पुलिस व सहकारिता के सेवानिवृत्त अफसरों ने सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और खुफिया विभाग को भनक तक नहीं लगी। अंदरूनी आंदोलन वाले पूर्व अफसर अब खुलकर आ गए हैं। हाल में हुए एक बड़े प्रदर्शन में इन पूर्व अफसरों को देख खुफिया इंटेलिजेंस की आंखें फटी रह गईं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गणवेश के साथ आपत्तिजनक पोस्ट करने पर एमजी रोड पुलिस ने जयस नेता लोकेश मुजाल्दा पर केस दर्ज किया था। जयस नेता विरोध में खुलकर सामने आ गए। 11 जुलाई को जयस, भीम आर्मी, अजाक्स सहित अन्य आदिवासी संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने आयुक्त कार्यालय घेर लिया। आयुक्त मकरंद देऊस्कर को ज्ञापन सौंपने के बाद इंटेलिजेंस अफसर यह सुन चौंके कि भीड़ जुटाने वाले डीएसपी व निरीक्षक स्तर के पूर्व अफसर ही हैं।
एक्शन में लोकायुक्त परेशान हैं रिश्वतखोर
लोकायुक्त के अचानक एक्शन में आने से रिश्वतखोर-घोटालेबाजों में हड़कंप है। कुछेक जेल चले गए तो कुछेक जमानत में जुटे हैं। सौ से ज्यादा तो अफसरों का तोड़ ढूंढ रहे हैं। वर्षों से पत्राचार करने वाले लोकायुक्त अफसर दनादन चालान लगाने लगे हैं। बीते छह महीने में 35 से ज्यादा चालान कोर्ट पहुंच चुके हैं। चुनावी मौसम में इस कार्रवाई का श्रेय डीजीपी योगेश चौधरी को जाता है। मुख्यमंत्री के ओएसडी रहे चौधरी की गिनती ईमानदार अफसरों में होती है। लोकायुक्त पहुंचने के बाद उन्होंने सभी एसपी से कहा कि वर्षों से लंबित प्रकरणों का निकाल करें। अकेले इंदौर से ही 35 चालान तैयार हो गए। सीएम हाउस से जुड़े होने के कारण चौधरी आसानी से स्वीकृति ले लेते हैं। पहले अफसर हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।
माफिया के गठजोड़ की रिपोर्ट बना रहे अफसर
पुलिस महकमे की अंदरूनी लड़ाई सामने आने लगी है। छोटे अफसर बड़ों का कुछ बिगाड़ तो नहीं सकते, मगर उनके विरुद्ध लिखा-पढ़ी से नहीं चूकते। पूर्वी जोन में इस लड़ाई का खासा असर है। शुरुआत एक शराब माफिया के गठजोड़ से हुई, जब पब बंद करवाने पर एसआइ को थाना से हटाकर पुलिस लाइन हाजिर करवा दिया। आदेश जारी होते ही शराब माफिया ने फोन कर बधाई भी दी। एसआइ ने एक बड़े अफसर को जिम्मेदार बताया है। वह उसके खिलाफ रोजनामचा में रिपोर्ट लिख चुका था। दूसरा किस्सा तिलकनगर थाने का है। बताते हैं पिटाई कांड में शामिल एसआइ सुरेंद्र ने रोचनामचा रिपोर्ट में भी बड़े अफसरों के आदेश का उल्लेेख कर दिया। अफसर इतने मजबूर हुए कि डर के कारण न सुरेंद्र पर कार्रवाई की, न एफआइआर में नाम लिखा।
पक्ष भूलकर खुद की पैरवी में जुटे वकील

जिला न्यायालय में सरकार का पक्ष रखने वाले सरकारी वकीलों की टीम में बहुत जल्दी बदलाव होने वाला है। जीपी से लेकर एजीपी तक नई नियुक्तियां होनी हैं। इसे लेकर न्यायालय में हलचल तेज हो गई है। हर कोई सरकारी होने का सुख उठाने को आतुर है। वर्तमान शासकीय अधिवक्ता (जीपी) अधिक उम्र के चलते पहले ही दौड़ से बाहर हो गए हैं। खाली होने वाली उनकी सीट पर बैठने के लिए कई अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता इंदौर से लेकर भोपाल तक जमकर उठक-बैठक लगा रहे हैं। दूसरी ओर, इन एजीपी के विरोधी भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने इंदौर-भोपाल एक करने वाले इन अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ताओं की कुंडली तैयार कर ऊपर पहुंचा दी है। देखना यह है कि जीपी की कुर्सी पर बैठने का सपना देखने वाले इन एजीपी को नई टीम में जगह मिलती है या नहीं।