फेंके गए 5 हजार मासूमों में 70% लड़कियां ..!

फेंके गए 5 हजार मासूमों में 70% लड़कियां:MP-महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा बच्चे कूड़ेदान में मिले, यूरोप से आया बेबी हैचेज-पालनाघरों का चलन

‘20 दिसंबर 2022, ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क एरिया में झाड़ियों में फेंकी गई बच्ची के बारे में खबर मिली। बच्ची को कुत्ते नोंच रहे थे। वह 4-6 घंटे पहले ही पैदा हुई थी। मां से जुड़ी गर्भनाल (एंबीलिकल कॉर्ड) भी ताजी थी। कंपकंपाती ठंड में वह एक पतले कंबल में लिपटी हुई थी। भूख से बिलबिला रही थी। फेंकने से उसका बायां पैर टूट गया था। सुबह 8.30 बजे मैं वहां पहुंचा। बच्ची को घर पर ले गया और पत्नी को दिया। पत्नी ने बच्ची को सीने से लगाकर अपना दूध पिलाया, गर्म कपड़ों में लपेटा। तब उसे अस्पताल पहुंचाया। उसे हाइपोथर्मिया हो गया था। मासूम को मशीन से गर्मी दी गई तब उसकी जान बची।’

ग्रेटर नोएडा के नॉलेज पार्क थाने के SHO विनोद कुमार सिंह ने दैनिक भास्कर को फोन पर बताया कि बच्ची को देखकर यह सोचने पर मजबूर हुआ कि कैसे कोई अपने ही बच्चे को इस हालत में फेंक सकता है।

यह हालात एक शहर के नहीं, बल्कि बच्चों को फेंकने की खबरें हर शहर-कस्बे से सुनाई पड़ती हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) हर साल अबॉर्शन, इंफैंटिसाइड (एक साल से कम उम्र के बच्चे को मारना), फीटिसाइड (भ्रूण हत्या) और अबैन्डन्मेन्ट (जन्म के बाद बच्चे को छोड़ देना) पर अपनी रिपोर्ट देता है। ये ग्राफिक देखें।

 

भारत ही नहीं पूरी दुनिया में फेंके जाते हैं बच्चे

नवजात बच्चों को फेंकने का अपराध भारत में ही नहीं है बल्कि अमेरिका और यूरोप के देशों में भी है। यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोप के देशों इटली, हंगरी, जर्मनी, पोलैंड, रूस, फ्रांस, ग्रीस जैसे विकसित देशों में भी नवजातों को सड़कों पर फेंक दिया जाता है या टॉयलेट में छोड़ दिया जाता है। भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी नवजातों को फेंकने के मामले सामने आते हैं।

यूरोप से हुई बेबी हैचेज की शुरुआत

‘द इकोनॉमिस्ट’ पत्रिका के अनुसार, 18वीं सदी में यूरोप में फेंके गए नवजातों को बचाने की शुरुआत की गई। इसे ‘बेबी हैचेज’ का नाम दिया गया। यह एक ऐसा आश्रय स्थल है जो पालने की शक्ल में होता है और किसी अस्पताल से ही जुड़ा होता है। जो माता-पिता अपने बच्चे को पाल नहीं सकते वो उन्हें यहां छोड़ जाते हैं। पालने में बच्चे के आने के बाद उसके पालन-पोषण की जिम्मेदारी सरकार पर होती है। इन बच्चों को जो गोद लेना चाहे, वह कानूनी प्रक्रिया से गोद ले सकता है। अब पूरे यूरोप में बेबी हैचेज का चलन है।

जर्मनी में 200 से अधिक जगहों पर बेबी हैचेज

कुछ देशों में बेबी हैचेज को ‘फाउंडलिंग व्हील्स’ नाम दिया गया। इटली, हंगरी, पोलैंड, रूस, जापान, फिलीपिंस, साउथ अफ्रीका, कनाडा, अमेरिका में बेबी हैचेज सेंटर हैं। चीन और पाकिस्तान में भी ‘सेफ आइलैंड बेबीज’ नाम से बच्चों के बेबी हैचेज हैं। जर्मनी में 200 से अधिक जगहों पर बेबी हैचेज हैं। अमेरिका में अस्पतालों, पुलिस स्टेशन, फायर स्टेशन के बाहर भी बेबी हैचेज बनाए गए हैं।

