कौन है अमृतपाल …!

कौन है अमृतपाल, जिसे भिंडरांवाले पार्ट-2 कहा जा रहा …! थाने पर हमला कर साथी को रिहा कराया, अमित शाह को भी दी धमकी

500 साल से हमारे पूर्वजों ने इस धरती पर अपना खून बहाया है। कुर्बानी देने वाले इतने लोग हैं कि हम उंगलियों पर गिना नहीं सकते। इस धरती के दावेदार हम हैं। इस दावे से हमें कोई पीछे नहीं हटा सकता। न इंदिरा हटा सकी थी और न ही मोदी या अमित शाह हटा सकता है। दुनिया भर की फौजें आ जाएं, हम मरते मर जाएंगे, लेकिन अपना दावा नहीं छोड़ेंगे।’

ये बयान खालिस्तान समर्थक संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह का है। दरअसल, वारिस पंजाब दे से जुड़े हजारों लोगों ने गुरुवार को अमृतसर के अजनाला थाने पर हमला कर दिया। इनके हाथों में बंदूकें, तलवारें और भाले थे। ये लोग संगठन के प्रमुख अमृतपाल सिंह के करीबी लवप्रीत सिंह तूफान की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे। इनके हमले के बाद दबाव में आई पंजाब पुलिस ने आरोपी को रिहा करने का ऐलान कर दिया।

अपने साथी की रिहाई के लिए गुरुवार को अमृतसर के अजनाला थाने पर धावा बोलते हुए अमृतपाल और उसके समर्थक।

हम बताएंगे कि कौन है वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख अमृतपाल सिंह? क्यों उसे भिंडरांवाले पार्ट-2 कहा जा रहा है? पंजाब की राजनीति में वो कैसे इतनी तेजी से उभर रहा है?

पंजाब के अमृतसर जिले में जल्लूपुर खेड़ा में साल 1993 में अमृतपाल सिंह का जन्म हुआ। 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद साल 2012 में अमृतपाल काम के सिलसिले में दुबई चला गया। दुबई में वह ट्रांसपोर्ट बिजनेस का काम करने लगा।

पिछले साल फरवरी में दीप सिद्धू की मौत के बाद ‘वारिस पंजाब दे’ को संभालने के लिए अमृतपाल वापस पंजाब लौट आया। 29 सितंबर 2022 को मोगा जिले के रोडे गांव में अमृतपाल को ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख घोषित किया गया। दरअसल, खालिस्तानी आतंकी रहे जरनैल सिंह भिंडरांवाला इसी रोडे गांव का रहने वाला था। इस दौरान यहां पर हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे, जिन्होंने खालिस्तान के समर्थन में नारे लगाए।

‘वारिस पंजाब दे’ संगठन को पंजाबी अभिनेता संदीप सिंह उर्फ दीप सिद्धू ने सितंबर 2021 में बनाया था। दीप सिद्धू 26 जनवरी 2021 को लालकिले पर हुए उपद्रव के मामले में प्रमुख आरोपी था। इस संगठन का मकसद- युवाओं को सिख पंथ के रास्ते पर लाना और पंजाब को जगाना है। इस संगठन के एक मकसद पर विवाद भी है वह है- पंजाब की ‘आजादी’ के लिए लड़ाई।

सोशल मीडिया एक्टिविटी से पता चलता है कि अमृतपाल पिछले 5 सालों से सिखों से संबंधित मुद्दों पर मुखर होकर बोल रहा है। वह 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का भी हिस्सा बना, खासकर दीप सिद्धू से जुड़े आंदोलन का।

शंभू बॉर्डर पर दीप सिद्धू अपने भाषणों में कहता ​​था कि कृषि कानूनों को निरस्त करने के बावजूद आंदोलन बंद नहीं होना चाहिए, बल्कि पंजाब में एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन की ओर ले जाना चाहिए। अमृतपाल सिंह के अपने विचार भी ऐसे ही हैं, लेकिन उसने दीप सिद्धू से अलग राह पकड़ी है।

यहां एक और रोचक बात है कि अमृतपाल और दीप सिद्धू जाहिर तौर पर कभी एक-दूसरे से नहीं मिले और दोनों के बीच सिर्फ सोशल मीडिया के जरिए ही बातचीत हुई।

