1 यूनिट ब्लड के ऐंठते हैं 8 हजार-300 करोड़ पार है इसकी कालाबाजारी का व्यापार…?

 खून से बनती हैं लाइफ सेविंग दवाएं-इससे करोड़ों की कमाई …?  1 यूनिट ब्लड के ऐंठते हैं 8 हजार-300 करोड़ पार है इसकी कालाबाजारी का व्यापार…

भारत की जनसंख्या 138 करोड़ है। लेकिन इसके बाद भी भारत में लगातार खून की कमी है। इस कमी का फायदा कुछ लोग खून की काला बाजारी करके उठा रहे हैं । 2017 में एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इसका बाजार 300 करोड़ रुपए था जो हर साल बढ़ रहा है।

नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार भारत में हर साल 1.4 करोड़ यूनिट्स खून की जरूरत होती है। लेकिन 20 लाख यूनिट्स की कमी है। आज वर्ल्ड ब्लड डोनर डे है। इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि कैसे खून की कालाबाजारी फल-फूल रही है।

2500 रुपए में हो रहा था खून का इंतजाम

दिल्ली में रहने वाली किरण सिंह ने बताया कि उनके पति को खून की कमी रहती है। इस वजह से ही 3 महीने में 4-5 यूनिट ब्लड चढ़ाना पड़ता है। उनके पति जीटीबी अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें खून की जरूरत थी। हॉस्पिटल 1 यूनिट खून देता है लेकिन उसके बदले उन्हें डोनर चाहिए होता है। वह परेशान होकर हॉस्पिटल के बाहर एक दुकान पर चाय पी रही थीं, तभी उन्हें पता चला कि 2500 रुपए में एक यूनिट खून का इंतजाम हो जाएगा।

उन्होंने इस बारे में और पता किया तो किसी ने बताया कि अस्पताल के बाहर 8-9 लोगों का गैंग सक्रिय है जो इंजेक्शन लेकर अपना खून बढ़ाते हैं। ये प्रोफेशनल डोनर हैं जो महीने में 2-3 बार खून डोनेट कर देते हैं। उन्हें यह सुनकर बहुत अजीब लगा था लेकिन वह इन लोगों के बीच नहीं फंसीं। जैसे-तैसे डोनर का इंतजाम किया।

मां को हुआ था कोरोना, फोन पर मांगे ब्लड के लिए पैसे

नोएडा में रहने वाले रोहित अग्रवाल का अनुभव काफी बुरा रहा। कोरोना की दूसरी लहर में उनकी मम्मी की सर्जरी होनी थी। लेकिन उन्हें कोरोना हो गया। उन्हें पहले से शुगर और किडनी की भी दिक्कत थी। डॉक्टर ने कहा कि प्लाज्मा की जरूरत है। ब्लड का इंतजाम करें।

उन्होंने डोनर का इंतजाम करने के लिए कई जगह फोन किए पर बात नहीं बनी। उन्होंने कई ब्लड बैंक से भी बात की। अचानक उनके पास एक कॉल आया कि खून का इंतजाम हो जाएगा लेकिन 1 यूनिट खून के लिए 8 हजार रुपए लगेंगे। मजबूरी में वह पैसे भी देने को तैयार थे।

खून खरीदना और बेचना गैर-कानूनी

भारत में खून खरीदना और बेचना गैर-कानूनी है। साल 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। लेकिन यह काम धड़ल्ले से चल रहा है। हर अस्पताल के बाहर आपको ऐसे ब्लड डोनर और दलाल मिल जाएंगे जो सिर्फ खून की खरीद-फरोख्त ही करते हैं।

खून से बनती हैं दवाएं, इसलिए इतना महंगा
भारत में हर साल 12 हजार लोग खून ना मिलने की वजह से जान गंवा देते हैं। खून की कमी के चलते ही ब्लैक में ब्लड बेचा जाता है। दलाल रुपए लेकर लोगों की मजबूर का फायदा उठाते हैं। वहीं, कई ब्लड बैंक गैर कानूनी तरीके से चल रहे हैं। यहां पर खून से प्लाज्मा अलग कर उसे फार्मा कंपनियों को बेच दिया जाता है। यह कई तरह की दवाओं को बनाने में इस्तेमाल होता है। इस काम के जरिए करोड़ों रुपए कमाए जा रहे हैं।

1 यूनिट खून को 3 भागों में बांटा जाता है

दिल्ली स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल में ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के चेयरपर्सन डॉक्टर विवेक रंजन के अनुसार 1 डोनर से 3 लोगों को फायदा होता है। दरअसल आजकल 1 यूनिट खून को 3 भागों में बांटा कर इसके कंपोनेंट बनाए जाते हैं। इसमें पैक्ड रेड ब्लड सेल (RBC), प्लाज्मा और प्लेटलेट्स अलग किए जाते हैं। RBC को 2-6°C तापमान में रखा जाता है। इसमें धक्के ना जमे, इसके लिए इन्हें सीटीटीए प्रिसर्वेशन सॉल्यूशन युक्त बैग में डाला जाता है। इससे रेड ब्लड सेल को 35 दिन तक इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर इस बैग में एसएजीएम सॉल्यूशन भी हो तो इसकी लाइफ 42 दिन की हो जाती है।

प्लाज्मा -30°C पर फ्रीज किया जाता है। यह 1 साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है। प्लेटलेट्स को 22°C पर रखा जाता है जो 5 दिन के अंदर इस्तेमाल होना चाहिए।

ऐसे हो सकता है खून बर्बाद

खून कई तरह से बर्बाद हो सकता है। जैसे जब कोई डोनर खून देता है तो उसके बाद एचआईवी, हेपाटाइटिस बी, हेपाटाइटिस सी, मलेरिया समेत कुछ टेस्ट किए जाते हैं। जब रिपोर्ट निगेटिव आती है, तब मरीज को खून चढ़ाया जाता है।

अगर किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव आए तो ब्लड इस्तेमाल नहीं किया जाता। लेकिन यह केवल 5% ही है।

वहीं, जो ब्लड बैंक हॉस्पिटल में नहीं है, वहां खून की डिमांड कम-ज्यादा होती रहती है। ऐसे स्टैंड अलोन ब्लड बैंक में अगर समय रहते डिमांड ना आए तब भी ब्लड एक्सपायर हो जाता है।

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