मनोज मुंतशिर बोले- मेरे नायक मोदी हैं … कहा- 2014 से पहले हम इंडिया में रहते थे; डरे हुए थे, इसलिए कश्मीरी पंडितों पर फिल्म नहीं बनी

एक ही कलम की स्याही प्रेम गीत और शायरी बनकर कागज पर उतरती है और वही कलम राष्ट्रप्रेम भी लिखती है। कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं ‘औरत पर हाथ डालने वाले की अंगुलियां नहीं काटते, काटते हैं उसका गला’ जैसे डायलॉग लिखने वाले गीतकार और लेखक मनोज मुंतशिर की।

मनोज इन दिनों कुछ अलग कारणों से बेचैन भी हैं। अब वह इतिहास के नए नायक भी तलाश रहे हैं। नायक कई बार सर्वमान्य नहीं होते। आपके व मेरे नायक अलग-अलग हो सकते हैं। इसी अलग होने पर विवाद होते हैं। मनोज के साथ भी कई बार हुए हैं। मनोज ने अपनी कविता ‘जीओ तिवारी, जनेऊधारी’ में आजादी के महानायक चंद्रशेखर आजाद को पंडित पुत्र की फ्रेम में बांध दिया। आलोचकों का कहना है कि आजाद की जाति उनकी पहचान से बढ़ाकर सामने लाई गई।

वे अकबर, हुमांयू, शाहजहां, जहांगीर, औरंगजेब को ग्लोरिफाइड डकैत कहते हैं। तराना-ए-हिंद… सारे जहां से अच्छा… लिखने वाले अलामा इकबाल को पढ़ने से इंकार करते हैं। इंकार की उनके पास अपनी वजह है, जिसे शायद न नकार सकते हैं न गलत कह सकते हैं। बिना तर्क इतने बड़े गीतकार कोई बात कहेंगे, यह संभव नहीं है। मनोज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना नायक बताते हैं। वे 2014 से भारत के भाग्य उदय होने की शुरुआत की बात करते हैं, तब ऐसा लगता है कि कहीं इनके भीतर कोई अति राष्ट्रवादी तो नहीं बोल रहा? आइये, उन्हीं से समझते हैं। दैनिक भास्कर के नेशनल एडिटर लक्ष्मी प्रसाद पंत ने चर्चित गीतकार मनोज मुंतशिर से बात की…।

सवाल : आप ही ने लिखा है अच्छा लिखने के लिए मोहब्बत का हो जाना जरूरी है और बहुत अच्छा लिखने के लिए उस मोहब्बत का खो जाना जरूरी है तो गौरीगंज के इस लड़के ने क्या खोया, क्या पाया?
जवाब : 
कवि, गीतकार शायर ये जन्मजात होते हैं, लेकिन जन्मजात होने के बावजूद एक ट्रिगर की जरूरत होती है। एक ऐसी घटना, एक ऐसा हादसा जो आपको बताए कि आपके अंदर क्या भाव छुए हुए हैं। पहली बार मोहब्बत में आपका दिल टूटता है, आप दर्द महसूस करते हैं, बिना वेदना जो कविता निकलेगी, वो बहुत खोखली होगी। दर्द का बड़ा गहरा रिश्ता कविता के साथ है।

सवाल : मोहब्बत के गीत लिखने वाले गीतकार अचानक इतिहास की जमीन पर क्यों लौट आए? जिस आक्रामकता के साथ इतिहास को बदलने और जानने की कोशिश कर रहे हैं, उसकी क्या वजह है?
जवाब : 
गीतकार को ही बदलना होगा। जो लिख सकते हैं, पढ़ सकते हैं, बोल सकते हैं, वहीं चुप रह गए तो? मैं इसलिए जिंदा हूं कि बोल रहा हूं, दुनिया किसी गूंगे की कहानी नहीं सुनती। मेरी जनरेशन के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। पाठ्यपुस्तकों में जो पढ़ाया वो एजेंडे के तहत था। मैंने इतिहास बदलना नहीं चाहा, दूसरा पॉइंट ऑफ व्यू रखा है। जिस चीज को मैं गर्व के साथ सीने से लगाया घूमता था…मैं सेक्युलर, बहुत दिनों बाद पता चला कि मेरे साथ तो बहुत बड़ा स्कैम हो गया। सेक्युलर होना नागरिक का नहीं सरकार का काम है।

सवाल : इतिहास को धर्म के चश्मे से देखना ठीक है क्या?
जवाब : धर्म के चश्मे से नहीं, लेकिन राष्ट्रीयता के चश्मे से देखना ठीक है।

