पुलिस और न्यायपालिका का हाल ?

पुलिस और न्यायपालिका का हाल, देश में बंगाल सबसे पीछे
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट में खुलासा; टॉप-5 राज्यों में एक में भी ‌BJP की सरकार नहीं

देश में पुलिसिंग के मामले में तेलंगाना पहले नंबर पर और पश्चिम बंगाल आखिरी पायदान पर है। ज्युडिशियरी के मामले में केरल टॉप पर और पश्चिम बंगाल आखिरी नंबर पर है। बजट, वैकेंसी, इंफ्रास्ट्रक्चर, SC,ST,OBC और महिलाओं की नियुक्ति जैसे 32 पैमानों पर पुलिस और 25 पैमानों पर ज्युडिशियरी को आंका गया है।

मंगलवार, 15 अप्रैल को सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट ने ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025’ जारी की। इस रिपोर्ट में देश में पुलिस, जेल, ज्युडिशियरी और कानूनी मदद का हाल बताया गया है। इन सब के ओवर ऑल मामले में टॉप-5 राज्यों में एक भी बीजेपी शासित राज्य नहीं है। 18 बड़े राज्यों में यूपी 17वें नंबर पर है।

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के हवाले से जानिए देश में पुलिस और ज्यूडिशियरी का हाल…

MP और इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज पर 15 हजार केस का बोझ

  • देश भर में 21,285 जज हैं, लेकिन अब भी हाई कोर्ट में 33% और निचली अदलतों में 21% पद खाली हैं।
  • 2024 के आखिर में पेंडिंग केसों की गिनती 5 करोड़ तक पहुंच गई। 17 बड़े राज्यों की लोअर कोर्ट्स में 25% से ज्यादा ऐसे मामले हैं, जो 3 साल से पेंडिंग हैं।
  • ज्युडिशियरी में महिलाओं की भागीदारी के मामले में लोअर कोर्ट्स में 38% जज और हाईकोर्ट्स में 14% जज महिलाएं हैं।
  • देश के 28 में से 6 प्रदेशों की अदालतों ने अपने SC/ST कोटा का कम से कम 80% तक भरा है।
  • कर्नाटक को छोड़कर किसी भी राज्य में SC/ST कोटा पूरा भरा हुआ नहीं है।
  • मार्च 2025 के जनसंख्या अनुमानों के मुताबिक देश की हर 10 लाख की आबादी पर 15 जज मौजूद हैं, जबकि खाली पदों पर तैनाती हो जाए तो 19 जज हो जाएंगे।
  • विधि आयोग ने 1987 में सिफारिश की थी कि हर 10 लाख की आबादी पर 50 जज होने चाहिए।
  • सिर्फ 4 प्रदेशों की लोअर कोर्ट और हाई कोर्ट में केस क्लियरेंस रेट यानी मामला निपटारे की दर 100% से ज्यादा रही।
  • 2024 के आखिर तक सिक्किम, त्रिपुरा और मेघालय को छोड़ ज्यादातर हाईकोर्ट्स में हर जज पर औसतन 1,000 से ज्यादा केसों को वर्कलोड था। मध्यप्रदेश और इलाहाबाद हाईकोर्ट के हर जज पर 15 हजार केसों को कार्यभार था।
  • जिला स्तर पर हर जज पर औसतन 500 से ज्यादा मामले लंबित थे, जिनमें कर्नाटक में प्रति जज पर लगभग 1750, केरल में 3800 और UP में 4300 मामलों का कार्यभार था।

पुलिसिंग में 90% महिलाएं कॉन्स्टेबल, बिहार में एक पुलिसकर्मी के जिम्मे 1522 लोग

  • भारत में करीब 20 लाख पुलिसकर्मी हैं। इनमें महिला पुलिस की संख्या 2.42 लाख है।
  • एक हजार से भी कम महिलाएं सीनियर पोजिशन यानी SP और DG जैसे पदों पर हैं। 80% महिलाएं कॉन्स्टेबल हैं।
  • देश में 2.42 लाख महिला पुलिसकर्मियों में से सिर्फ 960 IPS हैं, जबकि देशभर में कुल IPS ऑफिसर्स की संख्या 5047 है।
  • जनवरी 2017 से जनवरी 2023 के बीच देशभर में पुलिस अधिकारियों के 64 हजार नए पद मंजूर हुए, लेकिन भर्तियां सिर्फ 44 हजार पदों पर हुईं।
  • इस दौरान अधिकारियों के 28% से 32% पद खाली रहे। यानी हर चार में से एक अधिकारी का पद खाली रहा।
  • देश में एक पुलिस पर 831 लोगों की सेवा का भार है। बिहार में एक पुलिस के जिम्मे 1522 लोग, ओडिशा में 1298 लोग और पश्चिम बंगाल में एक पुलिस पर 1277 लोगों का भार है।
  • 18 बड़े राज्यों में पंजाब की स्थिति सबसे बेहतर है, जहां एक पुलिस के जिम्मे 504 लोग हैं।
  • पुलिसिंग में SC समुदाय की भागेदारी 17% और ST समुदाय की भागेदारी 12% है।

………………………………………………………………….

देश की न्याय व्यवस्था में क्यों सबसे पिछड़ा पश्चिम बंगाल, टॉप पर कौन सा राज्य, डिटेल में समझ लीजिए

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 के अनुसार, कर्नाटक कानून व्यवस्था में सबसे आगे है, जबकि पश्चिम बंगाल सबसे पीछे है। रिपोर्ट में पुलिस, न्यायपालिका, कानूनी सहायता और कैदियों के इंतजाम जैसे पहलुओं पर राज्यों का आकलन किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि पुलिस में 33% महिलाओं की संख्या तक पहुंचने में 200 साल लगेंगे।
  • कर्नाटक ने कानून व्यवस्था में पाया पहला स्थान, बंगाल सबसे पीछे
  • देशभर में न्यायपालिका और पुलिस विभाग में स्टाफ की भारी कमी
  • जेलों में कैदियों की संख्या क्षमता से चार गुना अधिक, सुधार जरूरी
India justice report 2025
पुलिस, ज्यूडिशियरी, कानूनी मदद मुहैया कराने, कैदियों के लिए बेहतर इंतजाम के मोर्चे पर सुधार करने के मामले में बिहार और छत्तीसगढ़ सबसे ऊपर हैं।
नई दिल्लीः देश में कानून व्यवस्था के मामले में कर्नाटक नंबर वन है जबकि पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है जो पुलिस, ज्यूडिशियरी, जरूरतमंदों को कानूनी मदद मुहैया कराने, कैदियों के लिए बेहतर इंतजाम के मोर्चे पर सबसे पिछले पायदान पर खड़ा है। यह बात इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 में कही गई है। रिपोर्ट के मुताबिक कुछ दक्षिणी राज्य विकास की दौड़ में आगे हैं, लेकिन वहीं उत्तरी राज्य थोड़े पीछे नजर आ रहे हैं।
बड़े राज्यों में कर्नाटक, छोटे में सिक्कम सबसे अच्छा
कुछ राज्य किसी एक क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन ऐसे बहुत कम हैं जो सभी क्षेत्रों में बेहतर कर रहे हैं। बड़े राज्यों में कर्नाटक सबसे आगे है। छोटे राज्यों में सिक्किम सबसे अच्छा कर रहा है। बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अभी भी कुछ समस्याएं हैं। लोगों को न्याय मिलने में राज्यों की नीतियां, डायवर्सिटी और संसाधनों का असर दिखता है। इसका मतलब है कि जिन राज्यों में सुधार, विविधता और संसाधनों पर ध्यान दिया जाता है, वहां न्याय मिलने की संभावना ज्यादा होती है।

India Justice System

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की एनालिसिस क्या कहती है
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 में यह जानने की कोशिश की गई है कि भारत का जस्टिस सिस्टम कितना बेहतर है। यह रिपोर्ट राज्यों की पुलिस, अदालत, जेल और कानूनी मदद जैसे चार मुख्य विषयों पर फोकस है। सरकारी आंकड़ों के आकलन के आधार पर रिपोर्ट यह बताती है कि क्या कानून सबके लिए बराबर न्याय दे पा रहा है या नहीं। कुछ राज्य अच्छा काम कर रहे हैं और दिखा रहे हैं कि सुधार कैसे किया जा सकता है।

रिपोर्ट में सरकार के डेटा से लिए गए 100 से अधिक मापदंडों का इस्तेमाल किया गया है। इससे पता चलता है कि कानून के जरिये सभी को समान न्याय मिलने का वादा अभी भी पूरी तरह से सच नहीं हुआ है। रिपोर्ट में कुछ अच्छी बातें भी सामने आई हैं। कुछ राज्य लगातार निवेश और सुधार करके बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। ये राज्य दूसरों के लिए एक उदाहरण हैं। वे दिखाते हैं कि अगर प्रयास किए जाएं तो न्याय व्यवस्था को सुधारा जा सकता है। यह रिपोर्ट बताती है कि अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। न्याय व्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास करते रहना होगा ताकि हर व्यक्ति को समान न्याय मिल सके।

किन राज्यों ने सबसे ज़्यादा सुधार किए?

पुलिस, ज्यूडिशियरी, लोगों को कानूनी मदद मुहैया कराने, कैदियों के लिए बेहतर इंतजाम के मोर्चे पर सुधार करने के मामले में बिहार और छत्तीसगढ़ सबसे ऊपर हैं। 2022 से अब तक 40 से ज़्यादा मामलों में सुधार हुआ है। केरल, ओडिशा और कर्नाटक जैसे बेहतर राज्यों ने भी लगातार सुधार किया है। इससे पता चलता है कि न्याय में सुधार हो सकता है। अगर स्टाफ, इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपरेंसी पर फोकस किया जाए तो सुधार मुमकिन है। 2022 और 2025 की रिपोर्ट में 40 बातें एक जैसी थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘जस्टिस सिस्टम में सुधार संभव है।’ इसके लिए स्टाफिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रांसपरेंसी पर ध्यान देना होगा।
जस्टिस सिस्टम को दुरुस्त करने की जरूरत
न्यायपालिका हमारे देश के जस्टिस सिस्टम का एक जरूरी हिस्सा है। लेकिन जस्टिस सिस्टम ज़्यादातर लोगों को सिर्फ कोर्ट के चक्करों की याद दिलाता है। यह रिपोर्ट बताती है कि हर स्तर पर जजों की कमी है। यहां तक कि केरल जैसे राज्य में, जो न्याय देने में अच्छा माना जाता है, वहां भी हाई कोर्ट में 10 में से 1 जज कम हैं। कर्नाटक में तो हालत और भी खराब है। वहां हर 5 में से 1 जज का पद खाली है। वहीं, उत्तर प्रदेश में आधे जजों की कमी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायपालिका के हर स्तर पर खाली पद भरे जाने जरूरी हैं। ये स्थिति न्याय मिलने में देरी का कारण बन सकती है।

