MCD का चुनाव जीतना भी AAP के लिए क्यों नहीं अच्छे संकेत?

 केजरीवाल एक दूरदर्शी नेता हैं. वो समझ रहे हैं कि एमसीडी चुनावों में मिली जीत से उन्हें सजग होना चाहिए. आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत तो बढ़े पर पार्टी के लिए कई पहलू ऐसे हैं, जिसे लेकर उसे आत्ममंथन करना चाहिए.

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने एमसीडी चुनावों में भारी जीत के बाद दिल्ली की जनता को संबोधित करते हुए काफी सौम्य नजर आए. पूरे भाषण के दौरान उन्होंने बहुत सधे हुए शब्दों का इस्तेमाल किया और खुद को एक आम हिंदुस्तानी जो ईश्वर से डरता है, जो लड़ाई झगड़ा पसंद नहीं करता है, के रूप में खुद को पेश किया. उन्होंने कहा कि अहंकार किसी को कभी नहीं होना चाहिए, तो क्या ये सब ज्ञान परिस्थितिजन्य था?

अरविंद केजरीवाल एक दूरदर्शी नेता हैं. वो समझ रहे हैं कि एमसीडी चुनावों में मिली जीत से उन्हें सजग होना चाहिए. शायद अपने भाषण में वो सारा ज्ञान अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को देना चाहते थे.

तो क्या अरविंद केजरीवाल की चिंता स्वभाविक है?

AAP को शानदार जीत की उम्मीद थी, पर एग्जिट पोल जो आप को 170 से ज्यादा सीटें दे रहे थे. उसके हिसाब से उन्हें बहुमत नहीं मिल सका. भारतीय जनता पार्टी जिसे लेकर यह उम्मीद थी कि 15 साल बाद एंटी इंकंबेंसी के चलते उसकी मिट्टी पलीद होगी पर ऐसा नहीं हुआ. दूसरे अरविंद केजरीवाल की फ्रीबीज पॉलिसीज, स्कूली शिक्षा में सुधार जिसकी सबसे अधिक चर्चा होती है, के चलते आप क्लीन स्वीप करेगी – ऐसा भी नहीं हुआ. आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत तो बढ़े पर पार्टी के लिए कई पहलू ऐसे हैं, जिसे लेकर उसे आत्ममंथन करना चाहिए.

एक इमानदार पार्टी पर प्रश्नचिह्न लगना

अरविंद केजरीवाल मंत्रिमंडल के 2 कोहनूर सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया पर भ्रष्टाचार के बहुत गंभीर आरोप लगे पर आम आदमी पार्टी ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया. पर इन दोनों नेताओं के क्षेत्र में आम आदमी पार्टी की जो दुर्गति हुई है, उससे यही लगता है कि पार्टी की लाख कोशिश के बाद भी आम जनता जो इन नेताओं के नजदीक है, उन्हें ही पार्टी यह समझाने में विफल रही है कि उनके नेता इमानदार हैं. बीजेपी को इन नेताओं के इलाके में मिलने वाली सफलता बताती है कि आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता दरक रही है.

मुस्लिम एरिया में अपेक्षाकृत अच्छी सफलता न मिलना

पिछले चुनावों में आम आदमी पार्टी के कोर वोटर रहे मुसलमान पार्टी से टूटते नजर आ रहे हैं. पार्टी के 2 बड़े मुस्लिम चेहरे दिल्ली वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष अमानतुल्ला खान और दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन के इलाकों में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों पर जनता ने झाड़ू चला दिया. हालांकि पुरानी दिल्ली एरिया में आम आदमी पार्टी को कुछ सफलता मिली है पर ये संतोषजनक नहीं कही जा सकती. मुसलमानों का कांग्रेस की ओर जाना आम आदमी पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं है.

बीजेपी का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ना

बीजेपी लगातार अपने वोट शेयर में सुधार कर रही है. 2015 के विधानसभा चुनाव में उसे 32 फीसदी वोट मिले थे, 2017 के एमसीडी चुनाव में उसका वोट शेयर बढ़कर 36 फीसदी हो गया. यह आगे बढ़कर 38 प्रतिशत हो गया और इस चुनाव में यह 39 प्रतिशत को पार कर गया है. इससे पता चलता है कि बीजेपी न सिर्फ अपना वोट बेस मजबूत कर रही है, बल्कि हर चुनाव में सुधार भी कर रही है.

अरविंद केजरीवाल के पुराने मित्र और कभी पत्रकार तो कभी नेता रहे आशुतोष कहते हैं कि क्या लोग आप के शासन और विकास के दिल्ली मॉडल में विश्वास करते हैं? 2013 और 2015 में सरकार बनाने के बाद, आप ने मुफ्त पानी, बिजली और अन्य मुफ्त सुविधाओं के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपनी पहल के बारे में शेखी बघारी है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दिल्ली सरकार ने सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के मामले में अच्छा काम किया है और लोग इसे स्वीकार करते हैं, लेकिन क्या चुनाव जीतने के लिए इतना ही काफी है? 2017 के एमसीडी चुनावों में, दिल्ली मॉडल को पर्याप्त सीटें नहीं मिलीं और 2022 में AAP को भाजपा को हराने के लिए संघर्ष करना पड़ा है?

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