साहब! पावर का मामला है …. वर्दी को दबाने के लिए मंत्रियों पर लगाया ‘दांव’ फेल, महिला अफसर को बनाया ‘मोहरा’; अफसर को सिंघम बनने का शौक

अपनी पावर कोई कम क्यों करे, अगर वह जाने लगे तो दिक्कत तो होगी ही ना। आजकल ऐसे ही दर्द से प्रदेश के IAS अफसर गुजर रहे हैं। वह अंदर से कराह रहे हैं, लेकिन खुलकर बयां भी नहीं कर पा रहे हैं। हर बार पुलिस कमिश्नर सिस्टम को फाइलों में दबा देने वाले IAS इस बार फेल होते दिख रहे हैं। इस बार मुख्यमंत्री ने किसी की नहीं सुनी। उन्होंने भोपाल और इंदौर में यह सिस्टम लागू करने का ऐलान किया तो IAS बिरादरी अवाक रह गई।

पता चला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सिस्टम की लखनऊ में हुई एक कॉन्फ्रेंस में तारीफ की थी। ऐसे में IAS ने बैकफुट पर रहने में ही भलाई समझी, लेकिन इसे रोकने के लिए फील्ड में तैनात अफसरों ने एसोसिएशन पर दबाव बनाया। ऐसे में पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री के समक्ष अपना पक्ष तो नहीं रखा, लेकिन ‘दांव’ जरूर खेला। भाजपा के कुछ नेताओं को यह समझाने की कोशिश हुई कि इस सिस्टम के आने से उनका (मंत्री और पार्टी के पदाधिकारी) पुलिस के सामने उनका रुतबा कैसे कम हो जाएगा।

यह दांव तो फेल हो गया, लेकिन कैबिनेट की बैठक में मंत्रियों ने मुख्यमंत्री की मंशा को भांपते हुए सिस्टम को लागू करने के लिए टेबल ठोंककर सामूहिक सहमति दे दी। यहां से फेल होने पर IAS अफसरों ने अब जो चाल चली है, उसमें राज्य प्रशासनिक सेवा को आगे किया है। इसमें भी एक महिला अफसर को ‘मोहरा’ बनाया। इस अफसर ने एक प्रेजेंटेशन तैयार कर गृह विभाग को बतौर ज्ञापन दिया है। इसमें बताया गया कि कैसे यह सिस्टम फेल है। इसमें जिन शहरों में सिस्टम लागू है, वहां के अपराध कम होने के बजाय बढ़े हैं। इन शहरों के आंकड़ों की तुलना उन शहरों से की गई है, जहां DM सर्वेसर्वा हैं। अब देखना है कि कोशिशें कामयाब होती हैं या फिर ‘सरकार’ बीच का रास्ता निकाल कर दोनों बिरादरी को संतुष्ट करती है?

‘सरकार’ को ‘महाराज’ का सहारा
मध्यप्रदेश में सत्ता पर संगठन की कसावट के कई मायने निकाले जा रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने बूथ से लेकर मंत्रियों तक की बैठक लेकर मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य का आंकलन कर चले गए। सुना है कि मंत्रियों की बैठक में जब ‘सरकार’ के कामकाज को लेकर मंत्रियों से पूछा गया तो पार्टी की मूल विचारधारा वालों ने ज्यादा कुछ नहीं कहा, लेकिन केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्रियों ने ‘सरकार’ की कार्यशैली को एक्सीलेंस बताया। बैठक में मौजूद मंत्री और पार्टी पदाधिकारी तो तब भौंचक हो गए, जब सिंधिया के कट्‌टर समर्थक दो मंत्रियों ने ‘सरकार’ की जमकर तारीफ के पुल बांधे। इसको लेकर बीजेपी के एक बड़े नेता ने कहा- राजनीति में कोई स्थायी दोस्त न दुश्मन होता है। समय और हालातों के साथ रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं। आगे-आगे देखिए होता है क्या?

घर में हमेशा ताला लटका रहता है क्या?
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष तीन दिन के मध्य प्रदेश के दौरे पर आए थे। वे दो दिन भोपाल में रहे। इस दौरान उन्होंने बूथ कमेटी से लेकर मंत्रियों तक की बैठक ली। जब वे मोर्चा-प्रकोष्ठ के अध्यक्षों से सवाल-जवाब कर रहे थे, तक एक मोर्चा अध्यक्ष ने उन्हें यह बताने की कोशिश की कि उनका परिवार संघ की पृष्ठभूमि से आता है। उन्होंने बताया मेरे पिता, दादा, पति और बेटा यानी सभी संघ के लिए काम कर रहे हैं। इस पर संतोष ने कहा- तो घर में हमेशा ताला लटका रहता है क्या? इस पर उन्होंने जवाब नहीं दिया। अब उन्हें कौन समझाया, कभी ज्यादा बोलना भारी पड़ जाता है। करा दी ना सबके सामने खुद की बेइज्जती।

अंडरग्राउंड हो गए विधायक जी
एक विधायक पिछले एक महीने से अंडरग्राउंड चल रहे हैं, जबकि वे सत्ताधारी दल के हैं। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों से पूरी तरह दूरी बना रखी है। पिछले दिनों प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में भी वे शामिल नहीं हुए। इतना ही नहीं, उनके पिता की पुण्यतिथि पर भाजपा ने श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था, यहां भी वे नहीं पहुंचे। सुना है कि शिवराज के तीसरे कार्यकाल में मंत्री रहे इस विधायक को एक केंद्रीय जांच एजेंसी के शिकंजा कसने का डर सता रहा है। वह इसलिए भी, क्योंकि ‘सरकार’ का फिलहाल साथ नहीं मिल रहा है।

पुनर्वास की आस पर CM दफ्तर की फांस
एक प्रमोटी IAS अफसर हाल ही में रिटायर हुए हैं। इन्हें बिरादरी में ‘सरकार’ का करीबी माना जाता है। ऐसे में इनके पुनर्वास पर संदेश हो ही नहीं सकता। कयास तो यहां तक लगाए गए थे कि रिटायरमेंट से पहले ही उन्हें पद दे दिया जाएगा, वह भी मुख्यमंत्री कार्यालय में, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ। महोदय ने अब हाथ-पैर मारना शुरू कर दिए हैं। अपने पुनर्वास को लेकर मुख्य सचिव से एक मुलाकात कर ली है, लेकिन मुख्यमंत्री ने मिलने का समय अभी नहीं दिया है। सुना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय ही उनकी एंट्री में बैरियर है।

और अंत में… साहब सप्ताह में दो दिन जाते हैं ऑफिस
निमाड़ के एक जिले के कलेक्टर जलवा देखते ही बनता है। साहब सप्ताह में दो दिन ही ऑफिस जाते हैं। शनिवार और रविवार को तो वे किसी से बात तक नहीं करते हैं। सुना है कि साहब को ‘सिंघम’ बनने को शौक है। वे दिन में कई घंटे जिम में गुजारते हैं। वे अपनी फोटो बाकायदा सोशल मीडिया पर शेयर भी करते हें। उनका रुटीन उस वक्त भी था, जब इनके जिले में उपचुनाव चल रहे थे। इनकी कार्यप्रणाली की चर्चा मंत्रालय में है, लेकिन आश्चर्य तो यह है कि ‘सरकार’ का करीबी होने के कारण उनके सीनियर भी आंख बंद किए हुए हैं।

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