भोपाल : अगले महीने खत्म हो रहा वीडी शर्मा का कार्यकाल ..!
अगले महीने खत्म हो रहा वीडी शर्मा का कार्यकाल
MP में प्रदेश अध्यक्ष बदले गए तो तीन नाम आगे ….
बीजेपी सूत्रों की मानें तो, नड्डा का कार्यकाल बढ़ाए जाने के बाद भी उनकी टीम में बड़े पैमाने पर बदलाव होना तय है। इसमें राष्ट्रीय पदाधिकारियों से लेकर राज्य के अध्यक्ष भी बदले जाना है। खासकर उन राज्यों में, जहां बीजेपी की सरकार है। दरअसल, पार्टी विधानसभा चुनावों को 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के तौर पर देख रही है।
वीडी शर्मा को मिल सकती है केंद्र में जिम्मेदारी
सूत्रों का कहना है कि यदि विष्णु दत्त (वीडी) शर्मा को हटाया तो उन्हें केंद्र में जिम्मेदारी दी जा सकती है। उनके स्थान पर पार्टी चुनावी गणित के हिसाब से जातीय कार्ड खेल सकती है। इस नजर से प्रदेश में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती आदिवासी वोटबैंक को साधने की है। 2018 में हार की वजह इस बड़े वोटबैंक का छिटकना था। ऐसे में आदिवासी नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया जा सकता है। इसमें राज्यसभा सांसद डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी का नाम आगे है। सोलंकी मोदी-शाह की पसंद भी हैं और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी पटरी भी बैठ जाएगी।
सोलंकी पर इसलिए दांव क्योंकि आदिवासी वोटों का ध्रुवीकरण चाहती है बीजेपी
मप्र में आदिवासी वोटर्स 22% हैं। आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी। 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है। जिन सीटों पर आदिवासी जीत और हार तय करते हैं, वहां सिर्फ बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली है। 2013 की तुलना में 18 सीट कम है। अब सरकार आदिवासी जनाधार को वापस बीजेपी के पाले में लाने की कोशिश में जुटी है।
शुक्ला की लाॅटरी इसलिए, क्योंकि शिवराज से पटरी बैठती है, विंध्य भी सधेगा
इसी तरह वीडी शर्मा का कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया तो उनके स्थान पर सामान्य वर्ग के नेता को भी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसके लिए पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला इस रेस में आगे हैं। इसकी वजह यह है कि शुक्ला के नाम पर शिवराज सहमत हो जाएंगे और अन्य नेताओं की तरफ से उनका विरोध नहीं होगा। खास बात यह है कि शुक्ला को अध्यक्ष बनाया जाता है तो बीजेपी विंध्य के साथ-साथ महाकौशल भी साध लेगी।
पिछले चुनाव के आंकड़े देखें तो प्रदेश के छह अंचलों में विंध्याचल एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा जहां बीजेपी ने पिछले चुनावों से कहीं अधिक बेहतर प्रदर्शन किया। यहां की 30 सीटों में से उसे 24 पर जीत मिली, लेकिन 2013 में विंध्य में प्रदर्शन सबसे कमजोर था। तब 30 में से 17 सीटें जीती थीं। इस बार 7 सीटें बढ़ी हैं, लेकिन महाकौशल में बीजेपी को बड़ा झटका लगा था। पूरे अंचल की बात करें तो 38 सीटें हैं। कांग्रेस 23, भाजपा 14 और 1 निर्दलीय के खाते में गई। पिछली बार कांग्रेस 13, भाजपा 24 और 1 निर्दलीय को मिली थी।
आर्य दावेदार इसलिए, क्योंकि दलित वर्ग को साधे रखना चाहती है बीजेपी
प्रदेश में बीजेपी यदि दलित वोटर्स को साधे रखने की रणनीति पर आगे बढ़ती है तो इस वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो बीजेपी के अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालसिंह आर्य को यह कुर्सी सौंपी जा सकती है। आर्य, शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल में मंत्री रह चुके हैं। हालांकि वे 2018 में चुनाव हार गए थे।
मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए प्रदेश की 35 विधानसभा सीटें आरक्षित है, जबकि वोट बैंक के लिहाज से 17% वोट इसी वर्ग के हैं। यह वोट बैंक 50 से ज्यादा सीटों पर अपनी सीधी पकड़ रखता है और निर्णायक भूमिका में रहता है। वर्तमान में 35 सीटों में से भाजपा के पास 21 सीट है, 14 सीटें कांग्रेस के पास हैं। इससे पहले भाजपा की झोली में SC सीटें 28 थीं, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 8 सीटों का नुकसान हुआ, जबकि कांग्रेस को फायदा हुआ। इसके अलावा 28 सीटों पर भी बीजेपी की पकड़ कमजोर होती नजर आई, ऐसे में कांग्रेस इस वोट बैंक में अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है तो बीजेपी इस वर्ग पर अपनी पकड़ वापस लाना चाहती है।
बीजेपी के संविधान के अनुसार अध्यक्ष का चुनाव संभव नहीं
तकनीकी तौर पर देखें, तो 2022 में भाजपा संगठन के चुनाव नहीं हो सके हैं, इसलिए लोकसभा चुनाव तक नड्डा का कार्यकाल बढ़ाया गया है। बीजेपी के संविधान के मुताबिक कम से कम आधे राज्यों में संगठन चुनाव के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव किया जा सकता है। इस लिहाज से देश के 29 राज्यों में से 15 राज्यों में संगठन के चुनाव के बाद ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है।
कर्नाटक सहित 4 राज्यों की रिपोर्ट सौंपी, MP को मिला समय
सूत्रों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन त्रिपुरा, नगालैंड, कर्नाटक, मेघालय के प्रभारियों ने राजनीतिक रिपोर्ट सौंपी। मध्यप्रदेश को रिपोर्ट के लिए समय मिल गया है। दरअसल, बूथों पर जमावट और सोशल मीडिया का काम पूरा नहीं हो पाया है। संभावना है कि मप्र की रिपोर्ट राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अगली बैठक में सौंपी जाएगी।
मोदी कैबिनेट से ड्राॅप हो सकते हैं दो मंत्री, नए शामिल होंगे
पार्टी के वरिष्ठ नेता बता रहे हैं कि सत्ता और संगठन में संभावित बदलावों पर कार्यकारिणी की बैठक में विशेष बात नहीं हुई। बल्कि इस दौरान कोर टीम के कुछ नेताओं की अलग चर्चा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसमें मोदी कैबिनेट के संभावित फेरबदल की कवायद में मप्र के दो से तीन मंत्रियों को ड्राॅप करने और नए चेहरों को शामिल करने किए जाने पर विचार होगा।
संभावना है कि महाकौशल अंचल से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को संगठन में कोई जिम्मेदारी मिल सकती है। उनके स्थान पर जबलपुर से तीन बार के सांसद राकेश सिंह को मोदी की टीम में जगह मिल सकती है। फग्गन सिंह को गृहमंत्री अमित शाह का करीबी माना जाता है। इसी तरह राज्यसभा सांसद डाॅ. सुमेर सिंह सोलंकी को भी मोदी अपनी टीम में शामिल कर सकते हैं।
एमपी सहित राजस्थान-छत्तीसगढ़ से नड्डा को टेंशन?
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि नड्डा का एक्सटेंशन कांटों के ताज पर बैठने जैसा है। उन्हें सबसे ज्यादा टेंशन मध्यप्रदेश के अलावा राजस्थान और छत्तीसगढ़ होने वाली है। दरअसल, मध्यप्रदेश में पार्टी को अंदरुनी कलह का सामना करना पड़ रहा है। यहां पार्टी को पिछली बार हार का सामना करना पड़ा था। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत के बाद पार्टी ने राज्य ने सरकार बनाई थी। यहां पार्टी को फिर सत्ता में आने के लिए पूरा जोर लगाना होगा।
छत्तीसगढ़ में पार्टी को कांग्रेस के मजबूत संगठन के साथ-साथ सीएम भूपेश बघेल की चुनौती से पार पाना होगा। राजस्थान में बीजेपी कई धड़ों में बंटी है। वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया के बीच तनातनी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन पार्टी को यहां एक फायदा ये है कि कांग्रेस में भी जबरदस्त उठापटक है।