Satire: जबलपुर में तो बंदा ही परवरदिगार हो गया! करप्शन से कमाया..! सो व्हॉट? लाइफ तो जी ली King साइज़
बंदा अपने घर के स्वीमिंग पूल में तैरते हुए सिंगल माल्ट व्हिस्की के सिप लगाता रहा होगा, फिर फिलिप प्लेन के पैंतीस हजार वाले अंडर गारमेंट पहन कर पूल से बाहर निकलता होगा, कंधे पर लंबी वाली टॉवेल डाल कर, माई गॉड की कसम.. क्या हैंडसम लगता होगा..
ओ माई गॉड… रेड पड़ने पर घर में पूरा सिनेमा हॉल मिला.!! यहां तो मेट्रो में ते जाते वक्त मोबाइल पर फिल्म देखने के लिए अमेजन प्राइम सबस्क्राइब करने के पैसे नहीं होते.. एमपी के जबलपुर में तो बंदा ही परवरदिगार हो गया…बंदा अपने घर के स्वीमिंग पूल में तैरते हुए सिंगल माल्ट व्हिस्की के सिप लगाता रहा होगा, फिर फिलिप प्लेन के पैंतीस हजार वाले अंडर गारमेंट पहन कर पूल से बाहर निकलता होगा, कंधे पर लंबी वाली टॉवेल डाल कर, माई गॉड की कसम.. क्या हैंडसम लगता होगा.. फिर अपने बार में आ कर दो पैग और लगा कर अपने घर के सिनेमा हॉल में फिल्म देखता होगा, लाइट डिनर के साथ… क्या? करप्शन से कमाया..! सो व्हॉट, लाइफ तो जी ली किंग साइज़…सच यही है कि दुनिया तो यही कहती है…
जनाब थे तो एआरटीओ, नाम संतोष, कोई दिखावा नहीं, एक मोटर साइकिल, एक कार और कभी-कभी रौबदाब जमाने के लिए स्कोर्पियों. छोटे शहरों के लिए काफी. लेकिन घर किसी पैलेस से कम नहीं.. वही नज़रों में चुभ गया..छापे में निकले पांच मकान, दो दुकान, साढ़े छह सौ ग्राम सोना और अठारह लाख कैश… नोट गिनने वाली मशीन मंगवा ली गई और ऱख ली गई संतोषजी के संतोष की लाज… नोट गिनने की मशीन ना आए रेड के वक्त, तो छापा बेकार है.
रेड स्टेटस सिंबल हो गया है…
वैसे भी रेड आजकल स्टेटस सिंबल हो गया है. और उसमें बरामदगी हो जाए, कैश, चेक, अकॉउंट, म्यूचुएल फंड्स-शेयर की तो बल्ले-बल्ले. वरना ठिकानों की तस्वीरों से इस्टेब्लिश कर देंगे कि बंदा कितना फिट था, कितना रिच था.. पैसे तो आते जाते रहते हैं. ज़रूर किसी ने इकॉनॉमिक ऑफेंस विंग को टिप दी है, ऐसा टिप जो टिप ऑफ आइसबर्ग निकला…ऊपर से छोटा, नीचे से मोटा… लेकिन इतना ही कहीं और छिपा कर रख दिया जाता है, जो सरकारी एजेंसियों को सेट करने में काम आता है. रिश्वत लेने में फंसने पर रिश्वत दे कर बंदे छूट भी जाते हैं. थोड़ा सा स्ट्रगल ज़रूर है, व्हाइट कॉलर क्राइम है, हाथ गंदे करने की जरूरत नहीं. ये सोच होती जा रही है आज हमारे समाज की. एक बार सरकारी नौकरी मिल भर जाए और सीट कमाई वाली तो आधा पैसा तो घर से ले आती है पूरी घरवाली.
एजेंसी के हिसाब से तय होता है स्टेटस
स्टेटस सिंबल की बात चली है तो किस एजेंसी ने रेड की है,इससे पता चलता है कि स्टेटस क्या है. अगर ईडी ने रेड की है तो आप रियल चीफ हैं, यू नो द जॉब, अगर सीबीआई आई है तो भी बधाई है.. स्टाइल पुराना है बट यू आर प्रोफेशनल…फिर विजिलेंस-भिजिलेंस, या एंटी करप्शन ब्यूरो को कौन पूछता है.. औऱ डीई यानि डिपार्टमेंटल एंक्वॉयरी से कौन डरता है यार. ईडी के सामने डीई, क्यों मजाक करते हो यार.. संतोषजी यहीं मात खा गए.