India justice report 2025

51% मामले 5 वर्ष से अधिक समय से लंबित
कानूनी सहायता करने वाले वॉलंटियर्स की संख्या में भी कमी आई है। 2019 से 2025 के बीच इसमें 38% की गिरावट आई है। ये आंकड़े दिखाते हैं कि न्याय मिलने में लोगों को कितनी परेशानी हो रही है। भारत के 25 उच्च न्यायालयों में 51% मामले 5 वर्ष से अधिक समय से लंबित हैं।

जेलों में क्षमता से चार गुना ज़्यादा कैदी
दिल्ली में जेलों की हालत खराब है। तिहाड़ जेल परिसर में दो जेलों में क्षमता से चार गुना ज़्यादा कैदी हैं। इसका मतलब है, जेल में जितनी जगह है, उससे कहीं ज़्यादा लोग ठूंस-ठूंस कर भरे हुए हैं। UP में भी जेलों में बहुत भीड़ है। देशभर की जेलों में ज़्यादातर कैदी विचाराधीन हैं। विचाराधीन मतलब, जिनका अभी तक कोर्ट में केस चल रहा है, फैसला नहीं हुआ है। हर चार कैदियों में से तीन से ज़्यादा यानी 76% कैदी विचाराधीन हैं। 2012 से ऐसे कैदियों की संख्या बढ़ती जा रही है।

India justice report 2025

पुलिस अफसरों के स्वीकृत पदों में से करीब 28% खाली
देश भर में कर्मचारियों की कमी है, हर जगह। पुलिस विभाग में भी यही हाल है। देश में पुलिस अधिकारियों के स्वीकृत पदों में से लगभग 28% खाली हैं। इसका मतलब है कि हर चार में से एक पुलिस अधिकारी की कमी है। ऐसे में मामलों को जल्दी निपटाना मुश्किल है। कांस्टेबल के पदों में भी 20% से ज्यादा की कमी है। सिर्फ पुलिस ही नहीं, फॉरेंसिक विभाग में भी लगभग 50% पद खाली हैं। फॉरेंसिक विभाग का काम सबूत जुटाना और उनकी जांच करना होता है। इतने पद खाली होने से काम पर असर पड़ रहा है।

पुलिस में 33% महिलाओं की संख्या तक पहुंचने में 200 साल लगेंगे
रिपोर्ट में बताया गया है कि कुछ राज्यों को पुलिस में महिलाओं की संख्या 33% तक पहुंचाने में 200 साल लग सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस बल में महिलाओं की 33% हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पुलिस बल में महिलाओं की संख्या बढ़ाई है। लेकिन झारखंड और त्रिपुरा जैसे राज्यों को इस लक्ष्य तक पहुंचने में बहुत समय लग सकता है। रिपोर्ट कहती है, ‘झारखंड और त्रिपुरा को पुलिस में 33% महिलाओं की संख्या तक पहुंचने में लगभग 200 साल लग सकते है।’ किस राज्य में 33 फीसदी महिलाओं की संख्या पहुंचने में कितना समय लगेगा, यह जानने के लिए नीचे लगे इस टेबल से गुजर जाइए।
राज्य/केंद्र शासित प्रदेश वर्ष
त्रिपुरा 222.2
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह 220.8
झारखंड 175.1
मिजोरम 132.1
असम 119.6
कर्नाटक 115.7
दादर नगर हवेली/ दमन एवं दीव 94.2
सिक्किम 85.7
राजस्थान 92
मेघालय 85.7
पश्चिम बंगाल 80.2
मध्य प्रदेश 80
ओडिशा 73.9
छत्तीसगढ़ 60.2
हरियाणा 56
लक्षद्वीप 49.4
उत्तर प्रदेश 44.9
नागालैंड 38.9
गोवा 38.5
पुडुचेरी 38.3
पंजाब 37.1
हिमाचल प्रदेश 34.3
अरुणाचल प्रदेश 33.8
उत्तराखंड 31.4
केरल 29.3
तेलंगाना 22.4
तमिलनाडु 20.4
दिल्ली 17.2
मणिपुर 16.8
गुजरात 13.1
महाराष्ट्र 12
चंडीगढ़ 7.1
बिहार 3.3
आंध्र प्रदेश 3.3

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *