बंटवारे के पहले. ब्रिटिश शासन में सिंधु नदी घाटी में बड़ी नहरों का निर्माण किया गया. इस इलाके को निर्माण के बाद इस जल का इतना लाभ मिला कि दक्षिण एशिया में यह कृषि का प्रमुख क्षेत्र बन गया. हरे-भरे खेत जिनके पास जल का कोई अभाव नहीं था. इस तस्वीर पर ग्रहण लगाया विभाजन ने.

भारत और पाकिस्तान के बीच लकीर खिंचने से पंजाब के भी दो टुकड़े हो गए- पूर्वी पंजाब जो भारत में आया और पश्चिमी पंजाब जो पाकिस्तान का हिस्सा बना. लिहाजा अंग्रेजों द्वारा बनवाई गईं बड़ी-बड़ी नहरें भी बंट गईं लेकिन भारत से होकर बहने वाले इस जल के लिए पाकिस्तान पूरी तरह से भारत पर निर्भर हो गया. पाकिस्तान के लिए जल सुनिश्चित कराने और बहाव जारी रखने के लिए दोनों देशों के पंजाब के प्रमुख इंजीनियरों के बीच एक समझौता हुआ.

कराची में हुए समझौते पर हस्ताक्षर

20 दिसंबर 1947 को हुए इस समझौते के तहत भारत को बंटवारे से पहले तय हुए पानी के हिस्से को 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को मुहैया कराते रहना होगा. भारत ने समझौते का पालन किया और पाकिस्तान को पानी मिलता रहा. 1 अप्रैल 1948 को जब समझौते की समय-सीमा खत्म हो गई तो दोनों नहरों के पानी को रोक दिया गया. अब पाकिस्तान के कृषि संपन्न इलाके की सूरत बिगड़ने लगी और 17 लाख एकड़ जमीन तेजी से सूखे की ओर बढ़ने लगी. कई लोगों का मानना है कि भारत ने पाकिस्तान पर कश्मीर मुद्दे को लेकर दबाव बनाए रखने के लिए ऐसा किया था. हालांकि बाद में हुए एक समझौते के तहत भारत ने पानी पर लगाई रोक हटा दी थी.

1951 में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बुलावे पर भारत और फिर बाद पाकिस्तान की यात्रा करने वाले टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल ने अमेरिका वापस लौटकर सिंधु नदी घाटे के बटवारे पर एक लेख लिखा. विश्व बैंक प्रमुख डेविड ब्लैक ने इस लेख को पढ़कर भारत और पाकिस्तान से इस बाबत संपर्क साधा और दोनों देशों के बीच बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया. एक दशक तक चले इस सिलसिले के बाद 19 सितंबर 1960 को कराची में ‘सिंधु नदी घाटी समझौते’ पर साइन किए गए.

समझौते में किन बातों पर बनी सहमति?

अब सवाल ये कि इस समझौते में दोनों देशों के बीच किन बातों पर सहमति हुई? बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक जी पार्थसारथी ने बताया कि इस समझौते में सिंधु नदी घाटी की नदियों का बंटवारा दो हिस्सों, पूर्वी और पश्चिमी, में हुआ है. समझौते में झेलम और चेनाब (पश्चिमी नदियां) के पानी को पाकिस्तान और रावी, व्यास और सतलज (पूर्वी नदियां) के पानी को भारत द्वारा इस्तेमाल करने पर सहमति बनी.

समझौते में भारत को पूर्वी नदियों के जल को पूरी तरह से इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया. साथ ही भारत को पश्चिमी नदियों के पानी का इस्तेमाल कृषि और बिजली बनाने जैसे कामों के लिए सीमित रूप से करने का अधिकार भी मिला. समझौते के तहत दोनों देश बातचीत से लेकर साइट इंस्पेक्शन पर सहमत हुए. एक सिंधु आयोग की स्थापना भी की गई, जिसके तहत दोनों देशों के कमिश्नर मिल सकते हैं और किसी भी विवादित मुद्दे पर बातचीत कर सकते हैं.

समझौते में कहा गया कि अगर एक देश द्वारा किसी प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है और दूसरे देश को उस पर आपत्ति है तो दोनों के बीच बैठक होगी और पहला देश उस पर जवाब देगा. बैठक में हल न निकलने पर दोनों देशों की सरकारों को आगे आकर इसमें हस्तक्षेप करना होगा और विवाद को सुलझाना होगा. इसके अलावा विवादित मुद्दों पर एक्सपर्ट की राय भी ली जा सकती है या ‘कोर्ट ऑफ ऑर्बिट्रेशन’ में जाने का भी प्रावधान रखा गया है.

समझौते से पैदा होते रहे विवाद

दरअसल भारत के पाकल (1,000 मेगावाट), रातले (850 मेगावाट), किशनगंगा (330 मेगावाट), मियार (120 मेगावाट) और लोअर कलनाई (48 मेगावाट) वाटर इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स पर पाकिस्तान को आपत्ति है. वहीं पार्थसारथी के मुताबिक कश्मीर अपने जल संसाधनों का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है. कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने कार्यकाल में कहा था कि सिंधु जल समझौते से जम्मू-कश्मीर को 20 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है, जिसकी भरपाई के लिए केंद्र सरकार को कदम उठाने होंगे.

पाकिस्तान ‘तुलबुल प्रोजेक्ट’ पर भी आपत्ति उठा चुका है. भारत के पूर्व कैबिनटे सचिव नरेश चंद्रा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि कश्मीर में प्रस्तावित तुलबुल प्रोजेक्ट में बारिश का पानी रोकने की बात कही गई थी जो कि इस समझौते के खिलाफ है क्योंकि समझौते के तहत पानी इस्तेमाल उस रूप में किया जा सकता है जिस रूप में उसकी धारा लगातार बहती रहे. हालांकि वो दोनों देशों के बीच इसे एक ‘सफल’ समझौता मानते हैं

भारत या पाकिस्तान, कौन तोड़ सकता है समझौता?

1993 से 2011 तक सिंधु नदी घाटी समझौते के पाकिस्तान कमिश्नर जमात अली शाह ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि कोई भी देश एकतरफा तौर पर इस समझौते को न ही तोड़ सकता है और न ही इसमें बदलाव कर सकता है. भारत और पाकिस्तान साथ मिलकर ही इसमें बदलाव कर सकते हैं या नया समझौता बना सकते हैं.

हालांकि लेखक ब्रह्म चेलानी के मुताबिक वियना समझौते के लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के तहत भारत इस समझौते को यह कह कर तोड़ सकता है कि पाकिस्तान चरमपंथी ताकतों का इस्तेमाल उसके खिलाफ कर रहा है क्योंकि इंटरनेशनल कोर्ट कहता है कि मूलभूत स्थितियों में बदलाव होने पर किसी भी संधि को समाप्त किया जा सकता है.

इस पर मुचकुंद दुबे का कहना है कि दोनों देशों के बीच विभाजन के बाद जब पाकिस्तान को पानी की जरूरत थी तो इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक की ओर से की गई थी. लिहाजा अगर भारत इस समझौते के खिलाफ कदम उठाता है तो पाकिस्तान विश्व बैंक के पास गुहार लगाएगा और विश्व बैंक भारत पर दबाव बना सकता है. इससे विश्व बैंक और उसके सदस्य देशों के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है.

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