ग्वालियर। चीता परियोजना से भी भाजपा को चुनाव में बड़ी उम्मीद थी, लेकिन चीतों की लगातार होती मौत और पर्यटकों के लिए चीतों का दीदार शुरू न हो पाने से भाजपा इसे चंबल संभाग में भुना नहीं पा रही है। यहां कोई उद्योग न होने से बेरोजगारी के मामले में भी चंबल अंचल बदनाम है। यहां के लोगों को उम्मीद थी कि चीता पर्यटन से स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ेंगे, लेकिन यह भी नहीं हो पाया। यहां सत्ताधारी दल को चीतों से पर्यटन उद्योग में बूम की आस थी। चीतों की खराब सेहत से भाजपा के प्रचार का मिजाज बदल गया है।

शिवपुरी, श्योपुर, मुरैना और ग्वालियर की करीब 15 सीटों पर चीतों का अप्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिल सकता था। यदि चीता पर्यटन शुरू हो जाता तो शिवपुरी और श्योपुर में विकास के नाम पर वोट मांगने में आसानी होती। अभी भाजपा के नेता या केंद्रीय मंत्री चीता प्रोजेक्ट की सफलता के दावे नहीं कर पा रहे। सभाओं में न चीतों के होर्डिंग दिखाई दे रहे, न भाषणों में चीतों की चर्चा।

चीतों को बाड़े में छोड़ने के लिए खुद पीएम आए थे

आदिवासी क्षेत्र में पर्यटन की संभावनाओं ने जो उड़ान भरी थी उस पर विराम लग गया है। कई होटल प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चले गए हैं। साथ ही जमीनों की कीमतें भी ‘जमीन’ पर ही आ गई हैं। चीता परियोजना भाजपा सरकार की बड़ी उपलब्धि है। यही कारण है कि नामीबिया से प्रथम चरण में लाए गए आठ चीतों को बाड़े में छोड़ने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कूनो नेशनल पार्क आए थे। पिछले साल अपने जन्मदिन 17 सितंबर को उन्होंने चीतों को पहले क्वारंटाइन बाड़े में छोड़ा था। उम्मीद थी कि सब ठीक ठाक रहेगा तो मार्च 2023 तक चीतों के दीदार को आम जनता के लिए भी खोल दिया जाएगा। लेकिन चीतों की सेहत उतनी अच्छी नहीं रही और एक के बाद एक नौ चीतों ने दम तोड़ दिया।

जो चीते छोड़े गए उन्हें वापस बाड़े में रखा

अब स्थिति यह है कि जो चीते जंगल में छोड़े गए थे उन्हें भी वापस बाड़े में रख दिया गया है जिससे उनकी बेहतर देखभाल की जा सके। कुल मिलाकर चीतों का प्रोजेक्ट फिलहाल कठिनाइयों से गुजर रहा है। लिहाजा अंचल के चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी भी इसको क्षेत्र के सामने सौगात के रूप में पेश नहीं कर पा रही है। न किसी सभा में चीतों की चर्चा होती है न ही पर्यटन को पंख लगने के दावे किए जा रहे हैं। हां यह तय है कि यदि प्रोजेक्ट सरकार की तय टाइमलाइन से चलता तो निश्चित रूप से यह श्योपुर, शिवपुरी, मुरैना और ग्वालियर में भाजपा के लिए वोटों की चुंबक बनता। विकास के नाम पर बताने के लिए निर्विवाद प्रोजेक्ट भाजपा के पास रहता क्योंकि अटल प्रोग्रेस वे अभी कोर्ट कचहरी में ही उलझा हुआ है।

ठिठके होटल उद्योग के कदम

चीता प्रोजेक्ट शुरू होने के साथ ही शिवपुरी-श्योपुर में जमीनों के दाम आसमान पर पहुंच गए थे। कई फाइव स्टार होटल प्रबंधन की टीमों ने भी दौरा करना शुरू कर दिया था। यहां तक कि कई नेताओं ने भी जमीनें खरीद लीं। ग्वालियर में भी कई होटल चेन ने अपने प्रोजेक्ट के एमओयू कर लिए थे। कुल मिलाकर एक अंधी दौड़ शुरू हो गई थी। चीता प्रोजेक्ट के ठिठकने से होटल उद्योग भी ठिठक गया है। बड़े होटल समूह भी अभी वेट एंड वाच की स्थिति में हैं। श्योपुर एवं शिवपुरी के प्रापर्टी डीलर इसे स्वीकार कर रहे हैं।

चार जिलों की 19 सीटों में 11 कांग्रेस के पास

भाजपा में प्रचार से जुड़े नेता भी मानते हैं कि निश्चित तौर से प्रोजेक्ट का फायदा मिलता क्योंकि चीता प्रोजेक्ट के लिए प्रत्यक्ष तौर से लाभांवित होने वाले श्योपुर, शिवपुरी, मुरैना और ग्वालियर में कुल 19 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 11 सीटें कांग्रेस के पास हैं। रोजगार और इंडस्ट्री में बूम के बहाने युवा वोटरों को भाजपा के पक्ष में करने का स्वर्णिम मौका था। 11 में से आधी सीटों की जीत का मार्जिन भी बहुत अधिक नहीं है लिहाजा युवा वोट स्विंग होने पर पार्टी को बड़ा फायदा होता।

रोजगार देने का बड़ा मुद्दा हाथ से फिसला

उद्योग नहीं होने के कारण बेरोजगारी एवं पलायन इस अंचल में हमेशा से ही एक मुद्दा रहा है। चीता प्रोजेक्ट भले ही पूरे देश के लिए हो, लेकिन यह तय है कि इसका सर्वाधिक प्रत्यक्ष फायदा ग्वालियर-चंबल के जिलों को ही मिलना है। चीता पर्यटन शुरू होने पर श्योपुर, शिवपुरी, मुरैना और ग्वालियर के युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे। होटल, खानपान, ट्रेवलिंग सहित इससे जुड़ी कई अप्रत्यक्ष इंडस्ट्री को भी फायदा होगा। इसे भाजपा चुनावी मुद्दा बनाती।

चीता प्रोजेक्ट श्रेय के लिए नहीं

भाजपा कोई कार्य श्रेय के लिए नहीं करती है। चीता प्रोजेक्ट चंबल ही नहीं पूरे देश के लिए गौरव का विषय है। प्रोजेक्ट अपने तय मानकों पर चल रहा है। जब यह अपने पूर्ण स्वरूप में आएगा तब चंबल में रोजगार और पर्यटन की नई संभावनाओं का जन्म होगा। – आशीष अग्रवाल मीडिया प्रभारी, भाजपा