जम्मू-कश्मीर:बुलडोजर के विरोध में पत्थरबाज़ी की चेतावनी क्यों दे रहे हैं ग़ुलाम नबी
देशभर में जब अतिक्रमण पर बुलडोजर चलता है तो लोग खुश होते हैं कि वर्षों से जिन्होंने, जो ज़मीनें दबा रखी थीं, कम से कम अब आज़ाद होंगी या संकरी गलियाँ अब चौड़ी हो जाएँगी या पतली सड़कें अब मोटी हो जाएँगी, लेकिन जम्मू-कश्मीर में अलग ही राग चल रहा है। जिनके क़ब्ज़े से ज़मीनें ली जा रही हैं, वे तो कम बोल रहे हैं, नेताओं को ज़्यादा दर्द हो रहा है।
दरअसल, क़ब्ज़े इन्हीं नेताओं ने किए हैं या कराए हैं। क़ब्ज़े करने वालों में PDP और कांग्रेस ही नहीं भाजपा के लोग भी हैं। हैरत की बात ये है कि हाल में कांग्रेस से अलग हुए नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद को भी अब दर्द हो रहा है। उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई है जिसका नाम है डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी। समझा जाता है कि वे एक तरह से भाजपा का ही समर्थन करने वाले हैं।
आज़ाद कह रहे हैं कि ये बुलडोजर बंद करो वर्ना वर्षों से बंद पत्थरबाज़ी फिर शुरू हो सकती है। आज़ाद के इस बयान को धमकी के तौर पर लिया जा रहा है। हालाँकि, वे उन छोटे दुकानदारों के बारे में कह रहे हैं जिनकी रोज़ी-रोटी इस अतिक्रमण विरोधी अभियान से छिन सकती है, लेकिन निश्चित तौर पर अतिक्रमण तो अतिक्रमण है और इसे हटाते वक्त कुछ को छोड़ा जाना तो अनुचित ही माना जाएगा।
वास्तव में अपनी नई पार्टी के वोटों की दुकान चलाए रखने के लिए आज़ाद इनकी पैरवी कर रहे हैं। सही है, आपकी पार्टी को वोट इसी तबके से मिलने वाले हैं, लेकिन इसके लिए प्रशासन की पूरी मुहिम को ही ग़लत बताने में आप कौन सा न्याय देख रहे हैं?
राज्यपाल शासन में पहली बार यहाँ न्याय की बात की जा रही है। भाई लोगों ने वर्षों से सरकारी ज़मीन को दबा रखा है। अब हद पता चल रही है तो सबको दर्द हो रहा है। पिछले दिनों महबूबा मुफ़्ती ने कहा था कि बुलडोजर चलाकर कश्मीर को अफ़ग़ानिस्तान बनाया जा रहा है। शायद महबूबा को अफ़ग़ानिस्तान होने का मतलब ठीक से अभी पता नहीं है।
यहाँ अतिक्रमण विरोधी मुहिम की ख़ूबसूरती बाक़ी देश के इस तरह के अभियान से एकदम अलग है। जो ज़मीन छुड़ाई जा रही है, उसे तुरंत सरकारी विभागों को अलॉट भी किया जा रहा है। ताकि दोबारा किसी निजी क़ब्ज़े की कोई गुंजाइश नहीं रहे। कश्मीरी नेताओं को इसका भी दर्द है।
अमूमन होता यह है कि प्रशासन मुहिम चलाकर भूल जाता है और लोग दोबारा उसी ज़मीन को हथियाकर बैठ जाते हैं। यहाँ ऐसी कोई कसर छोड़ी नहीं जा रही है। ग़नीमत है कि यहाँ के बड़े नेताओं के आलीशान महलों पर बुलडोजर अब तक नहीं चला है वर्ना दर्द दिल्ली तक पहुँच जाता।