मंडी की हार: सवर्णों की नाराजगी बीजेपी को पड़ी भारी, 8766 से हारे और नोटा में गए 12,626 वोट
मंडी लोकसभा सीट पर भाजपा-कांग्रेस के जीत के अंतर से अधिक वोट नोटा को पड़े हैं। यानी यदि नोटा के वोट भाजपा को मिलते तो समीकरण बदल सकता था। सवर्ण संगठनों ने नोटा दबाने की अपील की थी।
कोटा नहीं तो नोटा:
बता दें कि मंडी सीट पर नोटा के पक्ष में 12,626 वोट गिरे हैं। जबकि दोनों प्रत्याशी के बीच जीत का अंतर 8766 वोट का है। नोटा को हार जीत के मार्जिन से 3860 अधिक वोट मिले हैं।
नोटा के पक्ष में इतना अधिक मतदान साफ करता है कि जयराम ठाकुर से उनके क्षेत्र के लोगों में खासी नाराजगी है। चुनाव प्रचार के दौरान कोटा नहीं तो नोटा का मुहिम भी सोशल मीडिया और ग्राउंड पर चल रहा था।
सवर्णों की अनदेखी पड़ा भारी:
ग़ौरतलब है कि कोटा नहीं तो नोटा का नारा सवर्ण आयोग के गठन को लेकर चल रहा था। सामान्य वर्ग संयुक्त मंच हिमाचल प्रदेश ने चुनाव के दौरान ऐलान भी किया था कि उनकी मांग की अनदेखी की गई तो सामान्य वर्ग उपचुनाव में नोटा का प्रयोग करेगा।
चुनाव परिणाम जिस तरह से आए हैं उसका आकलन किया जाए तो भाजपा के लिए हार के कई वजह रहे हैं कि जिनमें से एक सवर्णों की अनदेखी भी है। यदि नोटा से बर्बाद हुए वोट भाजपा को मिले होते तो दीवाली कांग्रेस नहीं मना रही होती।