वॉक आउट’ कर लो, लेकिन ‘गेट-आउट’ नहीं!
थोड़े समय के लिए ‘वॉक आउट’ कर लो, लेकिन ‘गेट-आउट’ नहीं!
पिछले पांच सालों में 32 हजार स्टूडेंट्स ने आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम व केंद्रीय विश्वविद्यालयों जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों से बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। स्नातक के अलावा इनमें ज्यादातर स्टूडेंट्स स्नातकोत्तर और पीएचडी वाले थे।
पिछले बुधवार को राज्यसभा में शिक्षा मंत्रालय ने ये आंकड़े पेश किए। केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने कहा कि स्नातक कर रहे छात्रों के पढ़ाई छोड़ने की वजहों में गलत लाइन चुनना, खराब प्रदर्शन व मेडिकल कारण भी थे, वहीं स्नातकोत्तर व पीएचडी स्टूडेंट्स के छोड़ने की वजह सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में प्लेसमेंट, कहीं और बेहतर अवसरों के लिए प्राथमिकता पढ़ाई छोड़ने के प्रमुख कारण हैं।
संसद के इस उच्च सदन में एक और चौंकाने वाला आंकड़ा पेश किया गया कि हायर सेकंडरी स्तर पर स्कूल ड्रॉपआउट की दर देश में सबसे ज्यादा ओडिशा (27.3%) में है। इसके बाद मेघालय (21.7%), बिहार (20.5%) और असम (20.3%) है। वहीं अखिल भारतीय स्तर पर यह दर 12.6% है, वहीं पश्चिम बंगाल (18%), पंजाब(17.2%), गुजरात(17.9%) और आंध्र प्रदेश(16.3%) में ज्यादा है।
इन्हीं कारणों के चलते गोवा के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, आईआईटी-गोवा, एनआईटी गोवा शैक्षणिक सत्र 2023-24 से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू करने जा रहे हैं, जिसके तहत विद्यार्थी संस्थान छोड़कर (एग्जिट) री-एंट्री ले सकते हैं। पहले चरण से ही मौजूदा अकादमिक वर्ष के छात्रों के लिए एग्जिट का विकल्प होगा।
स्टूडेंट्स स्थाई रूप से भी कॉलेज छोड़ सकते हैं और उन्हें प्रमाण पत्र मिलेगा। एनआईटी गोवा के निदेशक ओ. आर. जायसवाल ने मीडिया को बताया कि मान लीजिए बीटेक कर रहे छात्र पहले साल के बाद जाते हैं, तो उन्हें कोर्स कंपलीशन सर्टिफिकेट मिलेगा, जो दो साल बाद जाएंगे उन्हें आईटीआई सर्टिफिकेट, थर्ड ईयर के बाद जाने वालों को डिप्लोमा मिलेगा।
इस तरह वे सैद्धांतिक के साथ-साथ प्रायोगिक ज्ञान ले सकेंगे। न सिर्फ ये संस्थान बल्कि देश में कई संस्थान बहु-विषयक, कौशल-आधारित पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने की कोशिश में हैं। साथ ही एनईपी की सिफारिशों के अनुसार विशेष माइनर-प्रोग्राम भी उपलब्ध होंगे।
दिलचस्प है कि अगर स्टूडेंट इंडस्ट्री में काम करना चाहता/चाहती है तो उसे अस्थाई एग्जिट मिलेगा और दो साल के अंदर डिग्री पूरी कर सकते हैं। इस देश में ऐसी सुविधा हममें से ज्यादातर लोगों को पढ़ाई के दौरान कभी नहीं मिली। अमेरिका में यह ‘वॉकिंग आउट ऑफ द क्लास’ कहलाता है।
अगर कोई अनुपस्थित विद्यार्थी के बारे में पूछता है, तो वहां आराम से कहते हैं कि वह क्लास से ‘वॉक्ड आउट’ कर गया है। जिसका मतलब है कि जब उन्हें ठीक लगेगा, वे वापस आकर क्लास जॉइन करेंगे। भारत में दुर्भाग्य से हम इसे ड्रॉप आउट कहते हैं। और अगर उनका मन बदलता है, तो हम उन्हें दूसरा मौका नहीं देते थे।
मानसिक रोग बढ़ने के साथ बच्चों में ऐसी भावनाएं आना सामान्य है। अगर वे पढ़ाई जारी नहीं रखना चाहते, तो पीछे न पड़ें। उन्हें समय दें, काउंसलर से मिलाएं, जो उनके मन की थाह ले सके और उनकी दुविधा समझ सके। और उन्हें धीरे-धीरे वापस शिक्षा की ओर लाएं। याद रखिए कि इस वापसी के लिए दो साल अच्छा समय है। लेकिन हर परिस्थिति में उन्हें शिक्षा के मार्ग पर आने और चलने में मदद करें।
…..स्टूडेंट्स, अगर पढ़ाई जारी रखने में असहज हो रहे हैं तो साल-दो साल के लिए ‘वॉक आउट’ कर लें, लेकिन याद रखें कि समय सीमा से पहले लौट आएं, ताकि आप पढ़ाई वाले मोड से स्थाई रूप से ‘गेट आउट’ न हो जाएं।