देश में तमिलनाडु से शुरू हुई नवजातों को बचाने की मुहिम

भारत में तमिलनाडु पहला राज्य है जहां सबसे पहले फेंके गए बच्चों को बचाने का कैंपेन शुरू हुआ। 1991 में जब जयललिता मुख्यमंत्री बनीं तब उनकी पहली स्कीम क्रेडल बेबी स्कीम ही थी।

इसका उद्देश्य था महिला भ्रूण हत्या और अबॉर्शन को कम करना। यूरोप के देशों की तरह पालने में मिले बच्चे की देखरेख और उसके गोद लेने की जिम्मेदारी राज्य की है।

यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड की रिपोर्ट के अनुसार, योजना शुरू होने के 25 वर्षों में तमिलनाडु में पांच हजार से अधिक बच्चों को क्रेडल बेबी स्कीम के जरिए बचाया गया है। इनमें चार हजार से अधिक लड़कियां हैं।

हर जिले में खोला गया है क्रेडल बेबी रिसेप्शन सेंटर

केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से देश के हर जिले में क्रेडल बेबी रिसेप्शन सेंटर खोला गया है जिसकी सारी जिम्मेदारी SAA (Specialized Adoption Agency) पर होती है। यह एजेंसी सरकार की हो सकती है या फिर कोई NGO भी इसे चला सकता है। जिले में भीड़-भाड़ वाली जगहों जैसे बस अड्‌डा, रेलवे स्टेशन, अस्पताल के बाहर क्रेडल प्वाइंट्स (पालना स्थल) बनाए जाते हैं। जब इनमें कोई बच्चा छोड़ जाता है तो अलार्म बजने लगता है।

पालना स्थल में बच्चा आने के बाद क्या होता है-

  • डॉक्टर बच्चे को देखते हैं, जरूरत पड़ने पर मेडिकल ट्रीटमेंट दी जाती है
  • चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC)को बच्चे के मिलने की सूचना दी जाती है
  • CWC पर बच्चे की देखरेख और उसकी जरूरतों की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी होती है
  • बच्चे के जन्म का रजिस्ट्रेशन किया जाता है
  • जितना संभव हो, बच्चे के एडॉप्शन की कोशिश की जाती है

फेंकें नहीं हमें दें, पालने में छोड़ जाएं

राजस्थान सहित देश के अलग-अलग इलाकों में पालना स्थल खोलने वाले महेशाश्रम के फाउंडर योग गुरु देवेंद्र अग्रवाल फेंक दिए गए बच्चों का जीवन बचाने में लगे हैं। वो कहते हैं झाड़ियों में जब फेंके हुए नवजातों के बारे में सुनता था, देखता था तो मन द्रवित हो जाता था। तब 2007 में मैंने एक मुहिम की शुरुआत की। ‘फेंके नहीं हमें दें, बिना पहचान बताए पालने में छोड़ जाएं।’ हमने उदयपुर में पालना स्थल बनाया जहां कोई महिला बिना अपनी पहचान बताए नवजात को छोड़ सकती है। पहले ही महीने पालने में तीन बच्चे मिले। तब से अब तक सैकड़ों बच्चे पालने में आ चुके हैं।

क्रेडल रिसेप्शन सेंटर में पालना कैसा होता है और यह किस तरह काम करता है, इसे ग्राफिक से देखते हैं।

