अब जवाबदेहों से जवाब मांगने का समय आ गया है!
यह शर्मिंदा कर देने वाला है कि मणिपुर पर जारी बहस को गलत उदाहरणों के जरिए निरस्त करने की कोशिशें की जा रही हैं। जैसे कि मणिपुर में जो हुआ और पिछले ढाई महीनों से वहां जो हो रहा है, उसे राजस्थान, छत्तीसगढ़ या पश्चिम बंगाल में हुई इक्का-दुक्का घटनाओं का हवाला देकर दरकिनार किया जा सकता है? यह परले दर्जे की टालमटोल है, जिसे अंग्रेजी में ‘वॉटअबाउटरी’ कहते हैं।
महिलाओं के साथ होने वाले किसी भी अपराध पर जीरो-टॉलरेंस की नीति होनी चाहिए। देश में दुष्कर्म की जो घटनाएं दूसरे राज्यों में हुई हैं, उन्हें कमतर नहीं ठहराते हुए यह कहना यहां जरूरी लगता है कि मणिपुर में वर्तमान में जो हालात हैं, उन्हें उसी चश्मे से नहीं देखा जा सकता, जिससे पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में हिंसा को देखा जाएगा। फिर भी मणिपुर की बात छिड़ने पर भाजपा प्रवक्तागण या दक्षिणपंथी ट्रोल्स तुरंत ही पश्चिम बंगाल या अन्य राज्यों का हीला-हवाला देने लगते हैं।
जबकि मणिपुर की नृशंस सच्चाई यह है कि राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र में प्रधानमंत्री तक ने राजा और प्रजा के बीच के सबसे पवित्र सामाजिक अनुबंध का उल्लंघन किया है और वह है, अपने तमाम नागरिकों की सुरक्षा का बंदोबस्त करना। मणिपुर 3 मई से जल रहा है।
इस राज्य में इस दर्जे की नस्ली हिंसा और साम्प्रदायिक टकराव एक लम्बे समय से नहीं देखे गए थे। इसमें अभी तक 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, पूरे के पूरे गांव तहस-नहस कर दिए गए हैं, घरों को लूटकर जला दिया गया है, मंदिरों और गिरजाघरों में भी तोड़फोड़ की गई है और हजारों लोग बेघर हो चुके हैं। और इस सबके बावजूद, ऐसा लगता है जैसे किसी को परवाह ही नहीं है।
जब दो कुकी महिलाओं के साथ सामूहिक दुराचार का वीडियो वायरल हुआ, तब जाकर प्रधानमंत्री ने अपना मौन तोड़ा। उन्होंने घटना की निंदा की और दोषियों को दंडित करने का वचन दिया, लेकिन वे कांग्रेस-शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ का भी नाहक ही उल्लेख कर बैठे और इस तरह अपनी पार्टी को संकेत कर दिया कि बहस को घुमाते हुए उलटे विपक्षियों पर हमला बोलने की युक्ति क्या है।
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की प्रतिक्रिया तो और बदतर थी। दोषियों को मृत्युदंड देने की बात कहने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय मीडिया के सामने एक हैरान कर देने वाला बयान दे डाला- ‘ऐसे और सैकड़ों मामले घटित हुए होंगे!’ लेकिन जब इस तरह के सैकड़ों मामलों में मणिपुर जल रहा होगा और स्त्रियों के साथ दुष्कर्म किया जा रहा होगा, तब पुलिस और सेना क्या कर रही थी? कुछ भी नहीं।
वायरल वीडियो से उस भयावह त्रासदी की क्रोनोलॉजी उभरकर सामने आ गई है, जो मणिपुर में दो महीने से भी अधिक समय से घटित हो रही है। मणिपुर में 3 मई से हिंसा की घटनाएं शुरू हुई थीं और वायरल वीडियो वाली घटना 4 मई की है। मामले की पुलिस शिकायत 18 मई को दर्ज की गई थी।
पूरे एक महीने तक पुलिस थानों के बीच वाद-विवाद चलता रहा कि यह मामला किसके अधिकार-क्षेत्र का है। आखिरकार 21 जून को ‘अज्ञात बदमाशों’ पर एफआईआर दर्ज की गई। इधर राष्ट्रीय महिला आयोग को भी मणिपुर में हो रही घटनाओं के बारे में सूचना मिली। आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि उन्होंने तीन अवसरों पर राज्य सरकार से सम्पर्क करते हुए मामलों की जांच करने को कहा लेकिन उन्हें कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला।
4 मई को हुई घटना का वीडियो 20 जुलाई को- यानी संसद का मानसून सत्र शुरू होने से एक दिन पहले ट्विटर पर अपलोड हुआ, तब जाकर सरकार हरकत में आई। महिला एवं बाल-विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने मुख्यमंत्री को फोन करके मामले में जानकारी ली और फिर खामोश हो गईं।
तब जाकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आखिरकार बोले। और अचानक, मणिपुर पुलिस ने चार लोगों को पकड़ भी लिया, जिनमें से एक मामले का मुख्य अपराधी बताया जा रहा है। तो क्या इतने भर से मणिपुर में महीनों से चल रही हिंसा का निराकरण हो जाएगा? यह एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य है, जो म्यांमार से सटा हुआ है।
म्यांमार से वहां ड्रग्स, हथियारों और आतंकवाद की तस्करी की जाती है। क्या देश का सुरक्षा तंत्र मणिपुर में हो रही घटनाओं से पूर्णतया बेखबर था? और कुछ नहीं तो यह कम से कम देश की सुरक्षा के लिए खतरा तो है ही। मणिपुर मामले में दिखावे की प्रतिक्रियाओं का समय अब चला गया है और जवाबदेहियां तय करते हुए स्पष्ट जवाब मांगने का समय आ गया है।