जम्मू-कश्मीर पर सरकार को मिला SC का साथ, धारा 144 हटाने की मांग पर आदेश देने से मना किया
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के मौजूदा हालात पर आज सरकार को सुप्रीम कोर्ट का पूरा साथ मिला. कोर्ट ने राज्य में मोबाइल-इंटरनेट बहाल करने और धारा 144 हटाने जैसी मांग करने वाली याचिका पर फिलहाल कोई आदेश देने से मना कर दिया. कहा, “सरकार हालात को सामान्य बनाने की पूरी कोशिश कर रही है. इस वक्त हमारा दखल देना स्थिति को सिर्फ जटिल बनाएगा.”
कांग्रेस समर्थक सामाजिक कार्यकर्ता तहसील पूनावाला की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि राज्य में लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है. धारा 144 लगाकर आवाजाही बाधित कर दी गई है. नेताओं को हिरासत में ले लिया गया है. मोबाइल, इंटरनेट, टीवी प्रसारण जैसी सेवाओं पर भी रोक लगा दी गई है. इसलिए, कोर्ट मामले में दखल दे. हालात की समीक्षा के लिए रिटायर्ड जज के नेतृत्व में एक कमिटी का गठन करे.
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता की वकील मेनका गुरुस्वामी से सवाल किया, ”आप कौन हैं? आपने अपना परिचय सामाजिक कार्यकर्ता बताया है. आप मामले में प्रभावित पक्ष तो नहीं लगते. हम सब जानते हैं कि जम्मू कश्मीर में अभी स्थिति सामान्य नहीं है. लेकिन सरकार इसका प्रयास कर रही है. क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को मौका दिया जाना चाहिए?”
कोर्ट के सवाल पर वकील ने कहा, “राज्य में संचार सेवाएं बंद कर दी गई हैं. लोग अपने परिवार से बात नहीं कर सकते. हॉस्पिटल और पुलिस थानों तक पहुंचना भी इस पर मुश्किल है. ये लोगों के मौलिक अधिकारों का मामला है. कोर्ट को सरकार को स्थिति सामान्य बनाने के लिए आदेश चाहिए.”
याचिका का विरोध करते हुए एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा, “सरकार की प्राथमिकता शांति व्यवस्था बनाए रखना है. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि नागरिकों को कम से कम असुविधा हो. याचिकाकर्ता हर दिन टीवी पर बैठने वाले एक एक्टिविस्ट हैं. उन्होंने मामले की गंभीरता को समझे बिना याचिका दाखिल कर दी है.” वेणुगोपाल ने आगे कहा, “स्थिति की रोज समीक्षा की जा रही है. हर दिन नई-नई छूट दी जा रही है. हालात पूरी तरह से सामान्य होने में 3 महीने का वक्त लग सकता है. लेकिन जो बातें याचिका में लिखी गई हैं, उनमें से ज्यादातर अगले कुछ दिनों में बहाल हो जाएंगी.”
सरकार के सबसे बड़े वकील के इस जवाब पर असंतोष जता रही मेनका गुरुस्वामी से बेंच के सदस्य जस्टिस एम आर शाह ने सख्त लहजे में कहा, “अगर कोई बड़ी घटना हो जाती है तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? सरकार अपना काम कर रही है. रातों-रात स्थिति नहीं बदल सकती. हम दखल देकर हालात की जटिलता नहीं बढ़ाएंगे.”
इसके बाद कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई बंद कर देने के संकेत दिए. याचिकाकर्ता से कहा कि वो इंतजार करे. कुछ समय के बाद अगर हालात न बदलें तो दोबारा अदालत का दरवाजा खटखटाए. लेकिन बाद में वकील के आग्रह पर मामले को लंबित रखा. कहा, “हम फिलहाल मामले पर कोई आदेश नहीं दे रहे हैं. 2 हफ्ते बाद इस पर फिर सुनवाई करेंगे. तब आप और सरकार हमें हालात के बारे में जानकारी दें.”