यहीं से अमृतपाल सिंह का विवादों से नाता जुड़ जाता है। उनके समर्थकों का दावा है कि दीप सिद्धू, अमृतपाल सिंह के करीबी थे। इसीलिए वह वारिस पंजाब दे के प्रमुख बनने के सबसे योग्य थे। दीप सिद्धू के कुछ सहयोगी जैसे पलविंदर सिंह तलवारा और परिवार के कुछ सदस्य अमृतपाल को प्रमुख बनाए जाने का विरोध करते हैं।

पत्रकार भगत सिंह दोआबी का दावा है कि सिद्धू ने अमृतपाल को सोशल मीडिया पर ब्लॉक तक कर दिया था। लुधियाना के वकील और दीप सिद्धू के भाई मनदीप सिंह सिद्धू एक बातचीत में बताते हैं कि हम अमृतपाल से पहले कभी नहीं मिले। दीप सिद्धू भी उससे कभी नहीं मिले। वह कुछ समय तक फोन पर दीप के संपर्क में रहा, लेकिन बाद में दीप ने उसे ब्लॉक कर दिया।

हमें नहीं पता कि उसने खुद को मेरे भाई के संगठन का प्रमुख कैसे घोषित कर दिया। वह असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए हमारे नाम का दुरुपयोग कर रहा है। उसने किसी तरह मेरे भाई के सोशल मीडिया अकाउंट्स को एक्सेस कर लिया और उन पर पोस्ट करना शुरू कर दिया।

मनदीप कहते हैं कि मेरे भाई ने इस संगठन को पंजाब के मुद्दों को उठाने और जरूरतमंदों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए बनाया था न कि खालिस्तान का प्रचार करने के लिए। अमृतपाल पंजाब में अशांति फैलाने की बात कर रहा है। वह मेरे भाई और खालिस्तान का नाम लेकर लोगों को बेवकूफ बना रहा है। मेरा भाई अलगाववादी नहीं था।

अमृतपाल सिंह पंजाबियों से किस तरह की बात करता है?

जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि दीप सिद्धू की तरह ही अमृतपाल सिंह भी पंजाब में एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन का आह्वान करता है। उसका मानना ​​है कि कृषि कानूनों को इससे अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। हालांकि दीप सिद्धू की तुलना में अमृतपाल के शब्द काफी तीखे होते हैं। कुछ लोग दीप सिद्धू की तुलना में अमृतपाल को अधिक विवादास्पद शख्स के रूप में देखते हैं।

अमृतपाल सिंह का कहना है कि कृषि कानून हों, पंजाब में पानी का संकट हो, नशीली दवाओं का संकट हो, यूपी और बिहार से लोगों का पंजाब में पलायन हो, राजनीतिक असंतुष्टों की गिरफ्तारी हो, पंजाबी भाषा को कमजोर करना हो, ये सभी सिखों के मूक नरसंहार का हिस्सा हैं।

इसे आप उसके इस बयान से भी समझ सकते हैं। अमृतपाल ने पंजाब के जीरा में शराब बनाने वाली फैक्ट्री के विरोध में हिस्सा लिया था। उसने इस दौरान कहा था कि इस तरह के कारखाने पंजाबियों के मूक नरसंहार का हिस्सा हैं, क्योंकि इससे पानी दूषित होने के साथ ही नशा भी बढ़ेगा।

अमृतपाल का कहना है कि सिख मूल्यों को कमजोर करने और पॉप संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए सिखों को अपने बाल काटने और दाढ़ी काटने के लिए प्रोत्साहित करना भी साइलेंट नरसंहार की प्रक्रिया का हिस्सा है।

अमृतपाल कहता है कि नरसंहार में हत्या होना जरूरी नहीं है। अगर एक पोता अपने दादा की तरह नहीं दिखता है? अगर एक शेर की संतान शेर की तरह नहीं, बल्कि हिरण की तरह दिखती है, तो क्या यह एक तरह का नरसंहार नहीं है?

