चुनाव से ऐन पहले CM शिवराज का मास्टर स्ट्रोक … मेयर-अध्यक्ष को पार्षद नहीं जनता ही चुनेगी, कानून में बदलाव की तैयारी
मध्यप्रदेश में नगर निगम के महापौर, नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष अब सीधे मतदाता चुनेंगे। सरकार OBC आरक्षण को लेकर फंसे पेंच के बीच नगरीय निकायों के चुनाव एक बार फिर प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने के लिए नया अध्यादेश लेकर आ रही है। नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने 13 मई काे देर शाम इसका ड्राफ्ट तैयार कर विधि विभाग को भेज दिया है। मध्यप्रदेश में 2015 तक महापौर-अध्यक्ष के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होते रहे हैं।
यह निर्णय पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले कमलनाथ सरकार ने अप्रत्यक्ष प्रणाली (पार्षदों को महापौर चुनने का अधिकार) से चुनाव कराने का निर्णय लिया था। जैसे ही शिवराज चौथी बार सत्ता में आए, उन्होंने कमलनाथ सरकार के इस फैसले को एक अध्यादेश के जरिए पलट दिया था, लेकिन इसे विधानसभा में डेढ़ साल तक पेश नहीं किया था। इससे कमलनाथ सरकार के समय बनाई गई यह व्यवस्था आज भी प्रभावी है।
अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने आयोग को पत्र भेज चुकी सरकार
अध्यादेश की अवधि समाप्त होने से पहले मध्य प्रदेश नगर पालिक विधि (संशोधन) विधेयक 2021 को शिवराज सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र में पेश नहीं किया था। जबकि, प्रस्तावित विधेयक को कैबिनेट से मंजूरी दे दी गई थी। पिछले साल आयोग को लिखे पत्र में सरकार ने इसका हवाला दिया था कि विधेयक को विधानसभा से मंजूरी नहीं मिलने के कारण अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराए जाएं।
विधायकों के दबाव में लिया था निर्णय
मंत्रालय सूत्रों ने बताया कि शिवराज ने नगरीय निकाय चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का निर्णय विधायकों के दवाब में लिया था। यही वजह है कि प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने के अध्यादेश को डेढ़ साल तक विधानसभा में पारित नहीं कराया। दरअसल, सीधे महापौर चुने जाने से स्थानीय राजनीति में उनका कद विधायक से ज्यादा हो जाता है। यदि पार्षद से महापौर चुने जाते हैं तो उसमें विधायकों की भूमिका अहम हो जाती है और महापौर उनके दवाब में रहते हैं।
BJP चाहती है जनता चुने महापौर-अध्यक्ष
BJP सूत्रों ने बताया कि संगठन की मंशा हमेशा महापौर व अध्यक्षों को सीधे जनता द्वारा चुने जाने की रही है। शहर की सरकार में कब्जा करने का यह सबसे आसान रास्ता दिखाई देता है। भले ही पार्षदों की संख्या किसी निकाय में कम हो, लेकिन महापौर अथवा अध्यक्ष बीजेपी का होना चाहिए। पार्टी इस पर फोकस करती है। यही वजह है कि प्रदेश की लगभग सभी नगर निगमों में बीजेपी के महापौर रहे हैं।
पार्षदों की हॉर्स ट्रेडिंग पर भी लगेगी रोक
जानकार मानते हैं कि महापौर-अध्यक्ष यदि पार्षदों में से चुना जाता है तो इस प्रक्रिया में हॉर्स ट्रेडिंग की संभावना ज्यादा रहती है। दोनों पदों को हासिल करने के लिए मोटी रकम का लेन-देन या फिर सेटिंग होती थी। लेकिन प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होने पर इसकी संभावना कम ही रहती है।
अभी यह है दिक्कत
राज्य निर्वाचन आयोग ने निर्णय लिया है कि नगरीय निकायों के चुनाव दो और पंचायतों के चुनाव तीन चरणों में होंगे। लेकिन, अब महापौर या अध्यक्ष और पार्षद के मतदान के लिए दो EVM की जरूरत होगी। जबकि, आयोग के पास इतनी EVM उपलब्ध नहीं है।