यूपी के मेडिकल कॉलेजों का हेल्थ चेकअप ?

यूपी के मेडिकल कॉलेजों का हेल्थ चेकअप:कानपुर में ट्रॉमा सेंटर नहीं, किडनी-लिवर ट्रांसप्लांट की फैसिलिटी को तरस रहा वेस्ट यूपी

सरकार वर्ल्ड क्लास मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात कह रही है। लेकिन, यूपी के सबसे बड़े कानपुर मेडिकल कॉलेज में ट्रॉमा सेंटर तक नही हैं। इसके अलावा वेस्ट यूपी के तमाम मेडिकल कॉलेजों में किडनी और लीवर जैसे आर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा भी नहीं है।

प्रदेश के इन मेडिकल कॉलेजों में सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की सुविधाएं भी बेहद सीमित है। हालांकि यूपी के सभी 75 जिलों में मेडिकल कॉलेज भी खोलने की बात कही जा रही है। इनमें वेस्ट यूपी के जिले बुलंदशहर, औरैया, बिजनौर और कानपुर देहात भी शामिल हैं।

कानपुर समेत पूरा वेस्ट यूपी किसी पहचान का मोहताज नहीं है। यहां से प्रदेश सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व आता है। लेकिन, सालों से इन जिलों के मेडिकल कॉलेजों की स्वास्थ्य सेवाओं की हालत काफी खस्ता है। यही कारण है कि इन जिलों से बड़ी संख्या में मरीज दिल्ली और लखनऊ के टॉप मेडिकल संस्थानों में रेफर किए जाते हैं।

यूपी के मेडिकल कॉलेजों की पड़ताल में आज बात वेस्ट यूपी के 5 मेडिकल कॉलेजों के बारे में हैं…

1. GSVM मेडिकल कॉलेज में ट्रॉमा सेंटर का अभाव

यूपी के लगभग 18 जिलों के मरीज इलाज के लिए कानपुर मेडिकल का रुख करते हैं। साल 2008 में यहां 20 बेड से ट्रॉमा यूनिट के संचालन की शुरुआत हुई। पर बाद में ये सभी इमरजेंसी डिपार्टमेंट में जोड़ दिए गए और मेडिकल कॉलेज में ट्रॉमा सेंटर की कमी बनी रही।

GSVM मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत हैलट अस्पताल, मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल, बाल रोग अस्पताल, अपर इंडिया मैटरनिटी और संक्रामक रोग अस्पताल हैं। प्रदेश का सबसे बड़ा GSVM यानी गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज में एपेक्स ट्रॉमा सेंटर नहीं हैं।

वहीं, आर्थोपेडिक डिपार्टमेंट भी खस्ताहाल है। यहां से इलाज कराने वाले ज्यादातर पेशेंट AIIMS या SGPGI रेफर किए जाते हैं। कैंसर मरीजों के लिए सुविधाएं नाम मात्र की हैं। जांच के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ती हैं। पैरामेडिकल स्टाफ और ट्रेंड स्टाफ की भारी कमी है। दवाओं का सलाना बजट करीब 6 करोड़ रुपए है।

250 करोड़ है सालाना बजट

1800 बेड के मेडिकल कॉलेज में 99 ICU और 100 बेड वेंटिलेटर के हैं। MBBS की 250 और PG मेडिकल की 120 सीट के अलावा MCH सुपर स्पेशलिटी की 2 सीटें हैं। जबकि मेडिकल कॉलेज में फिलहाल फैकल्टी की संख्या 165 है। KGMU के चिकित्सा विश्वविद्यालय बनने के बाद ये प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी मेडिकल कॉलेज है। यहां का सलाना बजट करीब 250 करोड़ रुपए है। इसमें हैलट अस्पताल का बजट करीब 60 करोड़ रुपए सलाना है।ओपीडी में रोज 5 हजार मरीज आते हैं
OPD में औसतन 5 हजार के करीब मरीज रोजाना आते हैं। वहीं, 150 से 200 मरीज रोज भर्ती होते हैं। सालाना 10 लाख पेशेंट OPD में और 70 से 80 हजार मरीज IPD में भर्ती होते हैं। आई बैंक भी मेडिकल

