क्या है समान नागरिक संहिता, कहीं लागू हो जाने पर क्या प्रभाव होगा?
यूनिफॉर्म सिविल कोड पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया में लागू है. इन देशों के अलावा तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड पहले से लागू है.
यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता, देश में एक बार फिर चर्चा में है. दरअसल, गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य की बीजेपी सरकार इस मुद्दे पर बड़ा दांव खेल सकती है. चर्चा है कि यूसीसी लागू करने के लिए गुजरात सरकार मूल्यांकन समिति गठित करा सकती है, जिस समिति की अध्यक्षता हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज करेंगे. यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा-सा मतलब है, सभी नागरिकों के लिए समान कानून. फिर चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो. गोवा में 1961 से ही यूसीसी लागू है.
इससे सभी धर्म के लोग समान रूप से प्रभावित होंगे. शादी-विवाह से लेकर तलाक, संपत्ति बंटवारे और बच्चा गोद लेने तक सभी नागरिकों के लिए नियम-कानून एक समान होंगे. कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हैं. भारत में भी एक लंबे समय से इसको लेकर चर्चा होती आ रही है. जब भी किसी राज्य की ओर से इसे लागू करने की बात होती है, इसका विरोध भी शुरू हो जाता है. आइए इसे ठीक से जानने समझने की कोशिश करते हैं.
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा मतलब है- किसी भी देश के हर नागरिक के लिए एक समान कानून. फिर भले ही वह किसी भी धर्म या जाति से ताल्लुक क्यों न रखता हो. राज्य सरकार यदि अपने यहां इसे लागू करती है तो वहां के सभी नागरिकों पर यह समान रूप से लागू होगा.
समान नागरिक संहिता का मतलब हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता लाना है. फिलहाल देश में अलग-अलग मजहबों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं. जैसे हिंदुओं के लिए अलग एक्ट, मुसलमानों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा.
इसके तहत हर धर्म के कानूनों में सुधार और एकरूपता लाने पर काम होगा. यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून होगा, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं होगा. यह सबके लिए समान होगा.
यह क्यों जरूरी बताया जा रहा?
जानकार बताते हैं कि हर धर्म में अलग-अलग कानून होने से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है. कॉमन सिविल कोड आ जाने से इस मुश्किल से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के निपटारे जल्द होंगे.
आईआईएमटी नोएडा में मीडिया विभाग के एचओडी डॉ निरंजन कुमार कहते हैं कि सभी नागरिकों के लिए कानून में एकरूपता आएगी तो सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलेगा. आगे वे कहते हैं, इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जहां हर नागरिक समान हो, उस देश का विकास तेजी से होता है. कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हैं.
गैलगोटियास यूनिवर्सिटी में मीडिया शिक्षक डॉ भवानी शंकर कहते हैं कि चूंकि भारत की छवि एक धर्मनिरपेक्ष देश की है. ऐसे में कानून और धर्म का आपस में कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए. सभी लोगों के साथ धर्म से परे जाकर समान व्यवहार लागू होना जरूरी है. यूसीसी आने से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति इससे बेहतर होगी.
क्यों होता है विरोध?
समान नागरिक संहिता पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बड़ी आपत्ति रही है. इसका विरोध करने वालों का कहना है कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आपत्ति है कि अगर सबके लिए समान कानून लागू कर दिया गया तो उनके अधिकारों का हनन होगा.
फिलहाल मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, मुसलमानों को तीन शादियां करने का अधिकार है, जो यूसीसी के बाद नहीं रहेगा. उन्हें अपनी बीवी को तलाक देने के लिए कानून के जरिये जाना होगा. वह अपनी शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं कर सकेंगे, बल्कि उन्हें कॉमन कानून का पालन करना होगा.
विरोध का इतिहास
जून 1948 में जब संविधान सभा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बताया था कि हिंदू समाज में जो छोटे-छोटे अल्पसंख्यक समूह हैं, उनकी तरक्की के लिए पर्सनल लॉ में बदलाव जरूरी है, तब इसका विरोध हुआ था. तब सरदार पटेल, एमए अयंगर, मदनमोहन मालवीय, पट्टाभि सीतारमैया और कैलाशनाथ काटजू जैसे नेताओं ने हिंदू पर्सनल कानूनों में सुधार का विरोध किया था.
दिसंबर 1949 में भी हिंदू कोड बिल पर बहस हुई थी. तब 28 में से 23 वक्ताओं ने इसका विरोध किया था. सितंबर 1951 में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने स्पष्ट कहा कि अगर इस तरह का बिल पास हुआ तो वह अपना वीटो लगाएंगे. बाद में नेहरू ने इस कोड को तीन अलग-अलग एक्ट में बांटते हुए प्रावधानों को लचीला कर दिया था.
किन देशों में है लागू ?
यूनिफॉर्म सिविल कोड पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया में लागू है. इन देशों के अलावा तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड पहले से लागू है.