कम दोषी नहीं भेड़चाल के शिकार छात्र भी …!
विदेश में पढ़ाई का सपना तो टूटा ही, लाखों रुपए की चपत भी लग गई। यह पहला मौका नहीं है जब विद्यार्थियों को ठगा गया हो, पहले भी ऐसे मामले आते रहे हैं। इसके लिए जिम्मेदार फर्मों के खिलाफ कार्रवाई भी होती है, पर कोई स्थायी उपाय नहीं किए जाते। नतीजा, भोले-भाले लोगों को ठगने का सिलसिला चलता रहता है कभी पढ़ाई के नाम पर तो कभी नौकरी के नाम पर। अब देखना है कि इस बार सरकारें क्या कदम उठाती हैं।
ऐसा नहीं हो सकता कि इस तरह का फर्जीवाड़ा किसी कनाडाई के सहयोग के बगैर हुआ हो। इसलिए भारत ही नहीं, कनाडा में भी सख्त कार्रवाई की दरकार है। इसके पीछे ब्रजेश मिश्रा नाम के जिस शख्स की तलाश है वह 2013 में भी विद्यार्थियों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर विदेश भेजने के जुर्म में पकड़ा गया था। पर बाद में उसने नाम बदलकर दूसरी कंपनी बना ली और बेखौफ धंधा चलाता रहा। सबसे बड़ा सवाल यह है कि साइबर निगरानी की अत्याधुनिक सहूलियतों के इस दौर में सुरक्षा एजेंसियों को फर्जी फर्मों के खिलाफ कार्रवाई से कौन रोकता है। हर बार सांप निकल जाने के बाद ही लकीर क्यों पीटी जाती है। कार्यालय, ऑनलाइन पोर्टल और सोशल मीडिया पर उपस्थिति देख सामान्य व्यक्ति तो ऐसी फर्जी फर्मों को लेकर धोखा खा सकता है, पर ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति निगरानी तंत्र की लापरवाही मानी जाए या मिलीभगत? विदेश भेजने के नाम पर जारी अवैध कारोबार के जालसाज तो जिम्मेदार हैं ही, बिना जांच-पड़ताल के फर्जी फर्मों की सेवा लेने वाले भी कम दोषी नहीं हैं जो किसी भी तरह विदेश पहुंचने की लालसा में अपना विवेक खो देते हैं।
कनाडा से वापस भेजे गए छात्रों में कुछ ऐसे भी हो सकते हैं जिन्हें पहले से ही फर्जीवाड़े की जानकारी हो। ऐसा नहीं है कि जो पढ़ाई ये छात्र कनाडा जाकर करना चाहते हैं उसकी व्यवस्था भारत में नहीं है, फिर भी विदेश जाने की भेड़चाल आखिर में उन्हें कहीं का नहीं छोड़ती।