फूलन का परिवार vs राजपूतों का परिवार …. राजपूत फैमिली कहती है- राणा न मारता तो हम फूलन को मार देते; फूलन के परिजन बोले- तो क्या बलात्कारियों को पूजते

कानपुर देहात का आखिरी गांव बेहमई इन दिनों राजनीतिक तौर पर चर्चा में है। दरअसल, इस चुनाव में यहां बेहमई कांड और फूलन देवी ही मुद्दा है। यहां दो पक्ष हैं। एक पक्ष फूलन देवी को मानता है। जाहिर है, इन लोगों को लगता है कि फूलन देवी पर अत्याचार हुआ तो उसने बदला लिया। वहीं, दूसरा पक्ष है जो फूलन देवी को देखना तक नहीं चाहता, उसका कहना है कि फूलन देवी ने नरसंहार किया। ऐसे में, चुनाव के समय राजनीतिक दलों के लिए असमंजस की स्थिति आ जाती है।

उदाहरण से समझिए राजपुर विकास खंड में बेहमई समेत लगभग 15 से 20 हजार ठाकुर वोट हैं जो योगी सरकार से खासा नाराज थे। भाजपा के गठबंधन वाली निषाद पार्टी से ठाकुरों की नाराजगी इस कदर थी कि सीएम आदित्यनाथ योगी को इस गांव के विकास खंड राजपुर में खुद ठाकुरों को मनाने के लिए आना पड़ा था।

दैनिक भास्कर की टीम इस पूरे मामले की तह तक गई। बेहमई जाने पर पता चला कि बेशक बेहमई कांड को 41 साल हो गए हैं लेकिन गांव का एक भी शख्स इसे नहीं भूला है। हमने दोनों ही पक्षों से बात की…सबसे पहले जानते हैं कि ठाकुर समाज क्या कहता है…

दैनिक भास्कर की टीम इस पूरे मामले की तह तक गई। बेहमई जाने पर पता चला कि बेशक बेहमई कांड को 41 साल हो गए हैं लेकिन गांव का कोई भी शख्स इसे नहीं भूला है।
दैनिक भास्कर की टीम इस पूरे मामले की तह तक गई। बेहमई जाने पर पता चला कि बेशक बेहमई कांड को 41 साल हो गए हैं लेकिन गांव का कोई भी शख्स इसे नहीं भूला है।

बीहड़ पट्टी के इस सुनसान गांव में ठाकुरों के घरों में बैठकें हो रही हैं। डकैत और सांसद रही फूलन देवी के मामले में ठाकुर समाज अब फैसला चाहता है और फूलन देवी की मूर्तियां बना उसका महिमामंडन करने पर कानूनी रोक चाहता है। इनके लिए सड़क, वाहन और विकास मुद्दा नहीं बल्कि फूलन देवी और उसकी मूर्ति ही अहम मुद्दा है। हालांकि फिलहाल हाईकोर्ट ने फूलन देवी की मूर्तियां बांटने पर रोक लगा रखी है, लेकिन इन ठाकुरों का कहना है कि चुनाव के बाद भी अगर ऐसा होता है तो भाजपा से तनातनी बढ़ जाएगी, भाजपा क्षत्रिय समर्थन खो देगी। गांव के नाराज ठाकुरों ने हाल ही में बाकायदा एक कमेटी भी बनाई है।

14 फरवरी 1981 को कतार में खड़ा कर जिन ठाकुरों को फूलन ने मौत के घाट उतार दिया था उनमें से एक ठाकुर की भाभी कहती हैं, ‘मैंने देखा है कि 15-15 साल की विधवाएं घूम रही थीं उस वक्त गांव में, जब यह कांड हुआ था। हम कैसे फूलन की मूर्ति देख सकते हैं। हम कैसे उसे देवी कह सकते हैं, हम तो टीवी पर उसकी तस्वीर भी नहीं देख सकते हैं। अन्याय हुआ है हमारे साथ, खेलते हुए हमारे लड़कों को टॉफी के बहाने फूलन घर से पकड़ कर ले गई और गोली मार दी। ठाकुरों को मंजूर नहीं कि फूलन की मूर्तियां बनें, कोई उसे देवी कहे। चाहे भाजपा हो या कोई और पार्टी, हम फूलन के नाम पर मर जाएंगे लेकिन उसकी मूर्तियां बना कर उसका महिमा मंडन करने वाली पार्टी को भगा देंगे।’

वह आगे कहती हैं, ‘मेरी देवरानी की शादी को एक दिन भी नहीं हुआ था। वह उस समय बच्ची थी, उसकी शादी के कुछ दिन बाद ही मेरी शादी हुई थी। मैंने उसे बच्चों की तरह गोद में पाला, फूलन ने उसे अनाथ कर दिय। बहन बनाकर रखा मैंने उसे। बस! फूलन की मूर्तियां तो नहीं बन सकती हैं।’ पास बैठी उनकी देवरानी कहती हैं, ‘फूलन का नाम लेने वाले को मैं यमुना में डुबो दूं और शेरसिंह राणा फूलन को न मारता तो मैं मार देती। चाहे भाजपा हो या कोई और सरकार, याद रखे कि फूलन को देवी बनाओगे, महिमा मंडन करोगे तो हमारा वोट नहीं पाओगे, चाहे कोई भी हो।’