अमृतपाल कहता है कि पंजाब पंजाबियों के लिए है और नौकरियों को सभी स्तरों पर स्थानीय लोगों के लिए रिजर्व करने की जरूरत है। अमृतपाल के आलोचकों का कहना है कि वह जरनैल सिंह भिंडरांवाले की तरह अपने भाषण से युवाओं को उग्रवाद की ओर ले जा सकता है और ऐसे रास्ते पर ले जा सकता है जहां युवाओं को गिरफ्तार किया जा सकता है या मार दिया जा सकता है। वह हिंदू विरोध की बात करता है।

इस तरह के आरोपों पर अमृतपाल सिंह जवाब देता है कि क्या गुरु गोबिंद सिंह ने अपने बेटों की बलि नहीं दी थी? क्या होता अगर उन्होंने भी नतीजों के बारे में सोचा होता? तब सिखों का क्या होता? अमृतपाल कहता है, ‘मैं नहीं चाहता कि कोई मरे, लेकिन अगर किसी का बेटा सिख के लिए अपनी जान दे देता है तो वह गुरु का बेटा बन जाता है।’

कई राजनीतिक दलों ने अमृतपाल पर पंजाब को अस्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। वहीं उसके कुछ आलोचकों का कहना है कि वह सिखों और अन्य समुदायों, विशेषकर हिंदुओं के बीच विभाजन को बढ़ा रहा है। अपनी पब्लिक रैलियों में वह यूपी और बिहार से हिंदुओं और जम्मू से गुर्जर मुस्लिमों के पलायन की बात भी करता है।

गृह मंत्री अमित शाह को भी धमकी दे चुका है अमृतपाल

खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी धमकी दे चुका है। अमृतपाल ने रविवार को पंजाब के मोगा जिले के बुधसिंह वाला गांव में कहा था कि इंदिरा ने भी दबाने की कोशिश की थी, क्या हश्र हुआ? अब अमित शाह अपनी इच्छा पूरी कर के देख लें। अमृतपाल पंजाबी सिंगर दीप सिद्धू की बरसी में आया था।

दरअसल, अमित शाह ने कुछ दिन पहले कहा था कि पंजाब में खालिस्तान समर्थकों पर हमारी नजर है। अमृतपाल से शाह के बयान को लेकर सवाल किया गया था। इस पर अमृतपाल ने कहा कि शाह को कह दो कि पंजाब का बच्चा-बच्चा खालिस्तान की बात करता है। जो करना है कर ले। हम अपना राज मांग रहे हैं, किसी दूसरे का नहीं।

युवाओं के गुस्से को भुना रहा

दीप सिद्धू की अचानक मौत और सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने पंजाब के युवाओं के एक बड़े वर्ग को आहत किया है। हालांकि, दोनों की पंजाब और सिखों से संबंधित मुद्दों पर एक अलग राय थी। ऐसे में पंजाब के युवाओं के पास एक रोल मॉडल की कमी थी और अमृतपाल सिंह सिख युवाओं के एक वर्ग के लिए उस खालीपन को भरने की कोशिश कर रहा है।

अमृतपाल अपनी भाषण शैली के कारण चर्चा में आ गया। अपने भाषण में वह खालिस्तान के समर्थन में खुल कर बोलता है। इतना ही नहीं, वह पंजाब के युवाओं को ड्रग्स के जाल से मुक्त करवाने के दावों के साथ युवाओं को अपने साथ जोड़ रहा है। वह पंजाब पंजाबियों के लिए है की अपील करता है और नौकरियों में आरक्षण की मांग का मुद्दा भी उठा रहा है, क्योंकि राज्य में बेरोजगारी एक प्रमुख मुद्दा है।

उसके युवा समर्थकों में एक आम बात सुनने को मिलती है कि कम से कम कोई तो कुछ कर रहा है। यही वजह है कि कुद लोग अमृतपाल की तुलना जरनैल सिंह भिंडरांवाले से कर रहे हैं। 1970 के दशक में जरनैल सिंह भिंडरांवाला भी कुछ इसी तरह का काम करता था। वह पोर्नोग्राफी, ड्रग एडिक्टों और उपभोक्तावाद के खिलाफ प्रचार करते हुए पूरे पंजाब में यात्रा करता था। उसे भी पहले ऐसे ही बढ़ावा दिया गया था।

खालिस्तान समर्थक होने की वजह से अमृतपाल सिंह को भिंडरांवाला पार्ट-2 भी कहा जा रहा है। अमृतपाल, भिंडरांवाले की तरह ही नीली पगड़ी पहनता है। पिछले साल 29 सितंबर को मोगा जिले के रोडे गांव में ‘वारिस पंजाब दे’ की पहली वर्षगांठ पर एक कार्यक्रम किया था। दरअसल, यह भिंडरावाले का ही पैतृक गांव है।

