बुजुर्गों की उपेक्षा न करें, अनुभव का खजाना हैं वे

बुजुर्गों की उपेक्षा न करें, अनुभव का खजाना हैं वे …

बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि ‘तुम्हें कब क्या करना है यह बताना बुद्धि का काम है, पर कैसे करना है यह अनुभव ही बता सकता है।’ जाहिर है युवा वर्ग को बुजुर्गों के अनुभव की जरूरत होती है। बुजुर्ग अनुभवों का वह खजाना हैं, जो हमें जीवन पथ के कठिन मोड़ पर उचित दिशा-निर्देश करते हैं। आज के व्यस्त दौर में हम अपने बुजुर्गों की सलाह लेना भूल ही गए हैं। पहले दादी-नानी की कहानियों में संदेश भी होता था। उन कहानियों का उद्देश्य बच्चों को मात्र खुश करना नहीं था, बल्कि हमें संस्कारित करना भी था। आज की पीढ़ी भले ही इंटरनेट के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने में विश्वास रखती है, लेकिन बड़ी-बड़ी नेटवर्किंग साइट्स भी बच्चों को वह ज्ञान नहीं दे सकतीं, जो बुजुर्ग देते रहते हैं। भले ही आज वर्तमान पीढ़ी के बच्चों को यह बुरा लगता है कि उन्हें किसी भी कार्य के लिए घर के बुजुर्ग रोकें-टोकें। वे इस टोका-टोकी को अपने जीवन में दखल मानते हैं। इसकी वजह बच्चों के माता-पिता हैं। बचपन में बच्चा जब यह देखता है कि उसके माता-पिता अपने बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं, तो वह भी वैसा ही व्यवहार अपने माता-पिता के साथ करता है। आज भी कई परिवारों के संस्कारी लोग अपने बड़े बुजुर्गों के आदेशों को एक कानून की तरह मानते हैं। बुजुर्गों द्वारा दी गई प्रेरणा, जीवन में नए बदलाव का एक मुख्य स्रोत बनती है। जो बच्चा आज अपने बुजुर्गों के साथ बैठकर उनसे संस्कार ग्रहण करता है, वह जीवन में कभी भी विफल नहीं होता। हमें अपने व्यस्त समय में से थोड़ा सा समय निकाल कर बुजुर्गों की सेवा में लगाना चाहिए और उनकी सीख पर ध्यान देते हुए उनके द्वारा दिए हुए संस्कारों को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। इससे उनको तो संतोष मिलेगा ही, हम भी सुरक्षित रहेंगे। किसी ने कहा है-

फल न देगा न सही, छांव तो देगा तुमको,

पेड़ बूढ़ा ही सही, आंगन में लगा रहने दो ।

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