मध्य प्रदेश में ऐसे उलटी पड़ रही BJP की चुनावी रणनीति ! पश्चिम बंगाल में फेल हो चुका है पार्टी का ये फॉर्मूला

कैलाश विजयवर्गीय के बोल कहीं बिगाड़ न दें खेल, मध्य प्रदेश में ऐसे उलटी पड़ रही BJP की चुनावी रणनीति
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार कैलाश विजयवर्गीय टिकट मिलने के बाद अजीबो-गरीब बयान दे रहे हैं. हाल ही इंदौर में उन्होंने कहा था कि वो बड़े नेता बन गए हैं, अब वो जनता के सामने हाथ जोड़कर नहीं बल्कि हेलिकॉप्टर से जाकर रैलियां करना चाहते हैं. विजयवर्गीय के बयान को कांग्रेस भुनाने की पुरजोर कोशिश में है, जिससे सूबे की बीजेपी सरकार की परेशानी बढ़ सकती है.

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तीन केंद्रीय मंत्री सहित सात सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को विधायकी का टिकट दिया है. नरेंद्र तोमर से लेकर प्रह्लाद पटेल, भग्गन सिंह कुलस्ते और कैलाश विजयवर्गीय तक का नाम शामिल है. दिग्गज नेताओं पर दांव खेलने को बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक बताया जा रहा है, लेकिन टिकट मिलने से बाद से जिस तरह के बयान कैलाश विजयवर्गीय दे रहे हैं और कांग्रेस उसे लेकर अलग ही नैरेटिव गढ़ने लगी है. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सियासी दांव कहीं उलटा न पड़ जाए?

टिकट मिलने पर जताई थी हैरानी

कैलाश विजयवर्गीय ने टिकट मिलने के बाद कहा,’यह पार्टी का आदेश है. मुझसे कहा गया था कि मुझे काम सौंपा जाएगा और मैं ना नहीं कहूंगा और मुझे यह करना होगा. जब टिकट की घोषणा हुई तो मैं भी हैरान रह गया. मैं पार्टी का सिपाही हूं, आदेश का पालन करूंगा.’ इसके बाद मंगलवार को अपने चुनावी अभियान का आगाज करते हुए कैलाश विजयवर्गीय ने मंगलवार को एक बयान दिया कि मैं अंदर से खुश नहीं हूं. सच कह रहा हूं. मेरी चुनाव लड़ने की एक फीसदी भी इच्छा नहीं थी.

विजयवर्गीय ने कहा कि एक माइंडसेट होता है चुनाव लड़ने का. अब अपन तो बड़े नेता हो गए हैं, अब हाथ-बाथ जोड़ने का नहीं. भाषण दो और निकल जाए, भाषण दो और निकल जाओ, हमने चुनाव को लेकर प्लान बनाया था कि हर दिन आठ सभाएं करनी हैं. पांच हेलिकॉप्टर से और तीन कार से. इस तरह पूरे चुनाव में हर दिन आठ सभाएं करनी हैं. इसका प्लान भी बन गया था. आप जो सोचते हैं वो होता कहां है, लेकिन होता वही हो जो भगवान की इच्छा होती है. भगवान की ऐसी इच्छा थी कि मैं चुनाव लड़ूं और एक बार फिर से जनता के बीच जाऊं. उन्होंने कहा कि मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मैं उम्मीदवार हूं. मुझे लग ही नहीं रहा है कि टिकट मिल गया है और मैं उम्मीदवार बन गया.

बीजेपी के अंदर आंतरिक कलह के कयास

कैलाश विजयवर्गीय के बयान को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया है. कांग्रेस ने कहा कि कैलाश विजयवर्गीय के बयानों से साफ है कि वो हार रहे हैं और उन्हें डर सता रहा है. इसीलिए वो कह रहे हैं कि उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी. एमपी के कांग्रेस प्रवक्ता नीलाभ शुक्ला ने कहा, ऐसा लगता है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच आंतरिक कलह चल रहा है. इसीलिए कैलाश विजयवर्गीय को उनकी इच्छा के खिलाफ चुनावी लड़ाई में धकेल दिया गया है. विजयवर्गीय जैसे वरिष्ठ नेता को उम्मीदवार बनाना एक पुलिस स्टेशन के दरोगा का डिमोशन कर कांस्टेबल बनाने जैसा है. कांग्रेस के चुनाव प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस और कमलनाथ का भय बीजेपी और उनके नेताओं पर सता रहा है.

कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ कांग्रेस के मौजूदा विधायक संजय शुक्ला पूरी दमदारी से चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. शुक्ला ने दावा किया कि इंदौर एक सीट पर विजयवर्गीय को करीब 25 हजार वोटों से हराउंगा. विजयवर्गीय को राजनीति में स्थापित करने में मेरा पिता विष्णु प्रसाद शुक्ला का हाथ रहा है. कैलाश विजयवर्गीय कितना ही जोर लगा लें, लेकिन उनके बयान बता रहे हैं कि उन्हें हार का डर कैसे सता रहा है. इस तरह कांग्रेस के कई नेताओं ने विजयवर्गीय के बयान वाले वीडियो को लेकर बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव गढ़ने में जुटे हैं और यह बता रहे हैं कि कैसे बीजेपी नेता खुद बता रहे हैं कि वो चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे.

बीजेपी के दिग्गज नेताओं की बेचैनी?

मध्य प्रदेश और छ्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने सांसदों को चुनाव मैदान में टिकट देकर उतारा है और राजस्थान में भी चुनाव लड़ाने की तैयारी है. ऐसे में बीजेपी सांसद डरे हुए हैं और अंदर से बेचैन हैं. सबसे ज्यादा वो सांसद डरे हुए हैं जो दो या दो से ज्यादा टर्म से लोकसभा का चुनाव जीत रहे हैं या फिर मोदी सरकार में मंत्री हैं. तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर मीडिया में जो भी सर्वे आ रहे हैं, उसमें राजस्थान में ही टक्कर बतायी जा रही और बाकी दोनों राज्यों में कांग्रेस का पल्ला भारी बताया जा रहा है.

बीजेपी सांसदों को यह डर सता रहा है कि अगर वो विधायक का चुनाव भी हार गए तो फिर उनकी लोकप्रियता पर सवाल उठेंगे और पार्टी उन्हें लोकसभा का टिकट भी नहीं देगी यानी चुनावी राजनीतिक करियर पर ब्रेक सा लग जाएगा और अगर वो चुनाव जीत भी गए तो उस सूरत में भी लोकसभा चुनाव में पार्टी नए चेहरे को बढ़ावा देने की रणनीति के तहत उन्हें विधानसभा में ही बने रहने को कहकर लोकसभा में किसी और को टिकट दे सकती है.यही चिंता बीजेपी सांसदों को खाए जा रही है.

तीनों ही चुनावी राज्यों के सांसद सोच रहे थे कि अपने संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाएंगे, प्रचार करेंगे और इसी बहाने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उनकी भी तैयारी हो जाएगी. पर अब इन सांसद की हालत आगे कुआं और पीछे खाई जैसी हो गई है. ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय का बयान बीजेपी की रणनीति में पलीता न लगा दे, क्योंकि बीजेपी ने उन्हें चुनावी रण में उतारकर आसपास जिले की सीटों को भी प्रभावित करने की रणनीति बनाई थी ताकि सियासी माहौल के मोड़ा जा सके. ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय के बयान बीजेपी के प्लान में पलीता न लगा दें?

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 मध्य प्रदेश में BJP की रणनीति कहीं उसी पर न पड़ जाए भारी, पश्चिम बंगाल में फेल हो चुका है पार्टी का ये फॉर्मूला
एमपी में जो एक चेहरा करीब 16 साल से लोगों की नजर में है और जिसपर एमपी के लोग मुहर लगाते आए हैं. उसे दरकिनार कर सात सांसदों के सहारे सामूहिक नेतृत्व का नाम देना कहीं बीजेपी को भारी न पड़ जाए
इसे मास्टर स्ट्रोक कहें या फिर ज़मीनी हकीकत की परख या फिर कांग्रेस-इंडिया की दहशत कि मध्यप्रदेश चुनाव में अब बीजेपी ने अपना सबकुछ झोंक दिया है. विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी ने अबतक अपने सात सांसदों को चुनावी समर में उतार दिया है, जिनमें से तीन तो केंद्रीय मंत्री ही हैं. और अभी तो ये महज 40 उम्मीदवारों की ही सूची है. अभी और भी उम्मीदवार घोषित होने हैं, जिनमें और भी सांसदों और मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में उतार दिया जाए तो कोई हैरत नहीं होगी. लेकिन क्या बीजेपी का एमपी चुनाव जीतने का ये फॉर्मूला कामयाब हो पाएगा या फिर बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव जैसी ही बड़ी गलती कर दी है, जिसमें सांसदों-मंत्रियों को उतारने के बावजूद पार्टी महज 77 सीटों पर सिमट गई थी.

पश्चिम बंगाल में साल 2021 में विधानसभा के चुनाव थे. तब 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने वाली बीजेपी बंगाल में अपनी जड़ों को विधानसभाओं में भी मज़बूत करने की कोशिश कर रही थी. और इसी कोशिश के तहत बीजेपी ने उस चुनाव में पांच-पांच सांसदों को विधानसभा चुनाव का टिकट दे दिया था. तब आसनसोल से बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे बाबुल सुप्रियो, हुगली से सांसद लॉकेट चटर्जी, कूचबिहार से सांसद निसिथ प्रामाणिक, राणाघाट से सांसद जगन्नाथ सरकार और राज्यसभा से सांसद रहे स्वपन दासगुप्ता को बीजेपी ने विधानसभा का टिकट दिया. नतीजे आए तो पता चला कि पांच में से तीन सांसद तो विधानसभा का चुनाव ही नहीं जीत पाए. हारने वाले सांसदों में केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी और स्वपन दास गुप्ता थे, जो खुद की ही सीट नहीं बचा पाए. और नतीजा ये हुआ कि बंगाल में सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब देख रही बीजेपी 77 सीटों पर सिमट गई और बंगाल का सपना चकनाचूर हो गया. हालांकि तब भी यही कहा गया कि तीन सीटों से 77 सीटों पर बीजेपी को पहुंचाने में इन सांसदों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

मध्य प्रदेश में स्थितियां उलट 
हालांकि मध्यप्रदेश में स्थितियां उलट हैं. पिछले चुनाव में कमलनाथ के चंद महीनों के कार्यकाल को छोड़ दें तो एमपी में बीजेपी करीब 19 साल से सत्ता में है. तो ये तो नहीं कह सकते कि बीजेपी को मध्यप्रदेश में बंगाल जैसी मेहनत करनी है. तो फिर मध्यप्रदेश में आखिर ऐसा है क्या कि बीजेपी को अपने तीन-तीन केंद्रीय मंत्री विधानसभा चुनाव में उतारने पड़े हैं. कुल सात सांसदों को विधायक बनने के लिए पार्टी प्रेरित कर रही है. क्या इसकी वजह ये है कि अब केंद्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान को किनारे करना चाहता है और अपने हेविवेट मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा का टिकट देकर ये मैसेज देना चाहता है कि अब मध्यप्रदेश का राजनीति भोपाल नहीं, दिल्ली से तय होगी. या फिर बीजेपी को उम्मीद है कि जिन विधानसभा सीटों पर बीजेपी हमेशा कमजोर रही है, वहां सांसदों को उतारकर उस सीट के साथ ही आस-पास की सीटों पर भी बढ़त बनाई जा सकती है. इसको समझने के लिए बीजेपी की लिस्ट पर एक नज़र डालते हैं.

बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट में नरेंद्र सिंह तोमर का नाम है, जो केंद्रीय कृषि मंत्री हैं. उन्हें दिमनी से टिकट दिया गया है, जहां फिलहाल कांग्रेस के गिरराज दंडोतिया विधायक हैं. नरसिंहपुर विधानसभा से तो अभी बीजेपी के ही जालम सिंह पटेल विधायक हैं, जिन्होंने साल 2018 में कांग्रेस के लखन सिंह पटेल को करीब 15 हजार वोटों से मात दी थी. लेकिन अब इस सीट पर बीजेपी ने केंद्रीय राज्य मंत्री और वर्तमान बीजेपी विधायक जालम सिंह पटेल के भाई प्रहलाद पटेल को उम्मीदवार बना दिया है. मांडला जिले की एक सुरक्षित सीट है निवास, जहां 2018 में कांग्रेस के अशोक मार्सकोले ने जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार उस सीट पर बीजेपी ने राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को उम्मीदवार बना दिया है. बाकी जबलपुर पश्चिम में भी अभी कांग्रेस के ही विधायक हैं तरुण भनोट. इस सीट पर जीत के लिए बीजेपी ने जबलपुर के सांसद राकेश सिंह को उम्मीदवार बना दिया है. सीधी की सांसद रीति पाठक सीधी विधानसभा से चुनाव लड़ रही हैं. हालांकि 2018 में यहां बीजेपी के ही केदार नाथ शुक्ला ने जीत दर्ज की थी और जीत का अंतर भी करीब 20 हजार का था. वहीं सतना के सांसद गणेश सिंह को सतना विधानसभा से चुनाव लड़वाया जा रहा है, जहां 2018 में कांग्रेस के सिद्धार्थ शुक्ल कुशवाहा ने जीत दर्ज की थी. होशंगाबाद के सांसद उदय प्रताप सिंह गाडरवारा से विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार हैं. 2018 में यहां से कांग्रेस की सुनीता पटेल जीती थीं.  इसी तरह से इंदौर 1 सीट पर 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और वहां से करीब 8 हजार वोट के अंतर से संजय शुक्ला बाजी मार ले गए थे. लेकिन अब इस सीट पर कब्जे के लिए बीजेपी ने अपने राष्ट्रीय महासचिव और फायरब्रांड नेता कैलाश विजयवर्गीय को चुनावी मैदान में उतार दिया है.

हर क्षेत्र में बीजेपी ने बड़े नेता पर दांव लगाया
अब अगर इसे बीजेपी की रणनीति के तौर पर देखें तो साफ दिखता है कि मध्यप्रदेश के हर एक क्षेत्र में बीजेपी ने अपने एक बड़े नेता पर दांव लगा दिया है. ग्वालियर-चंबल संभाग नरेंद्र सिंह तोमर के जिम्मे है तो बुंदेलखंड प्रहलाद पटेल के. विद्यांचल में गणेश सिंह और रीती पाठक हैं तो महाकौशल में राकेश सिंह. निमाड की जिम्मेदारी उदय प्रताप सिंह की है तो मालवा में कैलाश विजयवर्गीय को मोर्चा संभालना है. आदिवासी बहुल इलाके का नेतृत्व अब फग्गन सिंह कुलस्ते के जिम्मे है. यानी कि अब मध्यप्रदेश में विधानसभा का दारोमदार मध्यप्रदेश के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के पास न होकर उन बड़े चेहरों पर है, जिन्हें दिल्ली ने भेजा है. बाकी अब भी मध्यप्रदेश से दो ऐसे मंत्री हैं, जिन्हें विधानसभा में टिकट नहीं मिला है. और वो हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीरेंद्र खटीक. अगर इन दोनों को भी बीजेपी आलाकमान विधानसभा का प्रत्याशी बना देता है, तो फिर मध्यप्रदेश से ताल्लुक रखने वाला मोदी कैबिनेट का हर मंत्री विधानसभा का चुनाव लड़ेगा. और ये बात किसी तरह से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए सहज तो नहीं ही रहने वाली है. क्योंकि खुद गृहमंत्री अमित शाह की तरफ से ही साफ किया जा चुका है कि एमपी चुनाव में कोई एक चेहरा तो नहीं ही होगा.

अब कहने वाले तो कह रहे हैं कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बिना चेहरे वाला फॉर्मूला काम कर गया था. लेकिन ये कहने वाले शायद ये बात भूल जा रहे हैं कि 2017 के चुनाव में यूपी में बीजेपी 14 साल से सत्ता में नहीं थी तो चेहरे की जरूरत नहीं थी. अब एमपी में जो एक चेहरा करीब 16 साल से लोगों की नजर में है और जिसपर एमपी के लोग मुहर लगाते आए हैं. उसे दरकिनार कर सात सांसदों के सहारे सामूहिक नेतृत्व का नाम देकर पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव में उतरना कहीं बीजेपी को ठीक वैसे ही भारी न पड़ जाए, जैसे 2021 में पश्चिम बंगाल में हुआ था

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