भारत मुदा-प्रधान देश । मुद्दे अमर हैं और रहेंगे

मुद्दे अमर हैं और रहेंगे

जैसा कि मै अक्सर कहता हूँ कि भारत मुदा-प्रधान देश है । इसका एक अर्थ ये भी है कि भारत में मुद्दों की कोई कमी नहीं है । मुद्दे अजर-अमर है। सत्ता के केंद्र में कोई भी राजनीतिक दल रहे किन्तु मुद्दों की कमी किसी को रहने वाली नहीं है। देश चलाने के लिए एक निर्वाचित सरकार की और सरकार चलाने के लिए बेसिर-पैर के मुद्दों की जरूरत होती है। सरकार ही नहीं अब तो विपक्ष को चलाने के लिए भी मुद्दों की आवश्यकता होती है। आज का मुद्दा ये है कि प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी स्वदेश में नहीं अमेरिका में हैं और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी स्वदेश वापस लौट आये हैं।

अब बताइये कि नेताओं का विदेश आना-जाना भी कोई मुद्दा है ? नेता हैं तो विदेश जायेंगे,और जब जायेंगे तो जाहिर है कि लौटके आएंगे । नेता कोई कारोबारियों की तरह भगोड़े थोड़े ही होते हैं कि जो विदेश गए तो वापस ही नहीं लौटे ! भारतीय नेता की जान भारत में बसती है ,जबकि कारोबारी की जान कालेधन और विदेश में बसती है। ये नेताओं का निजी मामला है। इसमें हमें या किसी को दखल नहीं देना चाहिए। लेकिन कोई मानता है क्या ? अब शिवसेना के नायक उद्धव ठाकरे प्रधानमंत्री जी को मणिपुर का मसला सुलझाए बिना अमेरिका जाने से परेशान है तो भाजपा के विद्वान प्रवक्ता राहुल गांधी के स्वदेश लौटने से परेशान हैं।

अब ठाकरे समेत पूरे देश को यकीन करना चाहिए कि मोदी जी हों या राहुल गांधी देश के लिए विदेश से कुछ न कुछ लेकर ही लौटेगा ?नेता कारोबारियों की तरह बैंकों से ऋण लेकर विदेश नहीं जाते । उनके विदेश आने जाने का खर्च या तो सरकार उठाती है या फिर संगठन। कभी-कभी लोग निजी खर्च पर भी विदेश जाते हैं किन्तु बातें हमेशा देश और देश के मुद्दों की करते हैं। राहुल ने ये काम अपने ढंग से किया और मोदी जी यही काम अपने ढंग से करेंगे। हमें दोनों की प्रतिभा पर पूरा यकीन है। लोगों को संदेह हो तो बना रहे।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी अमेरिका गए तो वहां मोदी-मोदी हो रहा है । अमेरिका में 45 लाख भारतीय हैं,मोदी के जाने से इन भारतीयों का कुछ न कुछ लाभ जरूर होगा,फिर भले वे भारत में रहने वाले भारतीय हों या अमेरिका में रहने वाले। मुश्किल ये है कि मोदी जी अमेरिका की अनेक यात्राओं के बाद भी उनका असर भारत में नजर नहीं आता। अमेरिका वालों को मैंने बीते एक दशक में कभी भी भारतीयों के अमेरिका में आने से ‘ईसाइयत के लिए संकट कहते नहीं सुना,जबकि हमारा सनातन हिन्दू धर्म हिन्दुस्तान में हमेशा ही हिन्दुस्तान में हिंदुत्व को खतरा बना रहता है। आखिर क्यों है ऐसा ?
भारत के अमेरिका से रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे है। कभी नरम,तो कभी गर्म। मोदी जी के अमेरिका में जाने का अंतर्राष्ट्रीय महत्व है। इसे नकारा नहीं जा सकता और नकारना भी नहीं चाहिये। राहुल गांधी के अमेरिका दौरे से भी कोई भारत -अमेरिका के रिश्ते बनते या बिगड़ता नहीं हैं ,बनते ही है। भाजपा को भी ये स्वीकार कर लेना चाहिए। राहुल गांधी कोई गैर भारतीय नहीं है। विपक्ष के नेता के रूप में उनका भी विदेशों में उतना ही सम्मान है जितना कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी का। दोनों की यात्राओं में सिर्फ एक ही फर्क है कि राहुल अमेरिका के साथ कोई अनुबंध या समझौता नहीं कर सकते किन्तु मोदी जी कर सकते हैं। राहुल चूंकि राष्ट्र प्रमुख नहीं हैं इसलिए स्टेट डिनर में नहीं जा सकते किन्तु मोदी जी जा सकते हैं। राहुल और मोदी की किस्मत में जरूर अन्तर है । जैसे मोदी जी के पूर्वजों को कभी स्टेट डिनर का सम्मान हासिल नहीं हुआ जबकि राहुल गाँधी के पुरखे एक बार नहीं बल्कि कई बार स्टेट डिनर का सम्मान हासिल कर चुके हैं।

अमेरिका के राष्ट्रपति से भारत के प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत पर दुनियाभर के लोगों की नजर टिकी है।खास तौर पर अमेरिका और भारत की करीबियों से चीन कहीं अधिक बेचैन है । उसकी नजर भारत और अमेरिका के बीच होने वाले समझौतों, हथियारों की खरीद से लेकर उनके निर्माण में अमेरिका के सहयोग पर टिकी है। अभी भारत में चीन से भारत में बड़े तौर पर व्यापारिक लेन देन है। भारत अमेरिका दौरे से यदि अमेरिका की तरह सबका साथ ,सबका विकास करने का मन्त्र सीख आये तो बहुत बड़ी बात हो। लेकिन सीखना और सिखाना दो अलग बातें हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को शायद ही समझा या सीखा पाएं। भले ही विश्व गुरु बनने का दावा हमारा हो लेकिन अनेक मामलों में अमेरिका बिना दावे के विश्व गुरु है। उससे सीखा जा सकता है।
मोदी जी जिस भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं वो भारत एक दिन में नहीं बना और न 2014 के बाद बना । भारत पहले से मौजूद था और भारत ने पहले भी अमेरिका को आँखें दिखाने का दुस्साहसिक काम किया है। आज का भारत एक अलग भारत है। आज के भारत में पहली बार हिंदुत्व खतरे में हैं और सारी सियासत इसी हिंदुत्व के इर्दगिर्द चल रही है। बहरहाल विषय से भटकने के बजाय हम उम्मीद करते हैं कि प्रधानमंत्री जी की अमेरिका यात्रा से इस बार भारत को कुछ न कुछ हासिल जरूर होगा और दोनों देशों के रिश्ते मजबूत होंगे। इन रिश्तों का लाभ भारत के 130 करोड़ लोगों के साथ अमेरिका में रहने वाले 45 लाख भारतीयों को भी मिलेगा। राहुल गांधी को भी और मुझे भी। शायद आपको भी।

हम भूल जाते हैं कि भारत के ऊपर पूरी दुनिया की नजर है । भारत के मणिपुर में यदि आग लगती हैए तो उसके बारे में भी दुनिया जिज्ञासु रहती है। दुर्भाग्य ये है कि हम मणिपुर की फ़िक्र भारत से बाहर जाते वक्त नहीं करता । यदि कोई अमेरिका में प्रधानमंत्री जी से मणिपुर के बारे में सवाल कर ले तो उसे क्या जबाब मिलेगा भगवान ही जाने ,क्योंकि हम भारत वालों को तो बीते 45 दिनों से कोई जबाब मिला नहीं है। बहरहाल एक बार फिर मोदी जी की अमेरिका यात्रा भारत के दूसरे प्रधानमंत्रियों की तरह यादगार यात्रा बने ऐसी कामना हम सब करते हैं। हमें देश के स्वाभिमान की फ़िक्रहै । फिर नेता मोदी हों या कोई दूसरा इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।

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