इंदौर – सबको बसाते-बसाते… एक दौर बन गया इंदौर
सबको बसाते-बसाते… एक दौर बन गया इंदौर
इंदौर की सीमाएं हर मुसाफिर के लिए आबाद रही और एक बार जो यहां आ गया, उसने कभी इसकी सीमा को लांघा नहीं।
इंदौर। किसी भी पुराने नगर के इतिहास को संजोकर रखने में बहुत अनुभव और वरिष्ठता की जरूरत होती है, लेकिन बहुत कम ऐसे नगर होते हैं जिनके इतिहास को तारीखों से नहीं, भावनाओं से बयां किया जाता है। ऐसा नहीं कि इंदौर के पास खुद की संस्कृति, परंपरा या अपनी विशुद्धता नहीं थी, इंदौर के पास वह सब है जो किसी प्राचीन स्थान के पास होता है। कंपेल में देखा हुआ राव राजा राव नंदलाल मंडलोई का औद्योगिक नगर बनाने का सपना जिस जगह आकर साकार होता है वह इंदौर है।
होलकर वंश का आगमन, राजा मल्हारराव का शौर्य, लोकमाता अहिल्याबाई की दिव्यता, स्वतंत्रता संग्राम, मिलों की रौनक ऐसा और भी बहुत कुछ शहर के इतिहास में है पर फिर भी हर दौर में इंदौर ने अपने आप को बांधा नहीं। इंदौर की सीमाएं हर मुसाफिर के लिए आबाद रही और एक बार जो यहां आ गया, उसने कभी इसकी सीमा को लांघा नहीं। यही इंदौर की तासीर है। राजस्थान से आए वैश्य व्यापारी, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब सहित देशभर से उम्मीद के साथ आए व्यक्तियों ने अपना संसार यहीं बसा लिया और यहीं के बन कर रह गए। लेकिन फिर भी अपसंस्कृति की विकृति इंदौर पर हावी नहीं हो सकी। इन सबको देखकर लगता है कि इंदौर एक विचार शून्य भौगोलिक भू-भाग नहीं है, बल्कि यह भावनाओं और सूझबूझ का समंदर है।
स्वाद से लेकर संवाद तक, पहनावे से लेकर पहचान तक, उपासना से उत्सवों तक ऐसा समन्वय जिसने एक नई जीवनशैली इंदौरियत को गड़ा। इन सबके पीछे अगर कोई मूल कारण है तो वह है यहां का पर्यावरण और यह बात सही भी है… प्रकृति ही संस्कृति का निर्माण करती है। वैसे ही मालवा की मासूम तासीर की तरह उपजाऊ मिट्टी, समशीतोष्ण जलवायु, मीठा पानी सभी के लिए अनुकूल रहा.. और इसी ने इंदौर को जिंदादिल बनाए रखा। अब शहर का अगला दौर शुरू होने को है। शहर को मेट्रोपोलिटन बनाए जाने के प्रयास हो रहे हैं।
बेशक विकास से ही सभ्यताओं का विस्तार होता है और इंदौर को भी आगे बढ़ना है लेकिन विकास के पथ पर चलते हुए हमें इंदौर की उसी जिंदादिल तासीर, उल्लासपूर्ण जीवनशैली और खुशनुमा संस्कृति को बचाए रखना होगा। इस अनोखे शहर के प्राकृतिक और सामाजिक पर्यावरण के संरक्षण और संवर्धन के प्रति हमें सचेत रहना होगा।