बंदा बहुुत माई डियर रहा होगा…
वैसे बंदा बहुत माई डियर रहा होगा. पुलिस-एडमिनेस्ट्रेशन, पॉलिटिकल पार्टीज और प्रेस सबके बीच खूब पॉपुलर रहा होगा. तब ही तो यहां तक पहुंचा होगा. फोन कर दो तीन घंटे में लाइसेंस हाज़िर.. कमाई तो बड़े वाहनों की छिपाई.. प्रेसवाले बताते होंगे कि संतोषजी ने पिछले साल के मुकाबले इस साल राष्ट्र के राजस्व में इतना इज़ाफा किया..खुश हो कर संतोषजी ने अपने घर के बार में बुला लिया. हम प्रेस वाले तो किसी के सगे नहीं होते.. अपने भी नहीं, चाहते तो रोज़ जा कर स्वीमिंग पूल में नहाते औऱ तौलिया से बाल पोछ कर पूल के किनारे पड़ी आराम कुर्सी पर बैठ कर रामरस का पान करते और पांव हिलाते हुए देश और काल पर चिंतन किया करते. वैसे बहुत से लोगों ने जुगाड़ रखा भी होगा, लेकिन कोई खुरपेंचिया पत्रकार ईओड्ब्ल्यू से टिप लेकर टिप दे आया…लिहाजा संतोषजी कहीं के नहीं रह गए, ना घर के ना घाट के… संतोषजी को मलाल है कि अडानीजी को कुछ नहीं बोला जाता, तो हम गरीबों का आशियाना क्यों उजाड़ा जाता है.
अफसरों की प्रेरणा हैं नेता
भाई, जैसे संतोष इस लेख की प्रेरणा हैं तो इन अफसरों के लिए नेता लोग प्रेरणा है. नेता राष्ट्र बनाते हैं, उनके चरित्र से राष्ट्र के चरित्र का निर्माण होता है. अब सवाल ये है कि संतोषजी के प्रेरणास्रोत कौन रहे होंगे… आई हैव माई डॉउट्स.. ब्लैकमनी की लांडरिंग के लिए, जी, ठीक समझा काले पैसे की धुलाई के लिए वो कोलकाता जाते होंगे. वहां किसी चार्टेड अकॉउंटेंट ने शेखी में बता दिया होगा पार्थ चटर्जी के बारे में…कितने प्लॉट, कितने फार्म हॉउस, कितनी दुकान.. कितने फ्लैट.. समझ सकते हैं आप कि इतनी रिश्वत देने वाले शिक्षक कैसे राष्ट्र के भविष्य का निर्माण कर रहे होंगे. लगता है कि वो स्टोरी भी संतोषजी ने किसी से शेयर कर दी है.
पार्थो दा की तो वाट लगी है…
पार्थो दा की तो वो वॉट लगी है कि ऐसा लगा कि शनि वक्री हो कर पांव से होते हुए सिर पर चढ़ कर बोला.. नकद 50 करोड़, और 5 किलो सोना सरकारी खाते में दफन हो गया, ईडी ने फातेहा पढ़ दिया. पार्थो दा ने अर्पिता को समर्पिता बनाने के लिए पहनाए आधा-आधा किलों के कंगन…कितना स्नेह रहा होगा दोनों के बीच… अब जेल भी जुदा नहीं कर पाएगा.. वहां भी साथ बना रहेगा.. दोनों के बीच कितना याराना रहा होगा.. 60 बैंक अकॉउंट और 31 इंश्यरेंस पॉलिसी.. लेकिन ऐसी पॉलिसियां जेल से तो बचा नहीं सकीं. उससे बचने के लिए हॉनेस्टी इज बेस्ट पॉलिसी.. और तो और मां की ही सगी नहीं निकली बेटी.. अर्पिता की मां के पास रहने और खाने का ठिकाना नहीं…ज़रूर मां का श्राप लगा है..इसीलिए बड़े लोग कहा करते हैं- मेरे पास मेरी मां है…
इसीलिए पुराने रईस दान-पुण्य करते थे. गरीबों को ही लूट उन्हीं के लिए धर्मशाला, प्याऊ और गौशाला बनवाया करते थे.मंदिरों में पत्थर लगवा कर उसके ट्रस्ट से काला सफेद भी कर लिया करते थे. दान-धरम की वजह से गांधीजी इनको समाज का ट्रस्टी मानते थे. लेकिन आजकल के काले कुबेर..लॉस वेगस चले जाते है कसीनों में खेलने तो कुछ सुदूर पूर्व थाईलैड.. वरना अपनी चल-अचल संपत्तियों का अंबार लगा देते हैं. और फंसते तब हैं जब इस अंबार पर चढ़ कर बांग देने लगते हैं. और जब ऐसी मायावी माया अचानक लुप्त हो जाती है तब जेल में सीने के दर्द की शिकायत करते हैं. हालांकि जांच अफसर समझ जाते हैं कि सोने की मुर्गी अंडा देने वाली है. बट जोक से हट कर, इन सरकारी एजेंसियों को सलाह दी जाती है कि ऐसे आरोपियों को यथाशीघ्र गीता उपलब्ध कराई जाए, और अधिकारीगण ,सस्वर पाठ कर कहें कि हे पार्थ! क्या लेकर आया बंदे क्या लेकर जाएगा.. तूने जो कमाया है, वो दूसरा ही खाएगा…तू खाली हाथ आया बंदे, खाली हाथ जाएगा… ज़रा ठहरिए.. क्या आपको भी इस वक्त कहीं से छापे की बू आ रही है..