मध्य प्रदेश में इस विरोध से कैसे निपटेगी BJP .!

गुटबाजी के बाद अब कार्यकर्ताओं की नाराजगी, मध्य प्रदेश में इस विरोध से कैसे निपटेगी BJP

मध्य प्रदेश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. पार्टी पहले ही ये साफ कर चुकी है कि इस बार चुनाव केंद्रीय नेतृत्व में लड़ा जाएगा. इस रणनीति को धरातल पर उतारने की कवायद में अमित शाह जुट भी गए हैं, लेकिन वो कार्यकर्ताओं का मनोबल कैसे बढ़ाएंगे?

क्षेत्रीय क्षत्रपों के मनमुटाव के बाद अब मध्य प्रदेश भारतीय जनता पार्टी में कार्यकर्ताओं का विरोध केंद्रीय नेतृत्व के माथे पर शिकन का कारण बन सकता है.हाल ही में नर्मदापुरम-इटारसी विधानसभा क्षेत्र के पदाधिकारी भोपाल पहुंचे और स्थानीय विधायक के खिलाफ अपना कड़ा रुख पार्टी के सामने रखा. इन कार्यकर्ताओं का कहना है कि 30 साल से उनके विधानसभा क्षेत्र में शर्मा परिवार का ही शख्स चुनाव लड़ता आ रहा है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि बीजेपी परिवारवादी पार्टी नहीं है, ऐसे में पार्टी के अन्य लोगों को भी चुनाव लड़ने का मौका मिलना चाहिए.

जिनसे लड़े उनके साथ कैसे लड़ें

वहीं ग्वालियर-चंबल के इलाके में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को तो स्थानीय बीजेपी संगठन के लोग अभी तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं. सिंधिया समर्थक नेताओं में चुनाव जीतने वालों को मंत्रिपद और हारने वालों को अगल-अलग पद देने से भी बीजेपी के कार्यकर्ताओं में गुस्सा है. सूबे में ये कई जगहों पर नजर भी आ रहा है. इस क्षेत्र के कई नेता तो ऐसे हैं जो कांग्रेस के जिन कार्यकर्ताओं-नेताओं के खिलाफ आजीवन लड़े अब उन्हीं के साथ काम करने को मजबूर हैं.

सबसे मजबूत मध्य प्रदेश का संगठन

इन सवालों से पहले जान लें कि बीजेपी कैडर आधारित पार्टी है. उसके संगठन की मजबूती ही उन बड़े कारणों में से एक है, जिसके बूते आज बीजेपी केंद्र की सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ काबिज है. लोकसभा की 29 सीटें मध्य प्रदेश में भी हैं, जिनमें से 28 पर पिछले चुनावों में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इमेज के अलावा मध्य प्रदेश में बीजेपी के इस शानदार प्रदर्शन की वजहों में कार्यकर्ताओं का संकल्प और संगठन की मजबूती अहम है. बताया जाता है कि देश में बीजेपी का सबसे मजबूत संगठन मध्य प्रदेश में ही है.

मध्य प्रदेश अब विधानसभा चुनाव के मुहाने पर है. हालांकि बीजेपी के इस गढ़ पर इस बार खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. संगठन में उभरती गुटबाजी, क्षेत्रीय क्षत्रपों के बीच मनमुटाव, शिवराज सिंह चौहान सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी और इन सब के कारण कार्यकर्ताओं का गिरता मनोबल बीजेपी की चिंता का कारण बना. ऐसे में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने चुनावों की कमान अपने हाथ में ले ली. खुद अमित शाह इसकी पटकथा लिखने की कवायद में जुट गए.

शाह का कार्यकर्ताओं को मैसेज

शाह ने सबसे पहले क्षेत्रीय क्षत्रपों को संदेश दिया कि चुनाव केंद्रीय नेतृत्व में होगा और चेहरा होंगे पीएम मोदी. फिर वो चुनाव प्रक्रिया के उस अहम पुर्जे के पास गए, जिसके बिना चुनाव में जीत हरगिज भी संभव नहीं है- कार्यकर्ता. सूबे में चुनावों का औपचारिक आगाज करते हुए अमित शाह ने इंदौर में विशाल जनसभा की, जिसमें मालवा-निमाड़ क्षेत्र के कार्यकर्ता जुटे. इस जनसभा के बाद क्षेत्रीय संगठन के लगभग 60 पदाधिकारियों संग अमित शाह ने बैठक की.

इस बैठक में रोचक बात ये थी कि क्षेत्रीय पदाधिकारी तो थे, लेकिन क्षेत्रीय सांसद और विधायक नहीं. यानी शाह का मैसेज साफ था कि केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा कार्यकर्ताओं और संगठन के छोटे-छोटे कार्यकर्ताओं पर अधिक है. उन्हीं के बूते पार्टी फिर से सभी समीकरणों को पलटते हुए अपनी लहर बना सकती है.

अमित शाह इसके जरिए कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार कर उनसे सीधा संवाद करने की कोशिश कर रहे हैं. सूबे की राजनीतिक को बारीकी से समझने वाले जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि चुनावी तैयारी के दौरान अमित शाह किसी सुदूर इलाके के बूथ स्तर के कार्यकर्ता को कॉल कर के सीधे बात कर लें तो ये बड़ी बात नहीं होगी.

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