हर संकट से उबरेंगे जो देश के युवा बनेंगे हरित कौशल !

अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस विशेष: तकनीकी योग्यता के साथ-साथ जरूरत आदतें, व्यवहार एवं मनोवृत्ति बदलने की …

वै श्विक जलवायु परिवर्तन से उपजे संकट से मुकाबला करके जलवायु-अनुकूल दुनिया बनाने के सपने को साकार करने के लिए हरित कौशलता के रास्ते उम्मीद जगा रहे हैं ताकि दुनिया ज्यादा हरी-भरी, सुरक्षित और टिकाऊ बन सके। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, हरित परिवर्तन के परिणामस्वरूप वर्ष 2030 तक दुनिया में युवाओं के लिए 15 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में 8.4 मिलियन हरित नौकरियों का सृजन होगा। इस बदलते परिवेश में युवाओं को हरित कौशल से सुसज्जित होने की जरूरत है। दुनिया में इस समय 15-24 आयु वर्ग के 1.2 बिलियन युवा हैं। दुनिया की आधी आबादी 30 वर्ष से कम उम्र के युवाओं की है।

आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनोमिक कारपोरेशन एण्ड डवलपमेंट के अनुसार हरित कौशल एक टिकाऊ और संसाधन युक्त कुशल समाज में रहने, विकसित करने और समर्थन करने के लिए आवश्यक ज्ञान, क्षमताएं, मूल्य और दृष्टिकोण है। इसमें तकनीकी ज्ञान और कौशलता शामिल है जो हरित प्रौद्योगिकी और प्रकियाओं के प्रभावी उपयोग को सक्षम बनाते हैं। सीवरेज जल उपचार, नवीकरणीय ऊर्जा, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, जल संरक्षण, वानिकी, सोलर फोटो वोल्टेइक सेल, विंड एनर्जी, रिसाइक्लिंग, ग्रीन बिल्डिंग पर्यावरण, वन-कृषि, जलवायु परिवर्तन वैज्ञानिक, इलेक्ट्रिक कार इंजीनियर आदि अनेक क्षेत्र हैं जो कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण को कम करने, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान को रोककर हरित दुनिया बनाने में योगदान देंगे। हरित कौशलता की शिक्षा और प्रशिक्षण की उपलब्धता रोजगार देगी और दुनिया को भी संरक्षित करेगी। बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा में ही उन्हें हरित कौशलता के प्रति जागरूक और संवेदनशील बनाने की जरूरत है। देश में प्रयोगधर्मी, सामाजिक सरोकार करने वाले विद्यालय अपने विद्यार्थियों को ऊर्जा, जल संरक्षण, परिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए जिम्मेदार नागरिक, हरित नागरिक के रूप में तैयार कर रहे हैं। विद्यालयों में बने इको-क्लब ज्यादा सुसज्जित और जीवंत बनाने की जरूरत है। विद्यालयों की सीख युवाओं को ज्यादा संवेदनशील और जिम्मेदार भूमिका के लिए तैयार करेगी। हर घर हरित कौशलता युक्त बने। घर में जरूरत के अनुसार रिड्यूस, रियूज और रिसाइकिल के सिद्धांत पर वस्तुओं की खरीद और उपभोग करना भी जरूरी है। साइकिल का उपयोग, पौधे लगाना, सफाई-स्वच्छता और सामुदायिक हरियाली में योगदान सभी नागरिकों का कर्त्तव्य बने और वे इसे अपनी आदत का हिस्सा बनाएं।

राजस्थान के डूंगरपुर जिले में ओडिशा के एक दंपती ने इंजीनियरिंग करके परम्परागत देशज हरित कौशलता का उपयोग कर प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने ऐसा इको-फ्रेंडली घर बनाया है जिसमें सीमेंट, स्टील का बिल्कुल उपयोग नहीं किया गया। जैसे राजस्थान के पुराने महल, हवेलियां, घर, पत्थर, चूने और मिट्टी से बने हैं और आज भी टिकाऊ हैं, उसी तरह से उन्होंने हवा, रोशनी से भरपूर घर तो बनाया ही, जल संरक्षण, 150-200 प्रजाति के पौधे और साग-सब्जियां, हर्बल गार्डन की बेमिसाल आत्मनिर्भर व्यवस्था का भी ध्यान रखा। आशीष पाण्ड्य सिविल इंजीनियर व उनकी पत्नी मधुलिका सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। घर में प्लास्टिक, रसायन, पेस्टिसाइड्स, एल्युमिनियम, सिंथेटिक का कोई उपयोग नहीं। यहां तितलियों, मधुमक्खियों, चिड़ियों का नजारा हर पल दिखाई देता है।

हरित कौशलता प्रकृति के प्रति संवेदनशील और भावी पीढ़ी की सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी के अहसास से ही बढ़ेगी। तकनीकी योग्यता के साथ-साथ उन आदतों, व्यवहार एवं मनोवृत्ति को बदलने की जरूरत रहेगी जिससे पारिस्थितिकी तंत्र, पर्यावरण, धरती, नदी, समंदर व अन्य जलस्रोतों का नुकसान हो रहा है। जीवन के प्राण तत्वों को बचाने के लिए हरित कौशलता और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता आज की जरूरत है। समुदाय, विशेष रूप से युवा पीढ़ी, हरित कौशलता एवं देशज हरित ज्ञान व व्यवहार से स्वयं का, धरती का भविष्य संवार पाएंगे, इन्हें सुरक्षित कर पाएंगे, टिकाऊ बना पाएंगे। इसके लिये युवाओं को आगे आने की जरूरत है।

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