नोएडा प्राधिकरण : जमीन ली…नौकरी देने का वादा किया…फिर सब निल बटे सन्नाटा ..?

नोएडा प्राधिकरण के लीज डीड में है पांच प्रतिशत किसान कोटे का रोजगार देने का नियम
पहले इससे भी ज्यादा प्रतिशत का था वादा, स्थानीय लोगों के अनुसार- कहीं नहीं मिलता रोजगार
नहीं बनाया किसी तरह का रोजगार देने का सिस्टम, अयोग्य बता कर खारिज कर देती हैं कंपनियां

नोएडा। नोएडा प्राधिकरण ने किसानों की जमीन लेते हुए उनके बच्चों को रोजगार दिलाने का वादा किया। लीज डीड की शर्तों में भी इसका जिक्र किया। स्थानीय लोगों को प्रत्येक कंपनियों में किसान कोटे पर पांच प्रतिशत नौकरी दिलाने की बात शामिल कराई, लेकिन वर्तमान समय में इसका ठीक उलट मामला है।

हालात ऐसे हैं कि किसानों के वारिसों को नौकरी नहीं मिलती। उन्हें अयोग्य करार देकर वापस भेज दिया जाता है। यही नहीं, कई योग्य उम्मीदवार आज भी भटक रहे हैं। कई तो ऐसे हैं जो कि थक हारकर कारोबार कर रहे हैं, जबकि कई युवाओं ने दिल्ली में नौकरी ढूंढी। कई उम्मीदवार तो बीटेक और एमबीए डिग्रीधारी हैं फिर भी उनको किसान कोटे पर नौकरी नहीं मिली। कई लोगों ने अपने मेहनत के बल पर नौकरी पाई, लेकिन उनको आज भी इस बात का गम है कि उनकी जमीन लेने के बाद प्राधिकरण ने सहयोग नहीं किया। नियम के बावजूद उनको नौकरी नहीं मिल पाई।

प्राधिकरण ने नहीं किया तैयार कोई भी ठोस प्रबंधन
जब लीज डीड में स्थानीय निवासियों को नौकरी देने का जिक्र होता है तो प्राधिकरण को इस बाबत एक ठोस प्रबंधक विकसित करना चाहिए था। कंपनियों पर निगरानी होनी चाहिए थी। कौन सी कंपनी ने कितने स्थानीय निवासियों को किसान कोटे पर नौकरी दी। इस बात का पूरा प्रमाण होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वर्तमान में प्राधिकरण के पास ऐसा कोई भी डाटा नहीं है, जिसमें यह बताया जा सके कि कितने लोगों को नौकरी मिली।

कंपनियां भी नहीं करती विज्ञापन में इसका जिक्र
स्थानीय निवासियों के अनुसार, नोएडा की कंपनियां विज्ञापन में स्थानीय निवासियों के कोटे का कोई जिक्र नहीं करती हैं। ऐसे में उनको पता नहीं चलता है कि कौन सी कंपनी में उनको नौकरी के लिए आवेदन करना है। कौन सी कंपनी किस पद पर लोगों को नियुक्त करना चाहती हैं। ऐसे में उनको हक नहीं मिल पाता।

विधानसभा में भी उठाया गया था मामला
तीनों प्राधिकरणों में इस मामले में कई बार बातचीत हुई। दादरी के विधायक तेजपाल नागर ने ग्रेटर नोएडा को लेकर विधानसभा में मामला उठाया। उनका कहना है कि ग्रेनो प्राधिकरण में यह नियम बना दिया गया कि 2020 के बाद होने वाले आवंटन के बाद फैक्ट्रियों के तैयार होने पर 40 प्रतिशत से ज्यादा नौकरी स्थानीय लोगों को मिलेगी।

साक्षात्कार में इसी आधार पर दिए जाते थे अंक
प्राधिकरण के औद्योगिक विभाग के बड़े प्लॉट के आवंटन के दौरान पहले साक्षात्कार लिया जाता था। इसमें जो जितने प्रतिशत अधिक लोगों को नौकरी देने का वादा करता था उसको उतने ही अधिक अंक मिलते थे जो कि आवंटन में सहायक सिद्ध हुए। हालांकि इसमें कितने लोगों को नौकरी मिली, इसका पता नहीं है।
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मजदूरी तक के लिए नहीं मिलती नौकरी
भारतीय किसान परिषद के अध्यक्ष सुखबीर खलीफा का कहना है कि अधिकांश फैक्ट्रियों में में जिन कामगार-मजदूरों को नौकरियां मिलती हैं। वह सब नोएडा से बाहर के हैं। बेहद कम स्थानीय लोगों को नौकरी मिलती है। कंपनियां स्थानीय लोगों पर भरोसा नहीं कर पाती हैं। कई बार प्रयास के बाद भी उनको नौकरी नहीं मिलती।

नोएडा का आंकड़ा
– औद्योगिक इकाइयां – 10500
-सक्रिय औद्योगिक इकाइयां – 8500
-हर साल जीबीसी में घोषित की जाती हैं
– 50 हजार से एक लाख रोजगार

केस-1 : नोएडा विलेज रेजीडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष व ग्राम रोहिल्लापुर निवासी रंजन तोमर ने 2012-13 से दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की। उन्होंने नोएडा प्राधिकरण में कानूनी सलाहकार बनने की कोशिश की। नोएडा में भी लीगल कंपनियों में ग्रामीण कोटे में नौकरी पाने का प्रयास किया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।

केस-2 : ग्राम नंगली वाजिदपुर निवासी अनुराग चौहान ने एमएससी कंप्यूटर साइंस से पढ़ाई पूरी करने के बाद नोएडा में दो वर्ष तक किसान कोटा में नौकरी का प्रयास किया। थक हारकर आज दिल्ली में नौकरी कर रहे हैं और रोज वहीं से आना-जाना होता है।

केस-3 : ग्राम शाहपुर से एमबीए ग्रेजुएट आनंद कुमार ने प्राधिकरण के किसान कोटा के तहत नौकरी पाने का प्रयास कई बार किया। लेकिन अब तक कोई सफलता नहीं मिली है, घर के दबाव के बाद अब अपनी पढ़ाई से कमतर नौकरी भी लेने को तैयार हैं।

केस-4 : ग्राम छलेरा निवासी पुनीत राणा ने बीटेक करने के बाद कई वर्ष नोएडा में नौकरी पाने का प्रयास किया। अपनी मेहनत से फिर एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिली, जिसमें अब भी कार्यरत हैं।
केस-5 : अट्टा के विकास अवाना ने 2012-13 में एमबीए करने के बाद नौकरी का प्रयास किया। नोएडा में कहीं भी नौकरी न लगने के कारण आज अपना व्यवसाय देख रहे हैं।

केस-6 : ग्राम छपरौली के निशांत चौहान ने बीबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद कई वर्ष नौकरी लगवाने का प्रयास किया। लेकिन कहीं भी सफलता हाथ नहीं लगी। मजबूरन उनको दुकान चलाने पर मजबूर होना पड़ा।

 

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