2. कन्नौज मेडिकल कॉलेज में रेडियोलॉजिस्ट नहीं

कन्नौज मेडिकल कॉलेज अपनी खुद की बिल्डिंग में चल रहा है। यहां आधुनिक मशीनें भी हैं, लेकिन रेडियोलॉजिस्ट नहीं हैं। जिस कारण मरीजों को उनका फायदा नहीं मिल पा रहा है। OPD में औसतन 1500 से 1800 के करीब मरीज रोजाना आते हैं। हालांकि MRI और CT स्कैन की सुविधा नहीं है।

19 अगस्त 2023 को कैंसर अस्पताल का उद्घाटन प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा आलोक कुमार ने किया पर अभी यहां रेडियोथेरेपी की सुविधा मरीजों को नहीं मिल पा रही है। कोई विशेषज्ञ चिकित्सक भी नहीं है।

500 बेड के मेडिकल कॉलेज में 20 ICU और 24 बेड वेंटिलेटर के हैं। MBBS की 100 और PG मेडिकल की 8 सीट के अलावा MCH सुपर स्पेशलिटी की 2 सीटें हैं। मेडिकल कॉलेज में फिलहाल फैकल्टी की संख्या 107 हैं। इस सालाना बजट का सलाना बजट करीब 40 करोड़ रुपए है।

एसएन मेडिकल कॉलेज आगरा के सुपर स्पेशलिटी बिल्डिंग।
एसएन मेडिकल कॉलेज आगरा के सुपर स्पेशलिटी बिल्डिंग।

3. आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में कार्डियो सर्जरी डिपार्टमेंट नहीं

आगरा मेडिकल कॉलेज में कैंसर का इलाज यहां किया जा रहा है। पर हार्ट पेशेंट के लिए कार्डियो सर्जरी डिपार्टमेंट नहीं हैं। यही कारण हैं कि गंभीर रोगियों को AIIMS दिल्ली के लिए रेफर किया जाता हैं। वहीं, मरीजों की समस्या बंदरों के हमले भी हैं, बेशकीमती दवाएं बंदर छीन ले जाते हैं। तीमारदारों पर बंदरों के हमले आम बात हो गई है।

सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज में 976 बेड हैं। जिनमें 78 ICU बेड हैं। MBBS की 128 सीट और PG मेडिकल की 76 सीट हैं। मेडिकल कॉलेज में फिलहाल 31 डिपार्टमेंट संचालित हैं। 200 करोड़ रुपए की लागत से 8 मंजिला सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनकर तैयार हैं पर अभी यहां IPD सर्विस शुरू नही हुई हैं। OPD में रोजाना औसतन 2500 मरीज आते हैं।

चाइल्ड पीजीआई नोएडा।
चाइल्ड पीजीआई नोएडा।

4. चाइल्ड पीजीआई नोएडा में CT स्कैन और MRI की सुविधा नहीं

चाइल्ड पीजीआई में 250 बेड का अस्पताल, 20 बेड NICU , 22 बेड इमरजेंसी और 20 वेंटिलेटर के हैं। संस्थान में MBBS और PG सीट नहीं हैं पर सुपर स्पेशलिटी की 12 सीट हैं। फैकल्टी के 110 सीट के सापेक्ष फिलहाल यहां 70 फैकल्टी तैनात है। करीब 100 करोड़ का सालाना बजट हैं। OPD में औसतन रोजाना 1000 मरीज आते हैं। यहां नवजात से लेकर 14 साल तक के बच्चों का ही इलाज होता है।

BSL-3 (बायोसेफ्टी) लैब की सुविधा, माइक्रोबायोलॉजी लैब से उच्च संक्रमण की जांच की जा सकती है। पर CT स्कैन और MRI की सुविधा नहीं है। यहां बच्चों के कैंसर और कार्डियोलॉजी के विभाग है, जहां इस समस्या से जूझ रहे बच्चों का इलाज किया जाता है। एक्सपर्ट डॉक्टरों और मशीनों की कमी है।

