ED केस में चिदंरबम की अग्रिम जमानत याचिका पर SC में सुनवाई जारी

नई दिल्‍ली: ED केस में पी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. ED की ओर से सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता अपनी दलीलें रख रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि जांच रिपोर्ट चिदंबरम के साथ साझा तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि कि चार्जशीट दाखिल नहीं हो जाती. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह सिर्फ अग्रिम ज़मानत का मामला है, भ्रष्टाचार का आरोप अलग होता है, पैसों को गलत तरीके से विदेश भेजने एवं वहां से लाने का आरोप अलग है और दोनों की अलग-अलग जांच होती है.

तुषार मेहता ने ADM जबलपुर फैसले को कोर्ट के सामने रखा. उन्‍होंने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग काफी चतुर व्यक्तियों द्वारा ही किया जाता है, इसमें आदमी इस प्रकार के अपराध में नही शामिल होता इसलिए अपराध की गंभीरता को समझना चाहिए. जबकि ये मामला महज अग्रिम जमानत का है. इस अपराध में मनी ट्रैल को पकड़ना जरूरी होता है लेकिन इससे जुड़े सबूत इकट्ठा करना काफी मुश्किल काम है.

तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कि सील कवर रिपोर्ट देते हुए कहा कि उसको देखकर चिदंबरम की अग्रिम जमानत पर फैसला दें. मनी लॉन्ड्रिंग कभी भी हीट ऑफ द मूवमेंट में नही होती. ये बेहद चालाकी से किया जाता है. ज्यादातर मनी लॉन्ड्रिंग डिजिटल ऑपरेशन की तरह है. ये रेप की तरह मामला नहीं है कि फोरेंसिक टीम खून का सैंपल कलेक्ट कर सके.

ED ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वो जांच की प्रगति रिपोर्ट चिदंबरम से साझा नहीं कर सकती, जब तक इस मामले में आरोपपत्र दाखिल नहीं होता.तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में सबूत बेहद संवेदनशील है लिहाजा इसको चिदंबरम से साझा नहीं कर सकते. हम मनी लॉन्ड्रिंग की जांच करने वाली ग्लोबल एजेंसी के पार्ट हैं. इंडिया उस अंतरराष्ट्रीय समुदाय का हिस्सा है जो मनी लॉन्ड्रिंग पूरी तरह से खत्म करना चाहती है.

तुषार मेहता ने कहा कि चिदंबरम का तर्क  है कि धन का लेन-देन कानून बनने से पहले होने पर लागू नहीं होता लेकिन कानून बनने के बाद भी पैसे का लेन-देन जारी रहा.हमारे पास पैसे के लेनदेन लगातार जारी रहने के पुख्ता सबूत हैं. मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में संपत्ति को संबंधित विभाग द्वारा अटैच किया जाता है, इस मामले में हमने किया. सिब्बल का कहना है कि अपराध की श्रेणी में आने से पहले यानी कानून बनने से पहले पैसे का लेनदेन हुआ था “ED के हिसाब” से. सिब्बल ने कहा था कि इसका मतलब ये है कि ये अपराध नहीं.हमारे पास सबूत है कि कानून बनने के बाद भी पैसे का लेनदेन हुआ.

तुषार मेहता ने कहा कि ED के पास ये अधिकार है कि हम आरोपी को गिरफ्तार कर सकें या हिरासत में पूछताछ जरूरी है या नहीं, ये विशेष कोर्ट तय करें. स्पेशल जज को ही ये अधिकार है कि वो PMLA के मामले में कस्टडी से संबंधित मामले में आदेश दे. इस मामले में गिरफ्तारी जरूरी है इसको लेकर हमारे पास पर्याप्‍त सबूत हैं. जांच रिपोर्ट और जानकारी सील कवर रिपोर्ट में संबंधित विभाग को दी गई है. इस मामले में हमें कई सबूत मिले हैं जैसे विदेश के बैंक से मिली जानकारी.

तुषार मेहता ने कहा कि मैं अदालत को वो मैटेरियल दिखाने को तैयार हूं.जिसके आधार पर मैं आरोपी की गिरफ्तारी की मांग कर रहा हूं.विदेश में बैंकों ने संपत्तियों के बारे में ठोस जानकारी दी है. प्रॉपर्टी की जानकारी दी है. हमने इसके लिये लेटररोगेटरी जारी किया है. जांच के दौरान इकट्ठा किए गए सबूतों की प्रतियां आरोप पत्र दाखिल करने से पहले आरोपियों के साथ साझा नहीं की जा सकती हैं. केस डायरी सबूत नहीं है. पूछताछ या सुनवाई के दौरान अदालत इसे मांग सकती है. मुझे इसमें दर्ज केस के हर पहलू को साबित करना होगा.अग्रिम जमानत कि मांग के दौरान बड़ी तादाद में दस्तावेज़ थे.जिनसे स्पष्ट होता है कि यह मामला अभियोग का बनता है और सील कवर में दस्तावेज कोर्ट को दिया जाना ऐसे मामले में गलत नहीं माना जा सकता.

इससे पहले मंगलवार को चिदंबरम की तरफ से पेश कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील पूरी कर ली थी. चिदंबरम के वकील ने कहा था कि हमने एक अर्जी फ़ाइल की है जिसमें ट्रांसक्रिप्ट की जानकारी मांगी है. PMLA के कानून के तहत अगर कोई सबूत मेरे खिलाफ लिया जाता है तो वो ट्रायल में मेरे खिलाफ काम आएगा, इसलिए मुझे उस सबूत की जानकारी होनी चाहिये. चिदंबरम के वकील ने कहा था कि अगर ED मेरे खिलाफ आरोपों को लाती है, मुझसे सवाल करती है, मेरे जवाब रिकॉर्ड पर लेती है, तो ये आरोपी का अधिकार हो जाता है कि उन जवाब को भी कोर्ट के सामने रख सके.

अभिषेक मनु सिंघवी ने आपातकाल के समय के एक फैसले का जिक्र किया जिसमें आरोपी के अधिकारों का जिक्र किया गया है. उन्‍होंने कहा था कि चिदंबरम के खिलाफ जो भी आरोप PMLA के अंतर्गत लगाए गए वो 2009 में PMLA में जोड़े गए, जबकि भ्रष्टाचार का मामला 2007 का था. चिदंबरम के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि जिस PMLA के तमाम धारा के तहत चिदंबरम को आरोपी बनाया गया वो धाराएं पैसों के लेन-देन के समय मौजूद ही नहीं थीं. आप एक शख्स को ऐसे अपराध के लिये मुख्‍य आरोपी (Kingpin) सिद्ध करने में लगे हैं, जो अपराध उस वक़्त पर मौजूद ही नहीं था.

चिदंबरम के वकील ने कहा- दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि चिदंबरम सवालों का घुमा फिरा के जवाब दे रहे थे, इसी आरोप के चलते मेरी रिमांड मांगी गई और अंतरिम राहत ख़त्म करने की मांग जांच एजेंसी ने की. क्या किसी व्यक्ति को जांच एजेंसी के अनुसार जवाब देने के लिए बाध्य किया जा सकता है, ये क्या अनुच्छेद 21 के खिलाफ नहीं होगा?

चिंदबरम के वकील सिंघवी ने कहा था कि दिल्ली हाईकोर्ट का फैसले का आधार था कि मैं जांच में सहयोग नहीं कर रहा और कानून से भाग सकता हूं लेकिन चिदंबरम तो हमेशा पूछताछ के हाजिर होते रहे हैं, जब भी उन्हें बुलाया जाता है. अगर CBI के मनमुताबिक वो जवाब नहीं दे रहे तो इसका मतलब ये नहीं कि वो जांच से बच रहे है. इस केस में अपराध की गंभीरता का हवाला दिया जा रहा है. हाईकोर्ट के जज ने भी अपने फैसले में इसका बार-बार जिक्र किया है. लेकिन गंभीरता बड़ा “सब्जेक्टिव टर्म” है. CRPC में 7 साल तक की सज़ा को कम गंभीरता वाला अपराध माना जाता है.

 

दरअसल, चिदंबरम ने ईडी की गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई हुई है जिस पर सुनवाई हो रही है. कपिल सिब्बल का आरोप है कि ईडी ने जांच को कानूनी प्रकिया से नहीं किया, न तो केस डायरी बनाई और न ही किसी ऐसे दस्तावेज को साझा किया जो आरोपी को दिया जाना था. कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया था कि ईडी ने जो हलफनामा फ़ाइल किया उसे पहले ही मीडिया में रिलीज कर दिया गया, इसका ईडी के वकील सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने विरोध किया था.

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