18 अरब का धंधा अतीक अहमद ने जेल से ही फैला लिया था!
अतीक अहमद की हर बेनामी प्रॉपर्टीज के भीतर अब यूपी और तमाम बाकी राज्यों की हुकूमतों को अपने पुलिस/एसटीएफ कार्यालय खोल देने चाहिए. ताकि आइंदा बाकी माफिया ऐसा करते हुए कांपें.
खबरों की मानें तो ऐसे मास्टरमाइंड अतीक अहमद ने साबरमती जेल की सलाखों में बंद रहते हुए भी, बाहरी दुनिया में करीब 18 सौ करोड़ से ज्यादा के काले-कारोबार का साम्राज्य खड़ा कर डाला था. जिसमें होटल बिजनेस की खबरें भी अब छनकर बाहर आ रही हैं. इन खबरों को लेकर भले ही खुलकर कोई न बोले, मगर जांच में जुटी एसआईटी इन बिंदुओं पर भी पैनी नजर से आगे बढ़ रही है.
1800 करोड़ से ज्यादा का काला कारोबार
यह 1800 करोड़ से ज्यादा का काला कारोबार अतीक ने गुजरात, महाराष्ट्र (मुंबई), मध्य प्रदेश राजस्थान, यूपी, पंजाब, दिल्ली, गुरुग्राम सहित देश के 6-7 प्रमुख राज्यों में खड़ा किया. अब अतीक अहमद डबल मर्डर की जांच में जुटी टीमें इन बिंदुओं की पड़ताल के लिए, संबंधित राज्यों की एजेंसियों से भी मदद मांग रही है. और इन राज्यों की एजेंसियों ने यूपी पुलिस की मदद की हामी भी भर दी है. इन तथ्यों की पुष्टि के लिए आर्थिक अपराध निरोधक शाखाओं के एक्सपर्ट्स की टीमें भी, पुलिस के साथ जुटी हुई हैं. ताकि अलग अलग टीमों द्वारा की जा रही जांच अंतत: एक जगह पर पहुंच कर किसी मुकाम तक पहुंचाने में आसानी रहे.
इन तमाम अंदर की बातों के बाहर आने पर जांच में जुटी टीमों ने अब साबरमती जेल की ओर भी नजरें उठाकर देखना शुरु कर दिया है. जांच में जुटी एसआईटी दरअसल उन रास्तों को ताड़ना चाहती है जिन पर चलकर, साबरमती जेल में बंद रहने के बावजूद अतीक अहमद ने अपना 18 अरब से ज्यादा का एम्पायर खड़ा कर डाला. और किसी को भनक तक नहीं लगी. जांच में जुटी टीमें अब इन बिंदुओं की पड़ताल का छोर पकड़ कर उन माफियाओं-सहयोगियों तक पहुंचने को व्याकुल हैं, जिन्होंने साबरमती जेल में बंद माफिया डॉन अतीक का बहार, इतना बड़ा एम्पायर खड़ा करने में परदे के पीछे रहकर मदद की. ताकि आने वाले वक्त में उनके ऊपर भी शिकंजा कसा जा सके.
यहां जिक्र करना जरूरी है कि प्रयागराज में 24 फरवरी 2023 को अंजाम दिए गए उमेश पाल ट्रिपल मर्डर की जांच करते हुए जब, यूपी पुलिस की टीमों (एसटीएफ)अहदमदाबाद (साबरमती जेल) तक पहुंची तो, उन्हें साबरमती जेल में बंद रह चुके जीतू और केतन बंधुओं के साथ अतीक के मजबत गठजोड़ की भनक लगी थी. एसटीएफ ने जांच की तो पता चला कि, खबरों में दम है. और अतीक ने इन्हीं दोनो सगे भाइयों के कंधों पर सवारी करके, जमीनों को काले कारोबार में साझेदारी की थी. ताकि अतीक का नाम कहीं कागज पर आए बिना, उसका काला-गोरा धंधा उसके साबरमती जेल के भीतर बंद रहते हुए भी फलता-फूलता रह सके.
भू-माफियागिरी की टॉप लिस्ट में शुमार
यह दोनो संदिग्ध भाई यानी जीतू और केतन पहले से ही गुजरात राज्य में भू-माफियागिरी की टॉप लिस्ट में शुमार हैं. जमीनों को जबरदस्ती कब्जाने के काले कारोबार में माहिर, साबरमती जेल में बंद माफिया अतीक अहमद की पारखी नजरों ने जैसे ही, जीतू और केतन बंधुओं की यह खूबी पकड़ी, उसने इनके ऊपर रौब गालिब करना शुरु कर दिया. इन दोनो भाईयों को भी लगा कि उन्हें भी जमीनों के काले कारोबार में भला. यूपी दिल्ली मुंबई, मध्य प्रदेश राजस्थान राज्यों में अतीक अहमद सा मजबूत और दूसरा बदमाश-माफिया कहां मिलेगा?
जेल में जीतू और केतन से मुलाकात के बाद अतीक उनसे ऐसे जुड़ा कि, उनके बलबूते ही उसने कहते हैं कि जेल के भीतर से ही बाहर, 18 सौ करोड़ से ज्यादा का जमीनों का और होटल कारोबार खड़ा कर डाला. चूंकि अतीक कहीं सामने नहीं था. सो किसी को भनक तक नहीं लगी.
अब जांच में जुटी टीमों को पता चला है कि अतीक जीतू केतन के अलावा, अहमदाबाद के किसी नजीर बोरा और उसके बेटे अली रजा से भी हाथ मिलाए बैठा था. मगर यह बात उसने जीतू और केतन से छिपाई थी. नजीर बोरा के बारे में कहा जाता है कि वो, लंबे समय तक इसी साबरमती जेल में बंद रह चुका था. जो साबरमती जेल अतीक अहमद की जिंदगी की आखिरी जेल साबित हुई. जहां से अतीक ने 18 करोड़ का अंपायर बाहर खड़ा कर डाला. और किसी को कानो-कान भनक तक नहीं लगी.
जांच में जुटी यूपी पुलिस की टीमों के ही उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो, अतीक ने राजस्थान के माउंट आबू में भी करोड़ों रुपए की ब्लैक मनी खपा रखी थी. यह ब्लैक मनी उसने होटल और जमीनों में लगाई थी. मगर अपने नाम से नहीं. मतलब. यह तमाम संपत्तियां ‘बेनामी संपत्ति’ की कैटेगरी मे हैं. जिनकी कीमत सैकड़ों करोड़ में जाकर बैठ सकती है. माउंट आबू में एक होटल मालिक के साथ अतीक की उसमें पार्टनरशिप की बात जैसे ही सामने आई.
पुलिस टीमों ने उस होटल मालिक को भी घेरना शुरु कर दिया. ताकि अतीक की काली कमाई के और तमाम जरियों का पूरी चेन मिल सके. खबरों की माने तो अतीक ने अजमेर के एक होटल में भी साझेदारी की थी. कहा जाता है कि जैसे ही अतीक के ऊपर यूपी की हुकूमत ने सवारी गांठनी शुरु की. वैसे ही उसकी काली कमाई काले कारोबारों में खपाए बैठे मास्टरमाइंड व्यापारियों ने भी उससे कन्नी काटनी शुरु कर दी.
अतीक और अशरफ की फोनकॉल तक पिक करनी बंद कर दी थी
यह बात अतीक को खटकने तो लगी थी. मगर वो इसका अंदाजा नहीं लगा पाया था कि, उमेश पाल कांड में उसके कुल-खानदान का दीया बुझा डाला जाएगा सो तो बुझा ही डाला जाएगा. खुद अतीक और अशरफ को भी नई उम्र के नौसिखिए से दिखाई पड़ने वाले शूटर लड़के ठोक कर हमेशा के लिए उसका काम कर डालेंगे. उमेश पाल हत्याकांड में जैसे ही अतीक और अशरफ का नाम उछला. वैसे ही कहते हैं कि, अतीक ने जिन मोटी आसामियों पर अपनी ब्लैक मनी लगा रखी थी, उन्होंने अतीक और अशरफ की फोनकॉल तक पिक करनी बंद कर दीं.
तब अतीक ने यही समझा कि उमेशपाल कांड में नाम उछलने से शायद, पार्टनर्स डर गए होंगे इसलिए अतीक की कॉल पिक नहीं कर रहे हैं. जबकि सच्चाई यह थी कि, अतीक की काली कमाई से अपने और अतीक के बारे-न्यारे करने में जुटे, अतीक से भी तेज दिमाग उसे पार्टनर समझ गए कि, अब अतीक को यूपी पुलिस ही तबाह कर देगी. ऐसे में अतीक साझीदारी वाली सम्पत्तियों का हिसाब मांगने आएगा या पहले अपनी जान बचाएगा?
इस बारे में टीवी9 ने बात की 1974 बैच के पूर्व दबंग आईपीएस और उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह से. उन्होंने कहा, “क्या अतीक और क्या श्रीप्रकाश शुक्ला या फिर दाऊद इब्राहिम. यह सब अपने नाम पर कुछ नहीं रखते, करते-धरते हैं. इनकी हजारों करोड़ की बेनामी संपत्तियां ऐसे ही औरों के नाम पर खड़ी की जाती हैं, जैसी अब अतीक के बारे में पता चल रहा है.
मेरी राय में तो इनकी जो भी काली कमाई से तैयार बेनामी संपत्तियां पहचान ली जाएं, उनमें यूपी गवर्नमेंट को चाहिए कि वो इन काली कमाई से खड़ी इमारतों पर कानूनन अपना कब्जा जमाकर, उनमें थाने चौकी एसटीएफ, एसएसपी आईजी डीआईजी के पुलिस दफ्तर खोल दे. मैंने श्रीप्रकाश शुक्ला को ठिकाने लगाने के बाद लखनऊ में उसके द्वारा कब्जाई गई, इमारत में तब एसटीएफ का ही दफ्तर खोल दिया था. जो शायद आज भी उसी में चल रहा होगा मुझे उम्मीद है.”