5. सहारनपुर मेडिकल कॉलेज में ट्रामा सेंटर की सुविधा नहीं

20 एकड़ में फैले सहारनपुर के शेख-उल-हिंद मौलाना महमूद हसन मेडिकल कालेज का सालाना 10 करोड़ है। 440 बेड के अस्पताल में बजट में रसायन व दवाओं पर ही 6 करोड़ खर्च हो जाते है।

मेडिकल कॉलेज में औसतन 1500 मैरिज रोजाना इलाज के लिए आ रहे हैं। जबकि इमरजेंसी में 65 मरीज प्रतिदिन का आंकड़ा है। मेडिकल कॉलेज में सबसे बड़ी समस्या ट्रॉमा सेंटर का न होना है। रेडियोथेरेपी की व्यवस्था भी अभी सुलभ नहीं है। डॉक्टरों के अलावा स्वीपर, वार्ड ब्वाय और माली भी अपेक्षित संख्या में नहीं है।

……………..

जल्द किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू होगी

प्रिंसिपल डॉ. प्रशांत गुप्ता का कहना है, “सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में फिलहाल OPD चलती है। आगे जब अस्पताल पूरी तरह से संचालित होगा तो यहां सबसे पहले किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू की जाएगी। उसके बाद लीवर ट्रांसप्लांट शुरू किए जाएंगे। नए हॉस्पिटल में अत्याधुनिक मशीनों के इंस्टॉलेशन हो रहा है। यहां कुछ डिपार्टमेंट में चिकित्सकों की तैनाती अभी होनी है।

वेस्ट यूपी के मेडिकल कॉलेजों में ट्रांसप्लांट सुविधा शुरू करने की जरूरत

इंडियन सोसाइटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांट के प्रेसिडेंट इलेक्ट और SGPGI के पूर्व नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ.अनीस श्रीवास्तव ने बताया, “बड़ी संख्या में वेस्ट यूपी के मरीज ट्रांसप्लांट के लिए लखनऊ के चिकित्सा संस्थानों का रुख करते हैं। इसके पीछे बड़ी वजह दिल्ली NCR से कम खर्चे में लखनऊ में ट्रांसप्लांट की सुविधा उपलब्ध होना हैं। हालांकि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इन सुविधाओं की कमी मरीजों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन रही हैं। इन मेडिकल कॉलेजों में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू करने पर जोर दिया जाना चाहिए।”

कैंसर रोगियों का एडवांस स्टेज का उपचार लखनऊ में, बाकी का मेडिकल कॉलेजों में

लखनऊ के कल्याण सिंह सुपर स्पेशलिटी कैंसर इंस्टीट्यूट (KSSSCI) के निदेशक प्रो.आरके धीमन बताया, “हर साल 2.5 लाख से ज्यादा नए कैंसर मरीज प्रदेश में सामने आते हैं। ऐसे मरीजों को इलाज के लिए संस्थान ने IIT कानपुर और कैंसर के फील्ड में काम कर रही एक निजी संस्थान के साथ MOU किया हैं।”

उन्होंने कहा, ” हाई रिस्क वाले पेशेंट को समय से उपचार देने के मकसद से संस्थान में एडवांस मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक सेंटर बनाया जा रहा हैं। इसके लिए प्रदेश भर के कैंसर रोगियों के लिए मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक जांच की सुविधा मुहैया होगी। जिससे बेहतर से बेहतर इलाज किया जा सके। इसके अलावा कीमोथेरेपी के लिए स्थानीय मेडिकल कॉलेजों में इलाज मिलेगा। वही जो एडवांस ट्रीटमेंट का पार्ट हैं, उसे KSSSCI या SGPGI जैसे संस्थानों में किया जा सकता हैं। इस पहल से वेस्ट यूपी सहित कई जगहों के मेडिकल कॉलेजों का लोड भी कम होगा और वहां के मरीजों को स्थानीय स्तर पर भी इलाज मिलना शुरू होगा”

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *