फिर केसे रखे रेलवे से सुविधाओं की उम्मीद …?
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अपने अमरीका दौरे में जब यह कहते हैं कि भारतीय रेलों में रोज ऑस्ट्रेलिया के बराबर आबादी सफर करती है तो देश के विशाल रेलवे नेटवर्क का आभास होता है। दूसरी ओर इसी रेलवे नेटवर्क में सफर करने वाले जब रेलवे को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं तो चिंता होना स्वाभाविक है। यह चिंता इसलिए भी क्योंकि रेलवे के वातानुकूलित कोचों से बड़ी संख्या में चादर, कंबल, तकिए, कटलरी और नलों की टोंटियों की चोरी की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। न केवल रेलवे, बल्कि होटल, रेस्टोरेंट तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भी सामान चुराने की दुष्प्रवृत्ति लोगों में क्यों घर करने लगी है इस सवाल पर मनन जरूरी है।
देखा जाए तो रेलवे की संपत्ति को नुकसान की घटनाएं यात्रियों के चरित्र पर बड़ा आक्षेप है। हाल ही रेलवे ने बीते एक साल में विभिन्न रेल मंडलों में यात्रियों द्वारा चोरी किए गए सामान की जानकारी सार्वजनिक की है। चोरी किए गए सामान की कीमत का आंकड़ा करोड़ों रुपए में है। हैरत की बात यह है कि सामान्य, एक्सप्रेस और सुपर फास्ट ट्रेनों में ही नहीं, सामान चुराने वालों ने राजधानी, दूरंतो, शताब्दी और अभी कुछ समय पूर्व ही शुरू हुई वंदे भारत जैसी स्पेशल ट्रेनों को भी नहीं छोड़ा है। इनमें उपलब्ध करवाई जाने वाली कटोरी, कटलरी, केतली के साथ ही बाथरूम में लगे ब्रांडेड नल, शॉवर गन पाइप और एलईडी लाइटें तक लोग खोल कर ले गए। महंगा टिकट लेकर रेलवे के वातानुकूलित कोच में सफर करने वाले भी ऐसा करने लग जाएं तो यह वाकई शर्मसार करने वाली बात है। सवाल यहां अमीर-गरीब का भी नहीं बल्कि उस प्रवृत्ति का है जिसमें व्यक्ति इस बात को भी भूलने लगता है कि वह इस देश का जिम्मेदार नागरिक है। यह जिम्मेदारी का भाव उसे देश की संपत्ति की रक्षा का दायित्व भी खुद-बखुद ही सौंप देता है। समझदारी, जिम्मेदारी व शिष्टाचार की अपेक्षा हर किसी से की जानी चाहिए। यह उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती कि कोई कोच से चोरी तक कर लेगा।
यह सही है कि सामान की रखवाली का जिम्मा रेलवे का है, पर इसे भी साफ समझा जा सकता है कि हजारों ट्रेनों में प्रतिदिन यात्रा करने वाले करोड़ों यात्रियों की हर पल निगरानी नहीं की जा सकती। लोगों में नैतिकता, राष्ट्रीय कर्तव्य व जवाबदेही के बीजों के अंकुरण के प्रयास करने होंगे। उन्हें अहसास कराना होगा कि रेलवे ही नहीं, बल्कि कहीं भी यदि वे चोरी की मानसिकता रखते हैं तो ऐसा कर वे खुद को भी धोखा दे रहे हैं। देखा जाए तो ऐसी हरकतों का खमियाजा सुविधाओं में कमी के रूप में यात्रियों को ही भुगतना पड़ता है।