14 फरवरी 1981 को कतार में खड़ा कर इन ठाकुरों को फूलन ने मौत के घाट उतार दिया था। ठाकुर समाज इसे काला दिन मानता है। इनके गांव में स्मारक स्थल भी बना है।
14 फरवरी 1981 को कतार में खड़ा कर इन ठाकुरों को फूलन ने मौत के घाट उतार दिया था। ठाकुर समाज इसे काला दिन मानता है। इनके गांव में स्मारक स्थल भी बना है।

‘निषाद से गठबंधन के लिए हमारी योगी सरकार से नाराजगी है…’
गांव के एक ठाकुर कहते हैं कि ऐसे ही महिमामंडन होता रहा तो भाजपा को क्षत्रिय वोट नहीं मिल पाएगा, क्योंकि इसमें हमारे स्वाभिमान का सवाल है, मुझे तो यह भी समझ नहीं आता कि उसे देवी क्यों कहा जाता है, फूलन हत्यारिन की मूर्तियां मंजूर नहीं। हमारी योगी सरकार से नाराजगी है कि भाजपा का जिस निषाद पार्टी से गठबंधन हुआ है वह फूलन की मूर्तियां बांट रही है, हालांकि अभी तो हाईकोर्ट ने मूर्तियां बांटने पर रोक लगा दी है लेकिन अगर सरकार बनने के बाद भी यह सब चलता रहा तो भाजपा से हमारे तनातनी रहेगी। यह बर्दाश्त नहीं होगा। अगली बार फिर भाजपा क्षत्रिय वोट भूल जाए।

इस गांव में समाजवादी पार्टी का तब से ही विरोध रहता है। गांववालों का मानना है कि उस वक्त की मुलायम सरकार ने फूलन को सांसद बना ताकतवर बना दिया था। गांव के प्रधान लाल जी सिंह कुंवर बताते हैं कि सरकार से हमारी मांग है इस कांड को 41 साल हो गए हैं लेकिन अभी तक इसमें कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया है, अब हमें न्याय मिले।

प्रधान प्रद्युमन सिंह बताते हैं कि अभी इन दिनों गांव ने एक कमेटी का गठन किया है। वह कमेटी अब सरकार और न्यायालय से इस मामले का लगातार फॉलोअप लेगी। हम वकीलों की नई टीम बना रहे हैं। सलाह मशविरा ले रहे हैं क्योंकि इंतजार करते हुए अब 41 साल हो चुके हैं, अब फैसला चाहिए। बेशक फूलन मर गई, ठाकुर भी मर गए लेकिन ठाकुरों के बच्चों के माथे से अब हम यह कलंक धोकर रहेंगे। प्रद्युमन सिंह के अनुसार, यह कमेटी अब इस बात की जांच करेगी कि आखिर न्यायालय में मामले को लेकर देरी क्यों हो रही है। किन कागजातों की कमी है, किन गवाहों की कमी है।

इस मामले में वादी पक्ष गांव के ठाकुरों का कहना है कि 14 फरवरी 1981 को फूलन देवी ने बेहमई के 20 लोगों को कतार में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था। आज 41 साल बाद भी इसमें फैसला नहीं आया है। इस गांव में 65 फीसदी आबादी ठाकुरों की है।

अब पढ़िए दूसरा पक्ष…
दैनिक भास्कर की टीम जब फूलन देवी के गांव पहुंची और वहां लोगों से बात की तो राजनीति का दूसरा ही पक्ष सामने आया। फूलन देवी के पड़ोसी पाल सिंह पहलवान बताते हैं कि अदालत क्या फैसला देगी वो तो अदालत ही जाने लेकिन फूलन देवी के साथ अन्याय हुआ है। वह गांव की बेटी थी, फूलन की भतीजी रुकमणी कहती हैं कि बुआ के साथ जो हुआ गलत हुआ और उन्होंने जो किया बिल्कुल सही किया। वह कहती हैं बुआ निर्दोष थी, उन्होंने अपने साथ हुए जुल्म का मुंहतोड़ जवाब दिया, जिसके बाद उन्हें देवी ही कहा जाना चाहिए। बुआ देवी थी। हमारे समाज की तो वह देवी ही है।

फूलन देवी के गांव में लोग फूलन के साथ खड़े हैं। उनका कहना है कि फूलन देवी ने जो किया वो ठीक था। उन्हें देवी मानते हैं।

फूलन के गांव में उन्हें हर कोई वीरांगना कहता है और देवी का दर्जा देता है। उनके अनुसार, जो उनके साथ हुआ उसके जवाब में जो उन्होंने किया उसके बाद उन्हें देवी का ही दर्जा देना चाहिए। उनके घर में उनकी बड़ी सी मूर्ति लगी है, जिस पर आकर हर कोई पैर छूता है।

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