अमृतपाल कहता है, ‘भिंडरांवाले मेरी प्रेरणा हैं। मैं उनके बताए रास्ते पर चलूंगा। मैं उनके जैसा बनना चाहता हूं क्योंकि ऐसा हर एक सिख चाहता है। मैं पंथ की आजादी चाहता हूं। मेरे खून का हरेक कतरा इसके लिए समर्पित है। बीते समय में हमारी जंग इसी गांव से शुरू हुई थी। भविष्य की जंग भी इसी गांव से शुरू होगी। हम सभी अब भी गुलाम हैं। हमें अपनी आजादी के लिए लड़ना होगा। हमारा पानी लूटा जा रहा है। हमारे गुरु का अपमान किया जा रहा है। पंथ वास्ते जान देने के लिए पंजाब के हरेक युवा को तैयार रहना चाहिए।’

कौन था जरनैल सिंह भिंडरांवाला, जिसे अपनी प्रेरणा बताता है अमृतपाल?

आनंद साहिब रिजोल्यूशन का ही एक कट्टर समर्थक था जरनैल सिंह भिंडरांवाला। एक रागी के रूप में सफर शुरू करने वाला भिंडरांवाला आगे चल कर आतंकी बन गया। जाने-माने सिख पत्रकार खुशवंत सिंह का कहना था कि भिंडरांवाला हर सिख को 32 हिंदुओं की हत्या करने को उकसाता था। उसका कहना था कि इससे सिखों की समस्या का हल हमेशा के लिए हो जाएगा।

1982 में भिंडरांवाले ने शिरोमणि अकाली दल से हाथ मिला लिया और असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। यही असहयोग आंदोलन आगे चलकर सशस्त्र विद्रोह में बदल गया। इस दौरान जिसने भी भिंडरांवाले का विरोध किया, वह उसकी हिट लिस्ट में आ गया।

इसी के चलते खालिस्तान आतंकियों ने पंजाब केसरी के संस्थापक और एडिटर लाला जगत नारायण की हत्या कर दी। आतंकियों ने अखबार बेचने वाले हॉकर तक को नहीं छोड़ा। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने उस समय अकाली दल के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भिंडरांवाले का समर्थन किया।

इसके बाद सुरक्षाबलों से बचने के लिए भिंडरांवाला स्वर्ण मंदिर में जा घुसा। दो साल तक सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। इसी दौरान भिंडरांवाला स्वर्ण मंदिर परिसर में बने अकाल तख्त पर काबिज हो गया।

पहले अन्य विकल्पों पर चर्चा की गई। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भिंडरांवाले को पकड़ने के लिए एक गुप्त ‘स्नैच एंड ग्रैब’ ऑपरेशन को लगभग मंजूरी दे दी थी। इस ऑपरेशन के लिए 200 कमांडो को प्रशिक्षित भी किया गया था।

जब इंदिरा गांधी ने पूछा कि इस दौरान आम लोगों को कितना नुकसान हो सकता है, इस पर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद ऑपरेशन सनडाउन को रोक दिया गया। इसके बाद सरकार ने सेना को भेजने का फैसला ले लिया।

कहा जाता है कि 5 जून को कांग्रेस (I) के सभी सांसदों और विधायकों को जान से मारने की धमकी और गांवों में हिंदुओं की सामूहिक हत्याएं शुरू करने की योजना का खुलासा होने के बाद यह फैसला किया गया।

5 जून 1984 को रात 10:30 बजे ऑपरेशन का पहला चरण शुरू किया गया था। स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर की इमारतों पर आगे से हमला शुरू किया गया। इस दौरान खालिस्तानी आतंकियों ने भी सेना पर खूब गोलीबारी की।

7 जून तक भारतीय सेना ने परिसर पर कंट्रोल कर लिया। ऑपरेशन ब्लूस्टार 10 जून 1984 को दोपहर में समाप्त हो गया। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान सेना के 83 जवान शहीद हुए और 249 घायल हो गए। सरकार के अनुसार, हमले में 493 आतंकवादी और नागरिक मारे गए। हालांकि कई सिख संगठनों का दावा है कि ऑपरेशन के दौरान कम से कम 3,000 लोग मारे गए थे।

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