नदियाें के लिए खतरा:संभाग के आठ जिलों में सबसे ज्यादा श्योपुर में 28 नदियां, कब्जाें की हाेड़ में दस नदियां लुप्त हाेने की कगार पर

  • दाे दशक से नदी किनारे खेती के लिए बढ़ते अतिक्रमण, अंधाधुंध जलशाेषण, पर्यावरण प्रदूषण बना नदियाें के लिए खतरा
  • नदियाें के संरक्षण की दिशा मेें जनसहयाेग के भराेसे 12 साल बिता चुके प्रशासन की अब केंद्र के जल मिशन पर टिकी उम्मीद

श्याेपुर प्राकृतिक रूप से समृद्ध हाेना जिलावासियाें के लिए गर्व की बात है। कल-कल बहती नदियों के लिए श्योपुर जिले में की पहचान अब यह गुजरे जमाने की बात हो चली है। स्वार्थ की खातिर नदियों को नाला बना डाला है। ग्वालियर चंबल संभाग के आठ जिलों में सबसे ज्यादा श्योपुर में 28 नदियां हैं। कभी बारह महीने बहने वाली छाेटी-बड़ी नदियांं अब सिर्फ बारिश के सीजन में याैवन पर आती हैं और सर्दी खत्म हाेने से पहले ही सूख रही हैं। लेकिन पिछले दाे दशक से तेजी से बढ़ती आबादी के साथ ही नदियाें की भूमि पर अवैध कब्जे की हाेड़, प्रतिबंध के बावजूद नदियाें से सिंचाई के लिए अंधाधुंध जलदाेेहन, अवैध उत्खनन के कारण बढ़ते जल प्रदूषण से प्रमुख नदियाें में गर्मी से पहले ही पानी की धार टूट रही है।

इनमें छाेटी बड़ी 10 नदियाें अब विलुप्त हाेने की कगार पर हैं। इन नदियाें का अस्तित्व सिर्फ राजस्व नक्शों में ही रह गया है। हकीकत में यह नदियां कहीं नाला, कहीं गडढे में सिमटी हुई हैं ताे कहीं सूखकर मैदान बन गई हैं। चंबल और पार्वती नदी प्रदूषण की शिकार है। जबकि सीप, कूनो, क्वारी नदियां गिरते सीवरयुक्त गंदे नालों के कारण दुर्दशा की शिकार हैं। नदियाें के संरक्षण की प्रशासनिक योजनाएं 12 साल में भी धरातल पर नहीं उतर पाईं। बजट के अभाव में नदियों के संरक्षण के लिए प्रशासन जनसहयोग के भरोसे हैं।

अतिक्रमण ने इन 10 नदियों का दम घाेंट दिया
अहेली, कदवाल, अमराल, सरारी, पारम, दौनी, भादड़ी, ककरेंडी, दुआर, अहेली सहित जंगल से निकली कई सहायक बरसाती नदियां धीरे-धीरे विलुप्त हाे रही हैं। मानसून की विदाई के बाद सर्दी में ही सूखकर नाला बन जाती है। पिछले दाे दशक से दाेनाें किनाराें पर खेती के लिए अवैध कब्जो का दायरा हर साल बेलगाम बढ़ने के कारण नदियाें का अस्तित्व खत्म हाेने की कगार पर पहुंच गया है।

ककरेंडी नदी; किनारे पर पसरती अवैध खेती, बहाव के रास्ते में ढाबे ने खत्म किया नदी

बरसाती नदी कंकरेडी का दम अतिक्रमण ने घाेंट दिया। जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर सोईंकलां किनारे पर खेती के लिए कब्जे हाेने के साथ ही बहाव क्षेत्र में एक ढाबा बनने से श्याेपुर- सवाई माधाेपुर हाईवे पर साेईंकलां की पुलिया के पास कंकरेडी नदी का सफर खत्म हाे चुका है। बारिश का पानी राेकने के लिए जिस जगह स्टापडैम बनाया था, वहां न सिर्फ नदी के दायरे में खेत तैयार कर लिए, बल्कि पक्के भवन भी खड़े कर दिए। इसमें बना ढाबा पिछले दाे साल से चल रहा है। स्थानीय लोगों ने बताया कि नदी किनारे खाली जमीन को बच्चाें के खेल मैदान के लिए आवंटित करने की मांग प्रशासन से की थी, लेकिन अफसराें ने उस वक्त ध्यान नहीं दिया। नतीजा खेल मैदान व नदी की तलहटी तक जगह अतिक्रमणकारियाें ने घेर ली। इसकी शिकायत लाेगाें ने कलेक्टर से की थी।