कूड़े में मिले 99% बच्चे नहीं बच पाते

देवेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि कचरे में या झाड़ियों में मिले बच्चों को बचाना बहुत मुश्किल होता है। उनमें बहुत सारे कॉम्प्लिकेशंस होते हैं। वो प्रयागराज का उदाहरण देते हैं कि वहां पिछले 2 वर्षों में 29 नवजात मासूम कूड़े के ढेर में मिले। इनमें से 21 बेटियां थीं। वर्ष 2020 और 21 में भी लगभग इतने ही मासूम कूड़े के ढेर में मिले। इनमें से एक-दो को ही बचाया जा सका।

देवेंद्र कहते हैं कि यह तो वह संख्या है जो आधिकारिक है, वास्तविक संख्या तो इससे कहीं अधिक है। ऐसी ही स्थिति उत्तर प्रदेश के दूसरे जिलों में भी है। राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, हरियाणा और पंजाब ही नहीं लगभग पूरे देश में कमोबेश ऐसे ही हालात हैं।

पालना स्थल में मिले बच्चों को मिलता है जीवन

सूरत का उदाहरण देते हुए देवेंद्र बताते हैं कि वहां 5 वर्ष में 120 नवजात कूड़े के ढेर में मिले। इनमें से 99% को नहीं बचाया जा सका, जबकि पालना स्थल या बेबी हैचेज में त्याग किए गए बच्चे बचा लिए जाते हैं।

देश के कई राज्यों में क्रेडल बेबी स्कीम चलाई जा रही है। राजस्थान के राजसमंद जिले में पिछले 5 वर्षों में 16 मासूम नवजातों को पालन स्थल पर छोड़ा गया। ये सभी बच्चे सुरक्षित हैं। जबकि राजसमंद में ही 6 बच्चों को जंगल, झाड़ियों या दूसरे असुरक्षित स्थानों पर फेंक दिया गया। इनमें से एक को भी बचाया नहीं जा सका।

फेंके गए बच्चों में 70% लड़कियां

आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में ही नहीं, बल्कि विकसित राज्यों में भी बच्चों के फेंके जाने का ट्रेंड एक जैसा है। हाई टेक सिटी हैदराबाद में 2022 में ऐसे 92 बच्चे मिले, जिनमें से 52 लड़कियां थीं। सभी 92 बच्चों में से 66 की उम्र 0 से 2 वर्ष के बीच थी। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र में इसी तरह नवजातों को फेंके जाने के मामले सामने आते हैं। इन राज्यों में भी क्रेडल बेबी स्कीम को अपनाया गया है।

भ्रूण हत्या, नवजातों को फेंकने या चोट पहुंचाने पर सजा का क्या प्रावधान हैं, आइए जानते हैं।

पालना घर में आए बच्चों का हो रहा एडॉप्शन

पालना स्थलों में मिले बच्चों को पालना घरों में भेजा जाता है। हालांकि पिछले 12 साल का डाटा देखें तो बच्चों के गोद लेने में कमी आई है। सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) के अनुसार, 2021-22 में 2,991 बच्चों को एडॉप्ट किया गया। इनमें 1293 लड़के और 1698 लड़कियां हैं। खास बात यह है कि 414 बच्चों को विदेशी दंपती ने गोद लिया।

चलते-चलते…

पालना घरों में तीन से छह महीने तक बच्चों को रखा जाता है जहां उन्हें गोद लिया जाता है। इसकी प्रक्रिया सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) की ओर से पूरी की जाती है। अगर किसी बच्चों को इस टाइमफ्रेम में गोद नहीं लिया जाता तो उन्हें शिशु गृह में भेज दिया जाता है जहां वे छह साल की उम्र तक रहते हैं। इन शिशु गृह में बच्चों की देखरेख की सारी जिम्मेदारी सरकार पर होती है। छह साल से ऊपर के बच्चों को 18 साल की उम्र पूरी होने तक बालक या बालिका गृह में रखा जाता है। इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्टेड स्कीम (ICPS) जिसे अब वात्सल्य योजना कहा जाता है, इसके तहत बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, स्किल्ड बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। बालिग होने पर बच्चे इन बालक गृहों से निकल जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *