अब गर्मियों में पहाड़ भी नहीं दे रहे सुकून, वेकेशन प्लान कर रहे हैं तो पढ़ लें ये रिपोर्ट

 जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के 16 स्टेशनों के ठंडे दिनों और ठंडे रातों के विश्लेषण से पता चला है कि अधिकांश स्टेशनों में दिन लंबे हो रहे और रातें छोटी हो रही है. ……

अब गर्मियों में पहाड़ भी नहीं दे रहे सुकून, वेकेशन प्लान कर रहे हैं तो पढ़ लें ये रिपोर्ट

शिमला: जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिल स्टेशन आने वाले दिनों में पर्यटन मानचित्र से गायब हो सकते है. इसका सबसे बड़ा कारण है जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के हिल स्टेशनों का बढ़ता तापमान. दरअसल जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के हिल स्टेशनों के दिन और रातें गर्म हो रहीं हैं, ऐसे में संभव है कि कुछ सालों मे लोग इन राज्यों के हिल स्टेशनों की बजाए नार्थ ईस्ट या दूसरे राज्यों का रूख करें.

प्राकृतिक आपदा की घटनाएं भी बढ सकती है

जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के 16 स्टेशनों के ठंडे दिनों और ठंडे रातों के विश्लेषण से पता चला है कि अधिकाशं स्टेशनों के गर्म दिनों की संख्या बढ रही है और ठंडे दिनों की संख्या घट रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 30 सालों के दौरान ठंड के दिनों में लगभग 2 से 6 फीसदी की कमी दर्ज की गई है.

संसद में पेश रिपोर्ट के मुताबिक हिमालय क्षेत्र के अधिकांश ग्लेसियर पिघल रहे है और अपने स्थान से पीछे हट रहे है जिससे हिमालय से निकलने वाली नदियों और देश की जल सुरक्षा पर असर पड़ सकता है, साथ ही प्राकृतिक आपदा की घटनाएं भी बढ सकती है. ग्लेसियर झीलों के फटने की घटनाएं, बर्फीले तूफान का खतरा, भस्खलन की घटनाएं और आधारभूत संरचनाओं को नुकसान और जान-माल की हानि हो सकती है.

तटीय शहरों के जलमग्न होने का खतरा है

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लेशियरों के पिघलने से पहाड़ों पर और तलहटी में रहने वाले लोगों की आजीविका भी खतरे में पड़ जाएगी. ऐसे बदलावों से हिमालय की जैव-विविधता संरक्षण और इकोसिस्टम पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा. 9 ग्लेसियरों के पिघलने के अध्ययन और 76 ग्लेसियरों की निगरानी के बाद पाया है कि ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जल स्तर भी बढ रहा है जिससे कई तटीय शहरों के जलमग्न होने का खतरा है.

दरअसल भारत के हिमालय क्षेत्र में 9575 छोट-बड़े ग्लेसियर हैं. और 1960 से साल 2000 के 40 सालों के दौरान 13 फीसदी ग्लेसियर का क्षेत्र कम हुआ है.ग्लेसियर के पिघलने की वजहों में जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, मलबा और ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन है.

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