सवाल : चंद्रशेखर आजाद जो हमारे नायक हैं, उन्हें आपने एक खास जाति में समेट दिया?
जवाब : 
ये इस देश की त्रासदी है कि जब एक हिंदू कन्वर्ट होकर मुस्लिम या ईसाई हो जाए तो सब चुप रहते हैं, लेकिन हिंदू जिस दिन हिंदू हो जाए, शोर मचने लगता है। चंद्रशेखर आजाद को चंद्रशेखर तिवारी मैंने बनाया है? भगतसिंह ने कहा था कि मैं नास्तिक हूं, इसके बावजूद आप उन्हें पगड़ी के साथ स्वीकार करते हैं तो चंद्रशेखर आजाद को उनकी जनेऊ के साथ क्यों नहीं? उससे आपके कौन से एजेंडा को चोट पहुंच रही है? आजाद ने जो रिपब्लिकन आर्मी बनाई थी एचआरए, उनके सचिव का मुझे ईमेल आया है कि आपने जो किया, सही किया और हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी आपके साथ है। यानी चाय से ज्यादा केतली गर्म हो रही है, क्योंकि आपको नुकसान हो रहा है।

सवाल : आपने अपने गीतों में जातिवाद का इस्तेमाल किया तो मैं आपको मनोज मुंतशिर कहूं या मनोज शुक्ला?
जवाब : आपने मुझे मनोज मुंतशिर शुक्ला कहें, क्योंकि वो मेरी पहचान है।

सवाल : आपकी जो मायानगरी है, उसे वामपंथ और दक्षिण पंथ, दो अलग-अलग हिस्से हैं?
जवाब :
 मायानगरी देश से अलग थोड़ी है, जैसे देश में है, वैसे मायानगरी में है। बिल्कुल है।

सवाल : क्या इसलिए 1984 के सिक्ख दंगों पर फिल्म नहीं बनी? कश्मीर पर अब बनी है। क्या आपके जो इतने बड़े फिल्मकार हैं, उन्हें देश की इतनी बड़ी घटनाओं में कोई कहानी नहीं मिली?
जवाब :
 डरे हुए थे। डर का माहौल था। 2014 के पहले हम इंडिया में जी रहे थे, अब हम भारत में जी रहे हैं। 2014 से पहले लिबरलिज्म सबसे गंदे स्वरूप में हमारी फिल्म इंडस्ट्री पर राज कर रहा था। लिबरल होने का मजा वो ही ले सकता है जिसके घर में कोई न मरा हो। संवेदन शून्य होने का नाम लिबरल हाेना है। पहले चीखने की हिम्मत किसी की नहीं थी, इतना दबाकर रखा गया था। अब लोग चीखने लगे हैं तो कहते हैं असहिष्णु है। सिख दंगों में लोगों को कहानियां नजर नहीं आई। कश्मीर पर कुछ साल पहले एक फिल्म बनी थी, जिसे देखकर लोगों का रिएक्शन था-ऐसा तो हुआ ही नहीं था, आपने सेनेटाइज कर दिया। फिर ढोल पीटना शुरू कर दिया, हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई। ट्रब्ल्ड हिस्ट्री को एक्सेप्ट किए बिना दोस्ती नहीं हो सकती। विवेक रंजन अग्निहोत्री ने हिम्मत दिखाई, जिसका खामियाजा वो भुगत रहे हैं। ये फिल्म उन्होंने शोहरत कमाने के लिए नहीं बनाई, वो एक कहानी कहना चाहते थे, लेकिन बदकिस्मती से इसकी भरपाई उन्हें किसी न किसी रूप में फिल्म इंडस्ट्री में करनी पड़ेगी, पर वो बहादुर हैं।

सवाल : आपको लगता है, जो लिखा जा रहा है, वो मौलिक नहीं है?
जवाब : 
मौलिक वाल्मीकि की रामायण थी, उसके बाद कुछ मौलिक नहीं लिखा गया। बड़े से बड़े राइटर भी मानते हैं कि 100% मौलिकता नाम की कोई चीज वजूद में ही नहीं है। तेरी मिट्‌टी में मिल जावां भी मौलिक नहीं है। मैं इंस्पायर्ड हूं…कर चले हम फिदा से…लेकिन चोरी नहीं है।

सवाल : क्या मैं ये मान लूं कि गीतकार लिखने के लिए शब्द चुराते हैं, आप भी चुराते हैं?
जवाब :
 शब्द कोई नहीं चुराता, शब्द पर किसी का कॉपीराइट नहीं है। हर शब्द आपका भी है, मेरा भी। विचार प्रेरित करते हैं।

-पूरा इंटरव्यू सुनने के लिए ऊपर दिए फोटो पर क्लिक करें

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