सीप नदी; नदी के रास्ते में होने लगी खेती, अब सिर्फ बारिश के मौसम में ही पानी दिखता है

सीप नदी का शहर में ही बुरा हाल। किनारों पर अवैध खेती, यहीं गिरते नपा के गंदे नालों के साथ नदी में समा रहा पॉलीथिन कचरा।
सीप नदी का शहर में ही बुरा हाल। किनारों पर अवैध खेती, यहीं गिरते नपा के गंदे नालों के साथ नदी में समा रहा पॉलीथिन कचरा।

जिले की प्रमुख नदियां सीप, कूनाे व क्वारी अतिक्रमण की चपेट में आने के साथ जल प्रदूषण से मैली हाे गई है। शहर सहित सवा सौ गांव की जीवनरेखा सीप नदी अपने उद्गम स्थल कराहल के जंगल में पनवाड़ा से करीब 75 किमी लंबे दायरे में बहते हुए रामेश्वर धाम पर चंबल और बनास नदियाें के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम का पवित्र संयाेग बनाती है। सीप नदी की सबसे ज्यादा दुर्दशा श्याेपुर शहर में सभी 18 गंदे नाले गिरने के कारण हैं। उधर गुना जिले से हाेकर कूनाे अभयारण्य में प्रवेश करने वाली कूनाे नदी का प्राकृतिक साैंदर्य अब सिर्फ बारिश के माैसम में ही पर्यटकाें काे लुभाता है। गर्मी से पहले ही यह नदी हर साल सूख जाती है। यही हाल विजयपुर सहित वनांचल के 55 गांव की निस्तारी जरूरताें की पूर्ति करने वाली क्वारी नदी का है।

एक्सपर्ट; नदियाें पर 3 खतरे
अतिक्रमण, जल शाेषण व प्रदूषण मर रहीं नदियां, सरकारी संरक्षण और समाज में जागरण से मिलेगा पुनर्जीवन

नदियां मरेंगी ताे समाज मर जाएगा। नदियाें पर खतरे के तीन बड़े कारण हैं और इन्हें पुनर्जीवन के लिए सरकारी एवं सामाजिक स्तर पर गंभीरता से प्रयास करने की जरूरत है। देश में जनसंख्या का दबाव बढ़ने के साथ ही जमीनाें की कीमतें बढ़ीं, इसके साथ ही नदी किनारे भूमि पर अतिक्रमण, सिंचाई के लिए भूजल शाेषण और नगराें के गंदाें नालाें से बढ़ता प्रदूषण नदियाें के लिए गंभीर खतरा बन गए और छाेटी बड़ी तमाम नदियां सूख रही है। कई नदियां बेमौत मर गईं। केंद्र व प्रदेश की सरकार काे सबसे पहले नदियाें की जमीन का सीमांकन व चिह्नांकन कराने के साथ ही राजस्व नक्शे में नाेटिफिकेशन करना चाहिए। तभी कुछ सुधार की संभावना है।

डॉ राजेन्द्र सिंह, जल विशेषज्ञ

केंद्र की जल नीति के तहत बनेगी योजना
नदियों के सरंक्षण के लिए नगरीय निकाय और ग्राम पंचायतों के माध्यम से कई काम हुए हैं। प्रशासन ने सीप नदी के संरक्षण के लिए जनसहयाेग से कई कार्य किए हैं। नदी पर वाहनाें की धुलाई, पूजा सामग्री डालने पर रोक लगाई है। अब केंद्र सरकार की जल नीति के तहत आने वाले समय में वृहद कार्ययोजना तैयार की जाएगी।
राकेश कुमार श्रीवास्तव, कलेक्टर, श्योपुर

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