क्या ओटीटी का असर आपके व्यवहार पर भी पड़ने लगा है?

इस आलेख की शुरुआत एक प्रश्न से करना चाहूंगा। ओवर द टॉप माध्यमों (ओटीटी) पर कोई वेब सीरीज़ आिद देखकर आप उससे प्रभावित हुए बिना रह पाते हैं? वेब सीरीज़ की कहानी, अपमानजनक भाषा, यौनिक और हिंसक दृश्यों का कुछ न कुछ असर हमारे ऊपर जरूर पड़ता है। और इसके कारण होने वाले मनोवैज्ञानिक बदलाव जीवन के बाकी पहलुओं को भी प्र‌भावित करते हैं।

एक सर्वे अध्ययन में देश के 62.40 फीसदी लोगों ने माना कि वेब सीरीज ने उनकी भाषा और व्यवहार को तेजी से बदला है। इससे उनमें गुस्सा, आक्रामकता, चिंता और अवसाद तेजी से बढ़ रहा है। अगर यकीन न हो तो अपने आसपास ‘जेनरेशन जेड’ की स्लैंग वाली भाषा पर गौर करिए।

डॉ. भरत धीमान के वेब सीरीज और स्ट्रीमिंग सामग्री पर अध्ययन में यह परिणाम सामने आए थे। ऐसे कई और शोध हैं, जो बताते हैं कि वेब सीरिज और इंटरनेट कंटेंट लोगों की मेंटल हेल्थ पर असर डाल रहा है। इसका असर रोजमर्रा के कामकाज पर भी पड़ रहा है। अब मूल प्रश्न पर लौटते हैं कि इस मनोरंजन सामग्री का उपभोग कर रही पीढ़ी का भविष्य कैसा होगा?

हाल ही में अभिनेता सलमान खान ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर परोसी जा रही ही अश्लीलता, हिंसा आदि को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्हीं के शब्दों में, ‘मुझे लगता है कि ओटीटी पर सेंसरशिप बेहद जरूरी है। ये गाली-गलौज, अश्लीलता और इंटीमेट सीन्स पर पाबंदी लगनी चाहिए।

15 से लेकर 16 तक के बच्चे भी कहीं न कहीं इसे देखते हैं। अगर आपकी बेटी हो और वो ये सब देखे तो आपको कैसा लगेगा।’ भारत जैसे देश में, जहां नैतिकता का प्रश्न कई बार आदर्शवादी हो जाता है और सही-गलत का निर्णय बस जनता की बौद्धिकता पर छोड़ दिया जाता है, वहां चिंताएं होना लाजिमी है।

जैसे ग्रेगोरियन कैलेंडर में समय ईस्वी (एडी) और ईसा पूर्व (बीसी) में बंटा हुआ था। वैसे ही आने वाली पीढ़ी कई वजहों से इस दौर को कोविड पूर्व और कोविड पश्चात के रूप में याद रखेगी। स्वास्थ्यगत कारणों के अलावा लोगों की मेंटल हेल्थ पर इस काल में जितना विपरीत प्रभाव पड़ा, उतना पहले के दौर में कभी नहीं हुआ। और इसमें मनोरंजन उद्योग ने भी कुछ न कुछ असर डाला है।

कोविड काल में लोग मनोरंजन के लिए इंटरनेट पर निर्भर हो गए। ऐसे में ओटीटी प्लेटफॉर्म ने हमारी सोच-समझ को ही गिरफ्त में ले लिया। कल्पना कीजिए, हर हाथ में मोबाइल और उस हिसाब से ओटीटी का सब्स्क्रिप्शन है या वह रील्स/ शॉर्ट वीडियोज़ देख रहे हैं।

एक ऐसे देश में जहां 88 प्रतिशत छात्रों को कॉलेज में दाखिला लेने तक भी सेक्स एजुकेशन नहीं दी जाती, वहां अब किशोर-किशोरियों के हाथों में मोबाइल देकर हमने उन्हें अंधे कुएं में ढकेल दिया है। कम उम्र के बच्चे उन तमाम चीजों को खुलेआम देख रहे हैं, जिनसे उनका भविष्य तबाह हो सकता है। अब वक्त आ गया है कि हम इन मुद्दों पर बात करके हल निकालें।

एक सर्वे अध्ययन में देश के 62.40% लोगों ने माना कि वेब सीरीज ने उनकी भाषा और व्यवहार को तेजी से बदला है। इससे उनमें गुस्सा, आक्रामकता, चिंता और अवसाद बढ़ा है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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