आज की पॉजिटिव खबर:दिल्ली की 3 बहनों ने बांस से बने हैंडीक्राफ्ट और चाय का स्टार्टअप शुरू किया; सालाना 7 लाख का बिजनेस, फोर्ब्स की लिस्ट में मिली जगह
तरु ने क्लिनिकल साइकोलॉजी से मास्टर्स किया है। अक्षया ने बिजनेस इन इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की है जबकि ध्वनि ने फिल्म मेकिंग का कोर्स किया हुआ है। 27 साल की अक्षया कहती हैं कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद मैं मर्चेंट एक्सपोर्ट के फील्ड में काम करने लगी। इस दौरान कई कंपनियों और एक्सपोर्ट एजेंसियों के साथ काम करने का मौका मिला। काफी कुछ सीखने को भी मिला।
वे कहती हैं कि इस दौरान मुझे लगा कि अगर मैं दूसरों के प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर सकती हूं तो खुद के प्रोडक्ट की भी कर सकती हूं। यह बात मैंने अपने पापा को बताई। चूंकि पापा फिल्म प्रोडक्शन से जुड़े हैं, तो उन्हें देश की अलग-अलग जगहों के बारे में अच्छी-खासी जानकारी है। हम भी उनके साथ कई राज्यों में जा चुके थे। उन्होंने सुझाव दिया कि नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में मुझे जाना चाहिए और वहां के लोकल कारीगरों के प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग करनी चाहिए।

नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में गईं, वहां के लोकल कारीगरों से मिलीं
इसके बाद अक्षया ने नॉर्थ-ईस्ट के कई राज्यों का दौरा किया। वहां के लोकल कारीगरों से मिलीं, उनके काम को समझा, उनकी मार्केटिंग संबंधी दिक्कतों को समझा। कुछ महीने रिसर्च किया। इसके बाद अक्टूबर 2015 में अक्षया ने नोएडा में एक एग्जीबिशन में हिस्सा किया। इसमें उन्होंने हैंडीक्राफ्ट के सभी प्रोडक्ट्स लगाए थे। इसको लेकर उन्हें बढ़िया रिस्पॉन्स मिला। कई लोगों ने उनके प्रोडक्ट में दिलचस्पी दिखाई।
अक्षया कहती हैं कि उस एग्जीबिशन के बाद मुझे यह एहसास हो गया था कि इस सेक्टर में बढ़िया स्कोप है। लोगों के बीच इस तरह के प्रोडक्ट्स की डिमांड है। साथ ही लोगों को इस बात को जानने में भी दिलचस्पी है कि कौन सा प्रोडक्ट किस जगह पर बना है, कैसे बना है, किसने बनाया है? उसके बनने की प्रॉसेस और कहानी क्या है?
इसके बाद अगले साल यानी 2016 में अक्षया त्रिपुरा गईं। वहां उन्होंने कुछ लोकल कारीगरों से कॉन्टैक्ट किया, जो उनके लिए प्रोडक्ट बनाने के लिए राजी हो गए। एक आदमी को उनकी मॉनिटरिंग के लिए रखा और फिर अपनी सेविंग्स से एक प्रोडक्शन यूनिट की नींव रखी। इसमें करीब एक साल का वक्त लग गया। इस तरह उन्होंने 2017 में Silpakarman नाम से अपने स्टार्टअप की शुरुआत की। वे डेली यूज से लेकर किचन तक सभी हैंडीक्राफ्ट के प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग करने लगीं। बाद में उनकी दोनों बहनें भी उनके साथ जुड़ गईं।
कैसे शुरू की मार्केटिंग, कस्टमर्स को जोड़ने के लिए क्या किया?

अक्षया बताती हैं कि मार्केटिंग के फील्ड में मुझे पहले से काम करने का अनुभव था। इसलिए चीजें हैंडल करने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। वे कहती हैं कि सोशल मीडिया मार्केटिंग के लिए सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है। हमने भी इसका भरपूर इस्तेमाल किया। ध्वनि फिल्म प्रोडक्शन बैकग्राउंड से हैं तो उन्होंने कई क्रिएटिव वीडियो और फोटो अपलोड किए, जिससे कस्टमर्स की दिलचस्पी हमारे प्रोडक्ट को खरीदने में बढ़ी। इसके बाद हमने खुद की वेबसाइट लॉन्च की। अमेजन, इंडिया मार्ट जैसे प्लेटफॉर्म पर अपने प्रोडक्ट्स उपलब्ध कराए।
इसके साथ ही हमने भारत और भारत के बाहर कई जगहों पर एग्जीबिशन में भाग लिया। इससे लोगों को हमारे प्रोडक्ट के बारे में जानकारी मिली और हमारे कस्टमर्स बढ़ते गए। हालांकि इस दौरान ग्रीस में हमें नुकसान भी झेलना पड़ा। हम जिस उम्मीद से वहां अपने प्रोडक्ट ले गए थे, उतनी बिक्री नहीं हुई। अभी हर महीने करीब 100 ऑर्डर्स हमारे पास आ रहे हैं। इसमें इंडिविजुअल लेवल के साथ ही ब्रांड टू ब्रांड यानी B2B मार्केटिंग भी हमारी टीम कर रही है।
वे कहती हैं कि अब तक मैं 25 लाख रुपए अपने बिजनेस में इन्वेस्ट कर चुकी हूं। ये इन्वेस्टमेंट मैंने एक बार में नहीं किया है। जब-जब मुझे मेरे स्टार्टअप से अर्निंग होती रही, मैं उसे अपने बिजनेस को बढ़ाने में खर्च करती रहती हूं।
क्या है बिजनेस मॉडल, कैसे तैयार करती हैं प्रोडक्ट?

अक्षया बताती हैं कि हमने त्रिपुरा में अपनी यूनिट खोल रखी है। साथ ही वहां के कुछ लोकल कारीगरों के ग्रुप से टाइअप किया है। जिसमें करीब 500 लोग काम करते हैं। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं हैं। इन लोगों को हम रिसोर्सेज और मशीन उपलब्ध कराते हैं। जिससे ये लोग फर्नीचर, लैपटॉप स्टैंड, पेन, ब्रश जैसे हैंडीक्राफ्ट के साथ ही किचन के इस्तेमाल के सभी प्रोडक्ट तैयार करते हैं। इसके बाद हमारे एक साथी वहां से प्रोडक्ट कलेक्ट करके अपनी यूनिट में ले जाते हैं। इसके बाद मार्केटिंग का काम शुरू होता है। अगर ऑर्डर की डिमांड नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों से होती है तो उसे वहीं से पार्सल कर दिया जाता है। बाकी प्रोडक्ट को दिल्ली भेज दिया जाता है।
दिल्ली में हमारी टीम उसकी पैकेजिंग करती हैं। फिर जहां से ऑर्डर आया होता है, वहां के लिए पार्सल कर दिया जाता है। इसमें हम पैकेजिंग के लिए भी पूरी कोशिश करते हैं कि बांस से बने प्रोडक्ट का ही इस्तेमाल हो। वे कहती हैं कि हम खुद तैयार न कर लोकल कारीगरों से कराते हैं, इसका सबसे ज्यादा फायदा उन लोगों को मिलता है, जो छोटे लेवल पर कारीगर का काम करते हैं। उन्हें रोजगार के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता है। साल भर उनके लिए काम उपलब्ध रहता है।

अब बांस की पत्तियों से तैयार कर रही हैं चाय
अक्षया कहती हैं कि 2019 में छोटी बहन अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद हमारे साथ जुड़ गई। उसने हमें बांस की पत्तियों से बनी चाय का बिजनेस शुरू करने का आइडिया दिया। इसके बाद हमने इसको लेकर रिसर्च करना शुरू किया। तब हमें जानकारी मिली कि विदेशों में बांस की पत्तियों का इस्तेमाल चाय बनाने के लिए किया जाता है। इसमें प्रोटीन, सिलिका, जिंक सहित कई न्यूट्रिशनल एलिमेंट्स मौजूद हैं, जो हेल्थ के लिए फायदेमंद होते हैं।
इसके बाद साल 2020 में अपने घर पर ही बांस की अलग-अलग वैराइटी की पत्तियों की प्रोसेसिंग कर चाय तैयार किया। हालांकि लॉन्च करने से पहले ही कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया। इससे काफी वक्त तक ये प्लान प्रभावित रहा। अब पिछले महीने उन्होंने इसकी लॉन्चिंग की है। 100 से ज्यादा ऑर्डर अभी वो पूरा कर चुकी हैं। जबकि एक हजार ऑर्डर उन्हें एडवांस बुकिंग में मिले हैं।

भारत में बांस की खेती और मार्केटिंग का स्कोप
भारत में पूर्वोत्तर राज्यों के साथ ही महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखंड और बिहार में बांस की भरपूर खेती होती हैं। पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में न सिर्फ बांस की खेती होती है, बल्कि इससे कॉमर्शियल प्रोडक्ट भी तैयार किए जाते हैं। हालांकि बाकी के राज्यों में बहुत कम लोग ही कॉमर्शियल लेवल पर बांस की खेती करते हैं। पिछले कुछ सालों से मार्केट में बांस से बने प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ी है। लोग घर की सजावट और नया लुक देने के लिए बांस से बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। बांस से बल्ली, सीढ़ी, टोकरी, चटाई, फर्नीचर, खिलौने तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा कागज बनाने में भी बांस का उपयोग होता है।
जो लोग बांस की खेती करना चाहते हैं, उनके लिए सबसे अच्छी बात है कि इसकी खेती के लिए किसी खास जमीन की जरूरत नहीं होती है। आप ये समझ लीजिए कि जहां घास उग सकती है, वहां बांस की भी खेती हो सकती है। इसके लिए बहुत देखभाल और सिंचाई की भी जरूरत नहीं होती है। जुलाई में बांस की रोपाई होती है। अमूमन बांस तैयार होने में तीन साल लगते हैं। एक एकड़ खेत में बांस लगाने के लिए 10 हजार के आसपास का खर्च आता है। तीन-चार साल बाद इससे प्रति एकड़ तीन लाख रुपए की कमाई हो सकती है। एक बार लगाया हुआ बांस, अगले 30-40 साल तक रहता है। क्वालिटी के मुताबिक एक बांस की कीमत 20 रुपए से लेकर 100 रुपए तक मिल सकती है।